विज्ञापन
This Article is From Nov 07, 2017

कोचिंग विवाद पर सामने आई अनिल कुंबले की पीड़ा, बोले-करियर के आखिरी दिनों में हेडमास्‍टर का तमगा मिला

पूर्व क्रिकेटर अनिल कुंबले की उनकी कोचिंग शैली को लेकर उपजे विवाद को लेकर पीड़ा आखिर सामने आ ही गई.

कोचिंग विवाद पर सामने आई अनिल कुंबले की पीड़ा, बोले-करियर के आखिरी दिनों में हेडमास्‍टर का तमगा मिला
अनिल कुंबले ने विवादास्पद परिस्थितियों में भारतीय टीम के कोच का पद छोड़ दिया था (फाइल फोटो)
नई दिल्‍ली: पूर्व क्रिकेटर अनिल कुंबले की उनकी कोचिंग शैली को लेकर उपजे विवाद को लेकर पीड़ा आखिर सामने आ ही गई. मैदान पर अपना सब कुछ झोंकने के लिये मशहूर रहे पूर्व भारतीय क्रिकेटर और कोच अनिल कुंबले ने कहा कि बेहद अनुशासित परवरिश से वह अपने जीवन में अनुशासन प्रिय बने जिसकी वजह से उन्हें अपने चमकदार करियर के आखिरी दिनों में ‘हेडमास्टर’ का अप्रिय तमगा भी मिला. कुंबले ने माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नाडेला के साथ अपने बचपन की सीख के बारे में बातचीत की जिसने उन्हें सफल क्रिकेटर बनने में काफी मदद की. हैदराबाद में जन्मे और खुद को क्रिकेट प्रेमी कहने वाले नाडेला ने उनकी बातों को गौर से सुना.

यह भी पढ़ें: कुंबले को बर्थडे विश करते हुए बीसीसीआई ने लिखा कुछ ऐसा, बाद में सुधारी गलती

नाडेला ने जब कुंबले से पूछा कि उन्हें अपने माता-पिता से क्या सीख मिली, उन्होंने कहा, ‘आत्मविश्वास. यह उन संस्कारों से आता है जो आपको अपने माता-पिता और दादा-दादी, नाना-नानी से मिलते हैं.’ कुंबले ने कहा, ‘मेरे दादा स्कूल में हेडमास्टर थे और मैं जानता हूं कि यह शब्द (हेडमास्टर) मेरे करियर के अंतिम दिनों में मुझसे जुड़ा. इनमें से कुछ समझ जाएंगे (कि मैं क्या कहना चाह रहा हूं). एक कड़क कोच की प्रतिष्ठा बनाने वाले कुंबले ने इस साल जून में विवादास्पद परिस्थितियों में भारतीय कोच पद छोड़ दिया था. उन्होंने इसके लिये भारतीय कप्तान विराट कोहली के साथ अस्थिर रिश्तों को जिम्मेदार ठहराया था. इसके बाद से ही भारत की तरफ से सर्वाधिक विकेट लेने वाले इस गेंदबाज ने चुप्पी साध रखी है.

यह भी पढ़ें: कुंबले को 'परफेक्‍ट 10' से वंचित करने के लिए वकार ने बनाई थी यह योजना, लेकिन....

कुंबले और नाडेला के बीच बातचीत माइक्रोसॉफ्ट सीईओ की हाल में जारी की गयी किताब ‘हिट रिफ्रेश’ के इर्दगिर्द घूमती रही. दोनों ने अपनी जिंदगी के ‘हिट रिफ्रेश’ क्षणों के बारे में काफी बात की. कुंबले ने कहा कि 2003-04 का ऑस्ट्रेलिया दौरा वह समय था जब उनके सामने खुद का करियर पुनर्जीवित करना चुनौती थी. भारत ने चार टेस्ट मैचों की यह सीरीज ड्रॉ कराई थी. उन्होंने कहा, ‘एक क्रिकेटर होने के नाते आपको हर सीरीज की समाप्ति पर खुद को अगली चुनौती के लिये तैयार करना होता है एक सीरीज से दूसरी सीरीज के लिए चुनौतियां भिन्न होती है, लेकिन मैं 2003-04 के ऑस्ट्रेलिया दौरे का जिक्र करना चाहूंगा जब मैं अपने करियर को लेकर दोराहे पर खड़ा था.’

कुंबले ने कहा, ‘मैं अंतिम एकादश में जगह बनाने के लिये प्रतिस्पर्धा (हरभजन सिंह के साथ) कर रहा था। मैं 30 की उम्र पार कर चुका था और लोग मेरे संन्यास को लेकर बातें करने लगे थे. मुझे एडिलेड टेस्ट में मौका मिला जिसे हमने जीता था.’ उन्होंने कहा, ‘मैंने पहले दिन काफी रन लुटाए लेकिन दूसरे दिन पांच विकेट लेने में सफल रहा. मुझे कुछ अलग करने की जरूरत समझ में आई. इसलिए मैंने अलग तरह की गुगली फेंकनी शुरू की जो मैंने तब सीखी थी जब मैं टेनिस बॉल से क्रिकेट खेला करता था. तब मुझे अहसास हुआ कि मैं अपने खेल में सुधार करने के लिये थोड़े बदलाव कर सकता हूं.’भारतीय क्रिकेट के महत्वपूर्ण मोड़ के बारे में पूछे जाने पर कुंबले ने 1983 की वर्ल्‍डकप की जीत और ऑस्ट्रेलिया के 2001 के दौरे का जिक्र किया जब भारत ने पिछड़ने के बाद वापसी करके 2-1 से जीत दर्ज की थी.

वीडियो: कुंबले-कोहली के विवाद के पीछे की कहानी क्‍या है?
उन्होंने कहा, ‘नब्बे के दशक की सबसे अच्छी बात यह रही है कि हमने घरेलू सरजमीं पर लगभग हर मैच जीता. लेकिन अगर आप एक महत्वपूर्ण मोड़ की बात करना चाहते हो तो वह 2001 की भारत -ऑस्ट्रेलिया सीरीज थी. मैंने चोटिल होने के कारण उसमें हिस्सा नहीं लिया था.’ कुंबले ने कहा, ‘यह वह समय था जबकि टीम को अपनी असली क्षमता का पता चला. इसके बाद भारतीय क्रिकेट लगातार मजबूत होता रहा और हम नंबर एक भी बने.’  (इनपुट: भाषा)

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com