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This Article is From Nov 29, 2015

पिच पर बवाल : सवाल तो इमरान ताहिर और उनके साथियों पर भी है

पिच पर बवाल : सवाल तो इमरान ताहिर और उनके साथियों पर भी है
हमारे बॉलर्स के मुकाबले इमरान ताहिर और साथी असफल रहे (सौजन्य : BCCI)
मोहाली टेस्ट के बाद नागपुर टेस्ट मैच भी तीन दिन में खत्म हो गया। टेस्ट मैच के तीन दिन में खत्म होते ही पिच को लेकर बहस छिड़ गई है। इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल वॉन और ग्लेन मैक्सवेल ने तो नागपुर पिच को शैतान और पिशाच जैसी संज्ञा दे डाली। लेकिन इन सबके बीच क्रिकेट के महारथी ये भूल रहे हैं कि यह बहस तभी छिड़ती है जब कोई विदेशी टीम भारत आकर बुरी तरह हारती है, तब नहीं जब भारतीय टीम विदेशी धरती पर हारती है। उस समय सभी 'होम एडवांटेज' के स्थान पर तेज पिच पर हमारे बल्लेबाजों की तकनीक और गेंदबाजों की क्षमता पर सवाल उठाना शुरू कर देते हैं। ऐसा दोहरा मापदंड क्यों?

दक्षिण अफ्रीका के स्पिनर्स पर सवाल क्यों नहीं
माना कि टीम इंडिया को कथित 'होम एडवांटेज' देने के लिए स्पिन विकेट बनाए गए, लेकिन इन पर गेंदबाजी का मौका तो दोनों टीमों को मिला। जहां टीम इंडिया के स्पिनर्स ने 50 में से 48 विकेट अपने नाम किए, वहीं दक्षिण अफ्रीकी स्पिनर्स 40 में से 28 विकेट ही ले पाए। बस अंतर यही रहा।

फिर ऐसा भी नहीं है कि दक्षिण अफ्रीका के पास स्पिनर्स नहीं हैं। वे तो तीन विशेषज्ञ स्पिनर लेकर आए हैं। टीम में वर्ल्ड क्लास लेग स्पिनर इमरान ताहिर के अलावा ऑफब्रेक साइमन हार्मर और दाएं हाथ के ऑफब्रेक गेंदबाज डेन पीड्ट भी हैं। फिर पार्ट टाइम स्पिनर जेपी डुमिनी और डीन एल्गर भी तो हैं। वहीं ऑफ स्पिनर्स के खिलाफ टीम इंडिया के बल्लेबाजों की कमी तो जगजाहिर है। ऐसे में तो मुकाबला बराबरी का होना चाहिए था। फिर कमी कहां रह गई।

दुनियाभर में रन बना चुके वेरी-वेरी स्पेशल वीवीएस लक्ष्मण के अनुसार, पिच चाहे पर्थ या जोहानिसबर्ग की हो या फिर नागपुर या मोहाली की, हर पिच का अपना मिजाज होता है और बल्लेबाज या गेंदबाज को उसी के अनुरूप खेलना होता है। यदि आपमें टेस्ट क्रिकेट के लायक तकनीक है, तो आप कहीं भी खेल सकते हैं। यहीं पर वनडे या टी-20 से टेस्ट क्रिकेट अलग हो जाता है। (क्लिक करें- बेशक टीम इंडिया जीती, लेकिन क्‍या हम इसे टेस्‍ट क्रिकेट की 'हार' नहीं मानें !)

एक्सपर्ट्स इन स्पिनर्स पर बात क्यों नहीं करते। जिन विकेट पर अश्विन, रवींद्र जडेजा और अमित मिश्रा धूम मचा रहे हों, उन पर दक्षिण अफ्रीका के स्पिनर क्यों नहीं चले। क्या उनको किसी ने रोक रखा था? मतलब साफ है या तो उनकी स्पिन बॉलिंग तकनीक में कमी है या उन्हें स्पिन विकेट में सही लाइन-लेंथ पर गेंद फेंकना नहीं आता। आप जरा ध्यान दीजिए, कुछ ऐसा ही सवाल हमारे तेज गेंदबाजों पर उठता है, जब हम दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया या इंग्लैंड जैसे देशों के दौरे पर जाते हैं। जहां उनके तेज गेंदबाज आग उगलते हैं और हमारे गेंदबाज कुछ खास नहीं कर पाते। कहने का मतलब यह कि विदेशी टीमें अपनी स्पिन बॉलिंग पर भी ध्यान क्यों नहीं देतीं।

दक्षिण अफ्रीका की बल्लेबाजी तकनीक पर सवाल क्यों नहीं
9 साल से विदेशी धरती पर अजेय दक्षिण अफ्रीकी टीम का इतना बुरा हाल क्यों है, इस पर विचार किया जाना चाहिए। उसे विदेश में सफलता बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों की वजह से मिली है। इस बीच उसने एशियाई देशों का दौरा भी किया और जीत हासिल की।

साल 2007 में पाकिस्तान की धरती पर सीरीज जीती, 2008 और 2010 में भारत की धरती पर सीरीज ड्रॉ खेली, साल 2014 में श्रीलंका को उसी की धरती पर हराया। ये मैच उसने स्पिन विकेट पर ही खेलकर जीते हैं। कहने का मतलब यह कि पहले उनके बल्लेबाज स्पिन विकेट पर भी रन बना रहे थे, लेकिन वर्तमान में वे ऐसा नहीं कर पा रहे। उनकी टीम भी बदलाव के दौर से गुजर रही है। अब उसमें जैक कलिस, गैरी कर्स्टन, ग्रीम स्मिथ और हर्शल गिब्स जैसे बल्लेबाज नहीं हैं। हाशिम अमला ने जरूर साल 2009-10 के भारत दौरे पर रन बनाए थे, लेकिन इस बार वे भी आउट ऑफ फॉर्म चल रहे हैं। 2010 में नागपुर की इसी पिच पर उन्होंने 253 रन नाबाद ठोके थे।

ऐसे में एक्सपर्ट्स और विदेशी टीमों के पूर्व खिलाड़ियों को थोड़ा समय दक्षिण अफ्रीकी बल्लेबाजों की स्पिन पिचों पर खेलने की तकनीक के बारे में चर्चा के लिए भी निकाल लेना चाहिए। भले ही स्पिन विकेट पर हमारे बल्लेबाजी तकनीक में भी गिरावट आई है, फिर भी हम उनसे बेहतर रहे, इसीलिए उनसे ज्यादा स्कोर किया और बाकी काम अश्विन सहित अन्य स्पिनर्स ने कर दिया।

संपूर्ण खिलाड़ी वही जो हर तरह की पिच पर खेले
टी-20 क्रिकेट के फेर में बल्लेबाजों की लंबे प्रारूप में खेलने की तकनीक पर असर पड़ा है। एबी डिविलियर्स, फॉफ डु प्लेसिस, जेपी डुमिनी ने वनडे और टी-20 में तो धूम मचाई, लेकिन टेस्ट में सब फेल हो गए। कारण, सॉलिड डिफेंस की कमी। वे गेंद के पास पहुंचकर खेलने की बजाय दूर से ही खेले। इसीलिए ये बल्लेबाज घूमती गेंदों पर नाचते दिखे और नतीजा सबके सामने है। संपूर्ण खिलाड़ी वही होता है जो हर तरह के विकेट पर जमकर खेले। ऐसे में दक्षिण अफ्रीका को अपनी ख्याति के अनुरूप प्रदर्शन करने के लिए अपनी बल्लेबाजी पर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि उनके गेंदबाजों ने तो काफी हद तक अपना काम किया और टीम इंडिया को किसी भी मैच में 250 रन तक भी नहीं पहुंचने दिया।   

महान भारतीय बल्लेबाज सुनील गावस्कर के अनुसार टेस्ट क्रिकेट 'स्किल गेम' है। इसमें लाल गेंद का प्रयोग होता है, जो सफेद गेंद की अपेक्षा ज्यादा घूमती है और इसमें बाउंस भी अधिक होता है। टी-20 के जमाने में बल्लेबाजों की टेस्ट लायक बल्लेबाजी तकनीक गायब हो रही है, इसीलिए वे संघर्ष कर रहे हैं।

विदेशी पिचों पर हमारे खिलाड़ी भी तरसते हैं
जब टीम इंडिया विदेशी दौरे पर जाती है, तो हमारे बल्लबाजों की यही एक्सपर्ट्स और पूर्व क्रिकेटर जमकर आलोचना करते हैं। हमारे बल्लेबाजों को बाउंसर, शॉर्ट पिच, स्विंग, यॉर्कर सभी तरह की गेंदों को खेलने में असमर्थ बताया जाता है, लेकिन कोई भी 'होम एडवांटेज' की बात नहीं करता। कई बार तो हमें घास के मैदान जैसी पिचों पर खिलाया जाता है। फिर भी हम पिच पर सवाल नहीं उठाते। यदि बात पिच की है तो वे अपनी धरती पर हमें स्पिन विकेट क्यों नहीं देते। भारत में आने पर ही स्पोर्टिंग विकेट की बात क्यों होती है।

विदेश में भी तीन दिन में खत्म होते हैं मैच
ऐसा नहीं है कि केवल भारत में ही मैच तीन दिन में खत्म हो रहे हैं। पहले डे-नाइट मैच का ही उदाहरण ले लीजिए। एडीलेड के विकेट पर खेले जा रहे टेस्ट में न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया दोनों ही टीमें पहली पारी में डेढ़ दिन में ही आउट हो गईं। न्यूजीलैंड ने 202 रन बनाए, तो ऑस्ट्रेलिया ने 224 रन। यह मैच भी तीसरे दिन ही खत्म हो गया। अब इसे आप क्या कहेंगे? साल 1995 में वेस्टइंडीज और ऑस्ट्रेलिया के बीच पोर्ट ऑफ स्पेन में खेला गया मैच 3 दिन में समाप्त हो गया था। साल 2000 में लीड्स में खेले गए इंग्लैंड और वेस्टइंडीज के मैच का फैसला 2 दिन में ही हो गया था। ऐसे में केवल एशियाई महाद्वीप की पिचें ही खराब नहीं हैं। यदि आप क्रिकेट इतिहास देखेंगे तो एशियाई देशों से बाहर खेले गए ऐसे और भी मैच आपको मिल जाएंगे, जो तीन या इससे कम दिन में ही समाप्त हो गए।

रहा सवाल टेस्ट मैचों के भविष्य का, तो निश्चित रूप से इन्हें 4-5 दिन चलना चाहिए, लेकिन इसके लिए हमें बल्लेबाजों को हर तरह की पिच पर खेलने लायक और गेंदबाजों को हर तरह की पिच पर गेंदबाजी करने लायक बनाने पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि टेस्ट क्रिकेट 'स्किल गेम' है। टेस्ट मैचों को आकर्षक बनाने और दर्शक खींचने के लिए अन्य प्रयास भी किए जा सकते हैं। जैसा कि आईसीसी ने डे-नाइट टेस्ट मैच के रूप में हाल ही में किया है।
(क्लिक करें - डे-नाइट टेस्ट मैच : गुलाबी गेंद के साथ टेस्ट क्रिकेट के नए युग का सूत्रपात)

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