यह ख़बर 22 जुलाई, 2013 को प्रकाशित हुई थी

एशेज : इंग्लैंड 347 रनों से जीता, शृंखला में 2-0 से बढ़त

खास बातें

  • इंग्लैंड क्रिकेट टीम ने अपने हरफनमौला खेल की बदौलत लॉर्ड्स क्रिकेट मैदान पर खेले गए एशेज-2013 के दूसरे टेस्ट मैच के चौथे दिन रविवार को ऑस्ट्रेलिया को 347 रनों से हरा दिया।
लंदन:

इंग्लैंड क्रिकेट टीम ने अपने हरफनमौला खेल की बदौलत लॉर्ड्स क्रिकेट मैदान पर खेले गए एशेज-2013 के दूसरे टेस्ट मैच के चौथे दिन रविवार को ऑस्ट्रेलिया को 347 रनों से हरा दिया। इस जीत के साथ इंग्लैंड ने पांच मैचों की शृंखला में 2-0 की बढ़त हासिल कर ली है। इंग्लैंड ने ट्रेंट ब्रिज मैदान पर खेले गए पहले टेस्ट मैच में 14 रनों से जीत हासिल की थी। लॉड्स में इंग्लैंड ने अपनी 50वीं टेस्ट जीत हासिल की है।

पहली पारी में पांच विकेट लेने वाले ग्रीम स्वान के नेतृत्व में अपने गेंदबाजों के उम्दा प्रदर्शन की बदौलत इंग्लैंड ने 192 रनों पर ही मेहमान टीम को नौ विकेट झटक लिए थे लेकिन जेम्स पेटिंसन (35) और रेयान हैरिस (नाबाद 16) ने अंतिम विकेट के लिए 43 रनों की साझेदारी करते हुए मेजबान टीम को लम्बा इंतजार कराया।

एक समय ऐसा लग रहा था कि इंग्लैंड को जीत का स्वाद चखने के लिए पांचवें दिन मैदान पर उतरना पड़ेगा लेकिन स्वान ने कप्तान एलिस्टर कुक के आधे घंटे अतिरिक्त समय तक खेलने के फैसले को सही साबित करते हुए पारी के 91वें ओवर की तीसरी गेंद पर पेंटिंसन को बोल्ड करके अपनी टीम को यादगार जीत दिलाई।

पेटिंसन ने अपनी 91 गेंदों की पारी में तीन चौके लगाए। हैरिस 40 गेंदों पर एक चौका लगाकर नाबाद लौटे। दूसरी पारी में स्वान ने चार विकेट लिए और कुल नौ विकेटों के साथ मैच की समाप्ति की।

दूसरी पारी में जेम्स एंडरसन, टिम ब्रेस्नन और जोए रूट को भी दो-दो सफलता हाथ लगी।

दूसरी पारी में ऑस्ट्रेलिया की ओर से उस्मान ख्वाजा ने सबसे अधिक 54 रन बनाए जबकि कप्तान माइकल क्लार्क के बल्ले से 51 रन निकले। चार बल्लेबाज खाता तक नहीं खोल सके।

इंग्लैंड ने अपनी पहली पारी में 361 रन बनाने के बाद ऑस्ट्रेलिया की पहली पारी 128 रनों पर समेट दी थी। इसके बाद इंग्लैंड ने रूट के 180 रनों की बदौलत अपनी दूसरी पारी सात विकेट पर 349 रन बनाकर घोषित कर दी। इस तरह इंग्लैंड ने ऑस्ट्रेलिया के सामने 583 रनों का लक्ष्य रखा।

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यह लक्ष्य वैसे भी ऑस्ट्रेलिया के लिए बहुत मुश्किल था। इस मैच को जीतने के लिए ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों को इतिहास कायम करने वाली साझेदारियों की जरूरत थी क्योंकि इस मैदान पर किसी टीम ने जिस सबसे बड़े लक्ष्य का पीछा करते हुए जीत हासिल की थी वह सिर्फ 344 रनों की ही रहा है।