वेस्टइंडीज क्रिकेट का पतन और अफगानिस्तान का उदय!

वेस्टइंडीज क्रिकेट का पतन और अफगानिस्तान का उदय!

वेस्टइंडीज के कप्तान जैसन होल्डर (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

2015 को अलविदा कहने का वक्त आ गया है और क्रिकेट की दुनिया का रोमांच और एक्शन से भरपूर रहा एक और साल खत्म होने को है। इस बीच दो बातें जहन में आ रही हैं , वो हैं लगातार बद से बदतर हो रहे वेस्टइंडीज क्रिकेट के हालात और दूसरी तरफ हर तरह की मुश्किलों का सामना करते हुए धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपने पैर जमा रही अफगानिस्तान की नई टीम।

क्या खत्म हो रहा है कैरेबियाई क्रिकेट?
वेस्टइंडीज क्रिकेट इतिहास को देखते हुए 2015 सबसे बुरा साल रहा। इस साल वेस्टइंडीज ने 10 टेस्ट मैच खेले और उसमें 8 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2004 और 2005 में भी वेस्टइंडीज की टीम इतने ही टेस्ट मैच हारी थी, लेकिन 2004 में उसने 12 टेस्ट और 2005 में 11 टेस्ट मैच खेले थे। यानी इस साल कम टेस्ट मैच खेलने के बाद भी टीम 8 मैच हार गई। इस टीम का इससे बुरा हाल 1928 में हुआ था, जब वह चार में से 3 टेस्ट मैच  हार गई थी।

पहले ही मान ली हार
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेले गए टेस्ट मैच के दौरान खिलाड़ी अपनी जेब में हाथ डाले नजर आए, बाउंड्री पर वे ऐसे घूम रहे थे जैसे किसी पार्क में टहलने आए हों। ऐसे में अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था कि इस टीम ने सीरीज शुरू होने से पहले ही हार मान ली है। मन ही मन ये जानते हैं कि टेस्ट सीरीज खेलना औपचारिकता है जिसे पूरा करना ही पड़ेगा। वेस्टइंडीज क्रिकेट के पतन की कहानी लगभग 1996 से शुरू हुई और अब करीब 20 साल बाद अपने सबसे निम्न स्तर पर है। मैदान पर हार अब खिलाड़ियों को चुभती नहीं, टीम का शर्मसार करने वाला रिकॉर्ड अधिकारियों को खलता नहीं।

कैरेबियाई क्रिकेट कैसे सुधारा जाए, कैसे क्रिकेट के इस पतन को रोका जाए, इसके लिए ना तो किसी के पास सोचने का समय है और ना ही इच्छा ही नजर आ रही है। कुछ लोग यह भी सवाल उठा रहे हैं कि वेस्टइंडीज की क्रिकेट टीम का आइडिया अब पुराना हो चुका है। शायद इन द्वीपों को अपने-अपने देश की टीम बनाकर खेलने दिया जाए, तो हालात सुधर सकते हैं। यह सिर्फ एक आइडिया है, लेकिन कुछ तो करना ही होगा, वरना लोग वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम को क्लब टीम के रूप में आंकने से खुद को नहीं रोक पाएंगे।

साल के अंत में ऑस्ट्रेलिया के लोग अपने देश पर ही गुस्सा निकालते नजर आए कि वो क्यों ऐसी टीम को बुला रहे हैं जो टेस्ट क्रिकेट खेलना ही नहीं चाहती। वहीं इसी देश में क्रिस गेल, आंद्रे रसेल, ड्वैन ब्रावो जैसे बल्लेबाज हैं, जो अपने शानदार खेल से टी-20 दर्शकों के नायक बने हुए हैं और दुनिया भर की टी-20 लीग्स के सबसे चहेते खिलाड़ी हैं। ऐसे में कुछ तो कहीं गड़बड है। और ऐसा हो नहीं सकता कि इस समस्या का कोई हल ना हो। पिछले 30 सालों में वही गिने-चुने 8-10 देश हैं जो इस क्रिकेट को खेल रहे हैं। अन्य खेलों की तरह क्रिकेट दुनिया के बाकी हिस्सों में लोकप्रिय होने में नाकाम रहा है। अगर जल्द ही कोई कदम नहीं उठाए गए तो हालात बद से बदतर हो सकते हैं।

पाकिस्तान और बांग्लादेश में कोई देश खेलना नहीं चाहता, भारत में पिचों के हाल से सब वाकिफ हैं। जिम्बाब्वे में क्रिकेट ऑक्सीजन के सहारे चल रहा है और श्रीलंकाई टीम की भी अपनी समस्याएं हैं। यानी टेस्ट क्रिकेट अब सिर्फ दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड ऑस्ट्रेलिया और भारत  के बीच की जंग रह गया है। अब चार देशों का खेल कब तक टिकेगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं।

वाह अफगानिस्तान!
इस बीच खबर आई कि अफगानिस्तान की टीम ने जिम्बाब्वे को सीरीज के दूसरे वनडे में भी हरा दिया है। यह टीम अब आईसीसी की टॉप 10 टीम की सूची में शामिल हो गई है। अफगानिस्तान का शानदार सफर लगातार आगे बढ़ रहा है। टीम के पास न तो ढंग के मैदान हैं और ना ही ढंग की सुविधाएं, लेकिन फिर भी उनके खेलने का जज्बा है जो खिलाड़ियों को आगे बढ़ने को प्रेरित कर रहा है। टीम अब एसोसिएट मेंबर्स को बड़ी आसानी से हरा रही है। अब वह उन टीमों पर भी भारी पड़ रही है, जो टेस्ट रैंकिंग की निचली पायदान पर हैं। थोड़ी और मेहनत और थोड़ी और सुविधाओं के साथ टीम आगे कमाल करेगी ये तो तय है।

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इन दो टीमों की कहानी इस वक्त भले ही विपरीत दिशाओं में चल रही हो, लेकिन दोनों में ICC को अपनी भूमिका निभानी है, क्योंकि सिर्फ इन देशों को क्रिकेट की नहीं, बल्कि क्रिकेट को भी इन देशों की जरूरत है।