त्वरित टिप्पणी : क्‍या है चे‍तेश्‍वर पुजारा होने का मतलब?

त्वरित टिप्पणी : क्‍या है चे‍तेश्‍वर पुजारा होने का मतलब?

चेतेश्वर पुजारा (फाइल फोटो)

यह कोई सलमान खान की फि‍ल्‍म नहीं है, जहां नाम ही काफी होता है। क्रिकेट में मैदान पर बल्‍लेबाज को रन बनाने ही होते हैं। तभी टीम में उसकी जगह तय होती है। पुराने रन मैदान पर उतरते ही बेकार हो जाते हैं। यह बात चेतेश्‍वर पुजारा से बेहतर भला कौन समझ सकता है। दिसंबर, 2014 में ऑस्‍ट्रेलिया दौरे पर दो मैचों में खराब प्रदर्शन के बाद पुजारा को टीम से बाहर बिठा दिया गया था। महेंद्र सिंह धोनी की ही तरह विराट कोहली को भी पुजारा पर वैसा भरोसा नहीं था, जैसा हर भारतीय कप्‍तान को रोहित शर्मा पर होता है।

पुजारा ने घरेलू मैदान के साथ ही दक्षिण अफ्रीका में स्‍टेन एंड कंपनी के सामने बेहतरीन पारियां खेली थीं, और इससे पहले वह छह शतक भी ठोक चुके थे, लेकिन कोहली को उनके भीतर शायद 'आग' नहीं दिखी। ऐसी आग, जो आए दिन बखेड़ा करने वाले खिलाड़ियों और प्रदर्शन से ज्‍यादा एग्रेशन दिखाने वालों में कुछ ज़्यादा होती है, इसलिए 'द्रविड़-टाइप' पुजारा से अगर कोहली का भरोसा थोड़ी ही देर के लिए सही, लेकिन उठ गया था तो कोई अचरज की बात नहीं। लेकिन इससे भी अधिक परेशानी वाला रवैया तो रवि शास्‍त्री का था, जो पुजारा के बारे में एक लाइन का भी स्‍टेटमेंट नहीं दे रहे थे।

इसलिए पुजारा ने केवल वही किया, जो वह कर सकते थे। राहुल द्रविड़ की सलाह और आईपीएल में किसी भी फ्रेंचाइजी द्वारा नहीं खरीदे जाने पर काउंटी क्रिकेट खेलने का बड़ा फैसला। काउंटी ने उन्‍हें स्विंग होती गेंदबाजी को संभालने का हुनर निखारने में मदद की, फुटवर्क सुधारा और बैकफुट पर उनका खेल ठोस हुआ। वह कुछ गेंदों पर बीट तो हुए, लेकिन गेंद उनके बल्‍ले का किनारा लेकर स्लिप की ओर भागती नज़र नहीं आई। आप इसे रोहित शर्मा की बल्‍लेबाज़ी की तस्‍वीरें देखकर समझ सकते हैं।

टीम के लिए ड्रिंक लेकर लौटते पुजारा ने कोई बयान नहीं दिया, विरोधी टीम के साथ स्‍लेजिंग नहीं की। उन्‍होंने वही किया, जो वह सबसे अच्‍छा कर सकते थे। 145 रन की बेहतरीन पारी। जहां पूरा का पूरा शीर्षक्रम डूब गया था। धम्मिका प्रसाद की स्विंग गेंदबाजी के सामने। यह जीत ऐतिहासिक है इस मायने में कि टीम इंडिया लगभग भारत जैसी पिचों पर 22 साल बाद जीती है। इस रिकॉर्ड का सुधरना इसलिए भी जरूरी था, क्योंकि हम स्पिन खेलने के माहिर माने जाते हैं। इसके लिए विराट कोहली तारीफ के हकदार हैं, लेकिन उन्हें कप्तान के तौर पर चयन में अधिक पारदर्शिता दिखानी होगी और रोहित शर्मा को खिलाड़ी की तरह ट्रीट करना होगा न कि किसी सुपर स्टार की तरह जिसे फ्लाप फिल्मों के बाद भी काम मिलता रहता है।

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हमें उम्‍मीद करनी चाहिए कि पुजारा की यह पारी उनका आत्‍मविश्‍वास लौटाने के साथ ही उनके प्रति कप्‍तान कोहली के भरोसे को भी लौटाएगी। यही भारतीय क्रिकेट (इसे टेस्‍ट क्रिकेट पढ़ें, क्‍योंकि पुजारा केवल इसी का हिस्‍सा हैं) और उसके चाहने वालों के लिए भी सबसे बड़ी खबर है।