बेदी साहब के ठहाके! आज जब उनके जाने की ख़बर आई तो लगा कि ज़िन्दगी में अपने दोस्तों और हम सबको उनकी तरफ़ से दिया गया ये उनका पहला धोखा होगा. इतनी जल्दी नहीं जाना था बेदी साहब. मुझे पूरा यकीन है कि मृत्यु भी जब उनके पास पहुंची होगी, चाहे जिस रूप में पहुंची हो, बेदी साहब ने एक ठहाका लगाकर उसे भी हैरान ज़रूर किया होगा.
बेदी साहब के अनगिनत किस्से हैं. इतने वरिष्ठ. इतने अनुभवी. लेकिन लेशमात्र भी अहंकार नहीं. हर उम्र के पत्रकारों से घुलमिल कर उनका कॉन्फ़िडेंस बढ़ाना उनकी ख़ासियत रही. बतौर एक्सपर्ट भी टीवी चैनल्स पर छाये रहे. बात सचिन तेंदुलकर की हो या डबल ओलिंपिक पदक विजेता सुशील कुमार की. उनकी राय अक्सर अलहदा होती थी. हमेशा बेबाक और बेख़ौफ़. वो अलग किस्म के इमानदार पत्रकार थे.
एक बार दिल्ली के ताज होटल में बीसीसीआई ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस रखी. पत्रकार सुबह 10 बजे से ही मजमा लगाये थे. बीसीसीआई ने तक़रीबन 3 बजे प्रेस कॉन्फ़्रेंस के लिए पत्रकारों को हॉल में बुलाया. बीसीसीआई सचिव जयवंत लेले और दूसरे अधिकारी मीटिंग और दोपहर के खाने के बाद सौंफ चबाते देखे गए. बेदी साहब ने बड़े ही बेतकल्लुफ़ी से कहा, " लेले साहब, आपने बिल्कुल ठीक किया. पत्रकारों को ऐसे ही ट्रीट करना चाहिए. आपने खाना तो खाया ना... " लेले झेंपते हुए नज़र आये. उन्होंने पहले पत्रकारों के चाय-नाश्ते का इंतज़ाम करवाया और तब जाकर प्रेस कॉन्फ़्रेंस शुरू हुई.
एक और प्रेस कॉन्फ़्रेंस. भारतीय हॉकी संघ के अध्यक्ष केपीएस गिल और पत्रकारों में उस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में ठन गई. बेदी साहब थोड़ी देर से आये. उनके आते ही केपीएस गिल ने कहा, "वाह बेदी, तब आये जब सबकुछ हो चुका है." बेदी ने उसी अंदाज़ में जवाब दिया, "आप प्रेस कांफ़्रेंस रखते ही ऐसे वक्त हो, ये कोई वक्त है प्रेस कॉन्फ़्रेंस का." इस अंदाज़ में केपीएस गिल से बात करते हुए मैंने बेदी साहब के अलावा किसी और को नहीं देखा.
बड़ी बात ये है कि बेदी कभी कड़वाहट नहीं होने देते थे. एक बार उन्होंने एक किस्सा बताया कि वो एक महीने के लिए कहीं रुके तो उस अपार्टमेंट का गार्ड उनके अलावा सबको सैल्युट करता था. बेदी साहब ने वहां से जाते वक्त, आख़िरी दिन उस गार्ड के कंधे पर हाथ रखा. गलबहियां की और पंजाबी में गाली देते हुए कहा, "...अबे एक बार तो मुझे भी सैल्युट कर दे यार..."
कई ओलिंपिक्स और एशियाड और बेशुमार टूर्नामेंट कवर करने वाले बेदी साहब ने एक बार 2008में बीजि़ंग ओलिंपिक्स खेलों के दौरान मुझसे पूछा, "विमल किस गेम में मेडल की उम्मीद है तुझे?" मैंने कहा, "बेदी साहब, शूटिंग, बॉक्सिंग, टेनिस, वगैरह....?" बेदी साहब बिफ़र गए. "यार विमल, कैसी-कैसी बातें करता है तू? देखा है, विदेशी बॉक्सर्स को, कितनी ज़ोर-जोर से पंच मारते हैं?" लेकिन विजेन्दर की जीत के बाद उन्होंने मेरा कंधा थपथपाया. सैल्युट किया. आशीर्वाद दिया. ऐसे ज़िन्दादिल बेदी साहब का जाना, जो भी उन्हें जानता है, उसके लिए निजी क्षति है.
दूसरे कुछ सीनियर्स की तरह बेदी साहब ने भी मेरी पीएचडी में मदद की. कहते थे, "आगे बढ़ता रह पुत्तर. क़िताबें लिख...और खूब पढ़. मेरी ब्लेसिंग्स तेरे साथ है." बेदी साहब अचानक गंभीर होते और अचानक ही ठहाके लगाकर हैरान कर देते. मुझे पूरी उम्मीद है ...उनके ठहाके फिर सबको हैरान कर देंगे.