
हिंदी सिनेमा के इतिहास में किसी ऐनिमेशन फिल्म को महावतार नरसिम्हा जैसी सफलता पहले नहीं मिली. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वजह है कि भारतीय सिनेमा में ऐनिमेशन फिल्में या स्पेशल इफेक्ट्स वाली फिल्मों की तादाद और इनके प्रति दर्शकों के बीच रुचि कम है? महावतार नरसिम्हा के निर्देशक अश्विन कुमार ने फिल्म की कामयाबी के मौके पर मुंबई में प्रेस कांफ्रेंस करते हुए कहा कि भारतीय स्पेशल इफेक्ट्स और ऐनिमेशन, हॉलीवुड की फिल्मों से अभी करीब 35 साल पीछे हैं.
प्रेस कांफ्रेंस में बात करते हुए उन्होंने बताया, "ऐनिमेशन विदेशों में साबित हो चुका मार्केट है और हम अब भी भारत का ऐनिमेशन ही देख रहे हैं. इसका मतलब है, अगर भारतीय ऐनिमेशन को बड़े हॉलीवुड स्टाइल में पेश किया जाए तो यह कामयाब होगा और देखो, आप सबको यह महावतार नरसिम्हा के रूप में पसंद भी आ रहा है". फिल्म के निर्देशक अश्विन कुमार ने वीएफएक्स, ऐनिमेशन फिल्मों और एआई के इस्तेमाल के बारे में भी बात की. उन्होंने आगे बोलते हुए कहा, "मुझे याद है, 1995 में मैंने अपने कज़िन्स के साथ जुरासिक पार्क देखी थी, तब मैं छोटा था. भारत में अभी तक जुरासिक पार्क जैसी फिल्म नहीं बनी है. हम पहले ही 35 साल पीछे हैं, अगर आप उस स्तर की फ़िल्म डिलीवरी को देखें तो".
उन्होंने आगे कहा, "हमारे पास शानदार कहानियां हैं, ये उनसे छीनने की बात नहीं है, लेकिन जब आप वीएफएक्स डिलीवरी और फिल्ममेकिंग को देखते हैं, तो मुझे लगता है हमें इन टूल्स को अपनाना होगा ताकि यह अंतर भर सके. एथिकल तरीके से एआई का इस्तेमाल करना और सीजी का इस्तेमाल करना, यही भविष्य की राह है. वैसे भी, पैंडोरा बॉक्स खुल चुका है, अब पीछे लौटना मुमकिन नहीं. सब सामने है, तो इसका इस्तेमाल होना ही चाहिए".
जब से ईरोस फिल्म ने आनंद एल. राय की फिल्म रांझणा का क्लाइमेक्स एआई के इस्तेमाल से बदला है, तब से एआई के इस्तेमाल को लेकर देश में बहस जारी है. लेकिन जैसा अश्विन ने कहा कि एथिकल इस्तेमाल फिल्म जगत के लिए कारगर साबित हो सकता है.
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