यूपी में पहले चरण के मतदान के लिए लोग लाइनों में लग गए हैं.
नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश में पहले चरण का मतदान देने के लिए उत्साहित मतदाता लाइनों में लगे हैं. चुनाव आयोग पहले चरण में यूपी विधानसभा की 403 सीटों में से 73 सीटों पर मतदान करा रहा है. इनमें बीएसपी और बीजेपी ने सभी 73 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं. आरएलडी ने 57 सीटों पर प्रत्याशियों को टिकट दिया है और समाजवादी पार्टी ने 51 सीटों पर पार्टी उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं. कांग्रेस इस बार समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है और इसके खाते में 24 सीटें आई हैं. पहले चरण में 2,60,17,075 वोटर हैं. कुल 839 प्रत्याशी हैं जिनमें 77 महिलाएं हैं. 15 जिलों में वोटिंग हो रही है. 2012 विधानसभा के हिसाब से यहां पर 24-24 सीटें बीएसपी और सपा ने जीती थीं, 9 आरएलडी, 11 बीजेपी और पांच कांग्रेस के खाते में गईं थी. वहीं 2014 लोकसभा चुनाव के हिसाब से अनुमान लगाया जाए तो 68 सीटों पर बीजेपी के समर्थकों की अच्छी तादाद है और 5 सीटों पर सपा के खासे समर्थक हैं.
कैराना विधानसभा क्षेत्र
कैराना विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी की मृगांका सिंह और सपा के नाहिद हसन के बीच मुकाबला कहा जा रहा है. जानकारी के लिए बता दें कि पश्चिमी यूपी में 17 प्रतिशत आबादी जाटों की है यानि 403 सीटों में से 77 सीटों पर उनका कब्ज़ा है. कहा जाता है कि राज्य की करीब 50 सीटों का फैसला जाट समुदाय के हाथ में है.
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक जांच टीम ने पाया है कि उत्तर प्रदेश में कैराना से कई परिवारों ने ‘अपराध में बढ़ोतरी’ और वहां कानून एवं व्यवस्था की ‘गिरती’ स्थिति के डर से ‘पलायन’ किया. यही वजह है कि अजित सिंह की आरएलडी के गढ़ में बीजेपी मजबूत हो गई है. वैसे पिछले बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव हार चुके अनिल चौहान आरएलडी से चुनावी मैदान में हैं.
सादाबाद विधानसभा क्षेत्र
2007 में इस सीट पर आरएलडी प्रत्याशी अनिल चौधरी ने बाजी मारी थी. इस बार बीएसपी से रामवीर उपाध्याय, बीजेपी से प्रीति चौधरी और सपा से देवेंद्र अग्रवाल मैदान में हैं. इस सीट पर मुकाबला चौतरफा बताया जा रहा है.
अतरौली विधानसभा सीट
अतरौली विधानसभा सीट के बारे में यही कहा जा सकता है कि यह सीट बीजेपी के लिए नाक का प्रश्न रही है. यह सीट पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि जैसे कांग्रेस और खासकर के गांधी परिवार के लिए अमेठी और रायबरेली की सीटें हैं वैसे ही यह सीट बीजेपी या फिर कहे कल्याण सिंह के लिए उतनी ही महत्वपूर्ण है. कल्याण सिंह यहां से 9 बार चुनाव जीत चुके हैं.
2002 और 2007 में उनकी बहू ने यह सीट जीती. अब इस बार कल्याण सिंह के पोते संदीप सिंह इस सीट पार्टी प्रत्याशी हैं ताकि सीट को वापस सपा के कब्जे से छुड़ाया जाए. 2012 के चुनाव में सपा प्रत्याशी वीरेश यादव ने जीत हासिल की थी.
मुजफ्फरनगर विधानसभा सीट
समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव के नेतृत्व में बनी सरकार को मुजफ्फरनगर ने काफी परेशान किया. यहां पर हुए सांप्रदायिक दंगों ने पार्टी की छवि को काफी खराब किया और पहली बार ऐसा हुआ कि मुस्लिम समुदाय के लोग पार्टी से नाराज हुए. 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगों की वजह से लाखों लोगों को घर बार छोड़कर कड़ाके की ठंड में टेंट में रहना पड़ा था.
2012 में यहां पर सपा प्रत्याशी चितरंजन स्वरूप जीते थे लेकिन इनकी मौत के बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी के कपिल देव ने बाजी पलट दी थी और पार्टी के जीत दिलाई. इस बार कपिल देव के सामने स्वरूप के बेटे गौरव मैदान मैं हैं. इनके अलावा पूर्व सरकारी कर्माचरी राकेश शर्मा बीएसपी के टिकट पर और पायल महेश्वरी आरएलडी के टिकट पर मैदान में हैं.
थाना भवन विधानसभा क्षेत्र
बीजेपी से यहां पर प्रत्याशी है सुरेश राणा. इनका नाम मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान मीडिया की सुर्खियों में रहा है. दंगों के आरोप इन पर भी लगे हैं. इस बार राणा पर अपनी सीट बचाने का दबाव है. उनके सामने सपा से सुधीर पंवार और आरएलडी से अब्दुल वारिश मैदान में हैं.
दादरी विधानसभा क्षेत्र
गाजियाबाद के दादरी का नाम मोहम्मद अखलाक की हत्या के बाद सबकी जुबान पर था. गोमांस को लेकर उठे विवाद में कुछ लोगों ने अखलाक को पीटपीटकर मार डाला. इस मामले की जांच जारी है.
इस सीट पर बीजेपी तेजपाल नागर को प्रत्याशी बनाया है. बीएसपी की ओर से सत्यवीर गुर्जर को टिकट दिया है. यहां पर इन दोनों प्रत्याशी में मुख्य मुकाबला बताया जा रहा है.
सरधाना विधानसभा क्षेत्र
सरधाना सीट पर संगीत सोम बीजेपी के प्रत्याशी हैं. इन्हें समाजवादी पार्टी के अतुल प्रधान टक्कर दे रहे हैं. सोम वर्तमान विधायक है और अतुल अखिलेश यादव के करीबियों में से एक हैं. इस बार अखिलेश ने अपने करीबियों को सबसे ज्यादा अहम जिम्मेदारी दी है और खासकर उन सीटों पर उतारा है जहां पर मजबूत विपक्षी उम्मदीवार है. इस सीट पर हाजी याकूब कुरैशी के बेटे इमरान ने चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है. सरधना सीट मेरठ जिले में आती है, लेकिन लोकसभा मुजफ्फरनगर लगती है.
यहां करीब 3 लाख वोटर हैं. सपा यहां मुकाबले में तीसरे या चौथे स्थान पर रही है. कांग्रेस का कोई आधार नहीं है. मुख्य मुकाबला भाजपा, बसपा और लोकदल में रहता है. मुस्लिम बाहुल्य इलाका होने के बाद भी मुस्लिम वोट बसपा और सपा में बंट जाने का सीधा फायदा भाजपा को मिलता है. सरधना कपड़ा बाजार व गिरिजाघर के लिए मशहूर है. यहां 1822 में बनी रोमन कैथोलिक चर्च भी है और महाभारत काल की कुछ कड़ियां भी सरधना से जुड़ी हैं.
मथुरा विधानसभा सीट
भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा में मुकाबला प्रदीप बनाम राजनीति दल ही रहता है. प्रदीप की यहां बहुत अच्छी पकड़ है. वे लगातार तीन बार से विधायक हैं. प्रदीप कांग्रेस की ओर से ताल ठोक रहे हैं. भाजपा ने श्रीकांत शर्मा, बसपा ने योगेश द्विवेदी और लोकदल ने डॉ. अशोक अग्रवाल को मैदान में उतारा है. भाजपा पिछले तीन बार से दूसरे स्थान पर रही है. डॉ. अशोक भी कभी सपा से तो कभी बसपा से यहां किस्मत आजमा चुके हैं, लेकिन प्रदीप ने उनकी नहीं चलने दी. यहां करीब 70 हज़ार ब्राह्मण, करीब 60 हज़ार वैश्य, 30 हज़ार जाट और करीब 35 हज़ार मुस्लिम वोटर हैं. जाट वोट खासी तादाद में होने के कारण लोकदल की भी यहां अच्छी पकड़ रही है. प्रदीप को सपा-कांग्रेस गठबंधन का लाभ मुस्लिम वोटरों को आकर्षित करने किए सीधे तौर पर मिलेगा.
मेरठ विधानसभा क्षेत्र
मेरठ भारतीय जनता पार्टी के लिए सुरक्षित सीट रही है. पिछले चार बार से लगातार भाजपा के लक्ष्मीकांत वाजपेयी यहां से विधायक रहे हैं, लेकिन इस बार कांग्रेस-सपा गठबंधन ने वाजपेयी की कुर्सी की चूलें हिला दी हैं. यहां सांप्रदायिक धुव्रीकरण चुनावों पर हावी रहा है, इसलिए मुस्लिम वोटर, जो पिछली बार कांग्रेस, सपा और बसपा में बंट गया था, इस बार हाथ के सहारे साइकिल की सवारी करते नजर आ रहा है. मेरठ में करीब 3 लाख वोटों में से करीब सवा लाख मुस्लिम वोट हैं. करीब 90 हज़ार वैश्य और ब्राह्मण तथा 25 हज़ार दलित वोट हैं. यहां सपा से रफीक अंसारी और बसपा से पंकज जोली मैदान में हैं. यहां के मुसलमानों की यूपी की राजनीति में खासी घुसपैठ है. मीट का कारोबार यहां की राजनीति का प्रमुख केंद्र रहा है.
कैराना विधानसभा क्षेत्र
कैराना विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी की मृगांका सिंह और सपा के नाहिद हसन के बीच मुकाबला कहा जा रहा है. जानकारी के लिए बता दें कि पश्चिमी यूपी में 17 प्रतिशत आबादी जाटों की है यानि 403 सीटों में से 77 सीटों पर उनका कब्ज़ा है. कहा जाता है कि राज्य की करीब 50 सीटों का फैसला जाट समुदाय के हाथ में है.
(बीजेपी सांसद हुकुम सिंह)
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक जांच टीम ने पाया है कि उत्तर प्रदेश में कैराना से कई परिवारों ने ‘अपराध में बढ़ोतरी’ और वहां कानून एवं व्यवस्था की ‘गिरती’ स्थिति के डर से ‘पलायन’ किया. यही वजह है कि अजित सिंह की आरएलडी के गढ़ में बीजेपी मजबूत हो गई है. वैसे पिछले बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव हार चुके अनिल चौहान आरएलडी से चुनावी मैदान में हैं.
सादाबाद विधानसभा क्षेत्र
2007 में इस सीट पर आरएलडी प्रत्याशी अनिल चौधरी ने बाजी मारी थी. इस बार बीएसपी से रामवीर उपाध्याय, बीजेपी से प्रीति चौधरी और सपा से देवेंद्र अग्रवाल मैदान में हैं. इस सीट पर मुकाबला चौतरफा बताया जा रहा है.
अतरौली विधानसभा सीट
अतरौली विधानसभा सीट के बारे में यही कहा जा सकता है कि यह सीट बीजेपी के लिए नाक का प्रश्न रही है. यह सीट पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि जैसे कांग्रेस और खासकर के गांधी परिवार के लिए अमेठी और रायबरेली की सीटें हैं वैसे ही यह सीट बीजेपी या फिर कहे कल्याण सिंह के लिए उतनी ही महत्वपूर्ण है. कल्याण सिंह यहां से 9 बार चुनाव जीत चुके हैं.
(पूर्व बीजेपी नेता कल्याण सिंह)
2002 और 2007 में उनकी बहू ने यह सीट जीती. अब इस बार कल्याण सिंह के पोते संदीप सिंह इस सीट पार्टी प्रत्याशी हैं ताकि सीट को वापस सपा के कब्जे से छुड़ाया जाए. 2012 के चुनाव में सपा प्रत्याशी वीरेश यादव ने जीत हासिल की थी.
मुजफ्फरनगर विधानसभा सीट
समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव के नेतृत्व में बनी सरकार को मुजफ्फरनगर ने काफी परेशान किया. यहां पर हुए सांप्रदायिक दंगों ने पार्टी की छवि को काफी खराब किया और पहली बार ऐसा हुआ कि मुस्लिम समुदाय के लोग पार्टी से नाराज हुए. 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगों की वजह से लाखों लोगों को घर बार छोड़कर कड़ाके की ठंड में टेंट में रहना पड़ा था.
(दंगों के दौरान टेंट में रहते लोग)
2012 में यहां पर सपा प्रत्याशी चितरंजन स्वरूप जीते थे लेकिन इनकी मौत के बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी के कपिल देव ने बाजी पलट दी थी और पार्टी के जीत दिलाई. इस बार कपिल देव के सामने स्वरूप के बेटे गौरव मैदान मैं हैं. इनके अलावा पूर्व सरकारी कर्माचरी राकेश शर्मा बीएसपी के टिकट पर और पायल महेश्वरी आरएलडी के टिकट पर मैदान में हैं.
थाना भवन विधानसभा क्षेत्र
बीजेपी से यहां पर प्रत्याशी है सुरेश राणा. इनका नाम मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान मीडिया की सुर्खियों में रहा है. दंगों के आरोप इन पर भी लगे हैं. इस बार राणा पर अपनी सीट बचाने का दबाव है. उनके सामने सपा से सुधीर पंवार और आरएलडी से अब्दुल वारिश मैदान में हैं.
दादरी विधानसभा क्षेत्र
गाजियाबाद के दादरी का नाम मोहम्मद अखलाक की हत्या के बाद सबकी जुबान पर था. गोमांस को लेकर उठे विवाद में कुछ लोगों ने अखलाक को पीटपीटकर मार डाला. इस मामले की जांच जारी है.
(मोहम्मद अखलाक)
इस सीट पर बीजेपी तेजपाल नागर को प्रत्याशी बनाया है. बीएसपी की ओर से सत्यवीर गुर्जर को टिकट दिया है. यहां पर इन दोनों प्रत्याशी में मुख्य मुकाबला बताया जा रहा है.
सरधाना विधानसभा क्षेत्र
सरधाना सीट पर संगीत सोम बीजेपी के प्रत्याशी हैं. इन्हें समाजवादी पार्टी के अतुल प्रधान टक्कर दे रहे हैं. सोम वर्तमान विधायक है और अतुल अखिलेश यादव के करीबियों में से एक हैं. इस बार अखिलेश ने अपने करीबियों को सबसे ज्यादा अहम जिम्मेदारी दी है और खासकर उन सीटों पर उतारा है जहां पर मजबूत विपक्षी उम्मदीवार है. इस सीट पर हाजी याकूब कुरैशी के बेटे इमरान ने चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है. सरधना सीट मेरठ जिले में आती है, लेकिन लोकसभा मुजफ्फरनगर लगती है.
(बीजेपी नेतागण...)
यहां करीब 3 लाख वोटर हैं. सपा यहां मुकाबले में तीसरे या चौथे स्थान पर रही है. कांग्रेस का कोई आधार नहीं है. मुख्य मुकाबला भाजपा, बसपा और लोकदल में रहता है. मुस्लिम बाहुल्य इलाका होने के बाद भी मुस्लिम वोट बसपा और सपा में बंट जाने का सीधा फायदा भाजपा को मिलता है. सरधना कपड़ा बाजार व गिरिजाघर के लिए मशहूर है. यहां 1822 में बनी रोमन कैथोलिक चर्च भी है और महाभारत काल की कुछ कड़ियां भी सरधना से जुड़ी हैं.
मथुरा विधानसभा सीट
भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा में मुकाबला प्रदीप बनाम राजनीति दल ही रहता है. प्रदीप की यहां बहुत अच्छी पकड़ है. वे लगातार तीन बार से विधायक हैं. प्रदीप कांग्रेस की ओर से ताल ठोक रहे हैं. भाजपा ने श्रीकांत शर्मा, बसपा ने योगेश द्विवेदी और लोकदल ने डॉ. अशोक अग्रवाल को मैदान में उतारा है. भाजपा पिछले तीन बार से दूसरे स्थान पर रही है. डॉ. अशोक भी कभी सपा से तो कभी बसपा से यहां किस्मत आजमा चुके हैं, लेकिन प्रदीप ने उनकी नहीं चलने दी. यहां करीब 70 हज़ार ब्राह्मण, करीब 60 हज़ार वैश्य, 30 हज़ार जाट और करीब 35 हज़ार मुस्लिम वोटर हैं. जाट वोट खासी तादाद में होने के कारण लोकदल की भी यहां अच्छी पकड़ रही है. प्रदीप को सपा-कांग्रेस गठबंधन का लाभ मुस्लिम वोटरों को आकर्षित करने किए सीधे तौर पर मिलेगा.
मेरठ विधानसभा क्षेत्र
मेरठ भारतीय जनता पार्टी के लिए सुरक्षित सीट रही है. पिछले चार बार से लगातार भाजपा के लक्ष्मीकांत वाजपेयी यहां से विधायक रहे हैं, लेकिन इस बार कांग्रेस-सपा गठबंधन ने वाजपेयी की कुर्सी की चूलें हिला दी हैं. यहां सांप्रदायिक धुव्रीकरण चुनावों पर हावी रहा है, इसलिए मुस्लिम वोटर, जो पिछली बार कांग्रेस, सपा और बसपा में बंट गया था, इस बार हाथ के सहारे साइकिल की सवारी करते नजर आ रहा है. मेरठ में करीब 3 लाख वोटों में से करीब सवा लाख मुस्लिम वोट हैं. करीब 90 हज़ार वैश्य और ब्राह्मण तथा 25 हज़ार दलित वोट हैं. यहां सपा से रफीक अंसारी और बसपा से पंकज जोली मैदान में हैं. यहां के मुसलमानों की यूपी की राजनीति में खासी घुसपैठ है. मीट का कारोबार यहां की राजनीति का प्रमुख केंद्र रहा है.
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