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सिक्किम से 11 गुना जहरीली दिल्ली की हवा, AQI 400 के करीब, आखिर कब मिलेगी राहत की सांस

पराली जलाने की घटनाएं कई सालों में सबसे कम होने के बावजूद, दिल्ली-एनसीआर की सर्दियों की हवा दमघोंटू बनी हुई है.

सिक्किम से 11 गुना जहरीली दिल्ली की हवा, AQI 400 के करीब, आखिर कब मिलेगी राहत की सांस
एआई जेनरेटेड इमेज
  • दिल्ली की हवा में प्रदूषण का स्तर बहुत खराब श्रेणी में पहुंच चुका है, जिससे सांस संबंधी रोगों का खतरा बढ़ा
  • सुबह छह बजे दिल्ली का औसत AQI 300 के ऊपर दर्ज किया गया जो फेफड़ों के लिए अत्यंत हानिकारक है
  • देश की राजधानी में सड़कों पर धूल जमाव प्रदूषण का एक मुख्य कारण बना हुआ है
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नई दिल्ली:

दिल्ली की हवा अब सिर्फ सांसों का सहारा नहीं, बल्कि परेशानी का भी सबब बन चुकी है. सुबह की पहली किरण के साथ जैसे ही धुंध शहर को अपने आगोश में लेती है, उसी के साथ इंसान के शरीर में जहर भी घुलता जा रहा है. हर गली, हर सड़क पर ऐसे छोटे और अदृश्य कणों का साम्राज्य फैला हुआ है, जो फेफड़ों में घुसकर जीवन की डोर को लगातार कच्चा करता जा रहा है. यह शहर अब ऑक्सीजन नहीं, हर सांस के साथ जहर उगल रहा है. सुबह 6 बजे का औसत AQI 331 दर्ज किया गया, जो ‘बहुत खराब' श्रेणी में दर्ज किया गया है. जहां सिक्किम के गंगटोक की हवा फेफड़ों को सुकून देती है, वहीं दिल्ली की हवा 11 गुना ज़्यादा ज़हर घोल रही है. एक तरफ़ जहां गंगटोक में 35 एक्यूआई है, वहीं राजधानी में 400 के करीब.

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दिल्ली में आज किन इलाकों में सबसे ज्यादा प्रदूषण

इलाकाAQI
चांदनी चौक392
विवेक विहार392
बवाना387
आनंद विहार381
दिलशाद गार्डन377
नेहरू नगर372
नरेला362
वजीरपुर362
बुराड़ी क्रॉसिंग361

अक्टूबर, नवंबर के ज़्यादातर समय, प्रदूषण का स्तर 'बेहद खराब' और 'गंभीर' के बीच रहा, जिसकी वजह मुख्य रूप से वाहनों और अन्य स्थानीय स्रोतों से निकलने वाला PM 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) का बढ़ता 'ज़हरीला मिश्रण' है.
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यह हवा फेफड़ों के लिए बेहद हानिकारक है. विशेषज्ञों के मुताबिक, इस स्तर पर लंबे समय तक रहने से सांस की बीमारियां, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और हार्ट डिज़ीज़ का खतरा बढ़ जाता है.

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दिल्ली में चला ऑपरेशन क्लीन एयर

(सीएक्यूएम) ने रविवार को बताया कि राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर मौजूद धूल, प्रदूषण का एक प्रमुख कारण बनी हुई है.‘ऑपरेशन क्लीन एयर' के तहत दिल्ली भर में 321 सड़कों का निरीक्षण किया. निरीक्षण का उद्देश्य यह पड़ताल करना था कि सड़कों पर कितनी धूल जमी है और क्या दिल्ली नगर निगम (एमसीडी), नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) और केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) सफाई, झाड़ू लगाने और धूल-निरोधक उपाय के लिए जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं या नहीं.

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सड़कों की धूल बड़ी समस्या

जिन 321 मार्गों का निरीक्षण किया गया, उनमें से 35 पर धूल का स्तर बहुत अधिक, 61 पर मध्यम और 94 पर धूल का स्तर कम दिखाई पड़ा जबकि 131 मार्गों पर धूल नहीं दिखाई दी. आयोग ने एक बयान में बताया कि नतीजे एक बार फिर इस बात पर जोर देते हैं कि सड़कों पर धूल, खासकर सर्दियों में, दिल्ली में प्रदूषण का एक प्रमुख कारक है. बयान के मुताबिक, आयोग ने बताया कि इस समस्या से निपटने के लिए नियमित रूप से यांत्रिक सफाई, जमा हुई धूल को समय पर हटाना, फुटपाथों का रखरखाव और पानी का छिड़काव जरूरी है.

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सड़कों की सफाई तेज करने की जरूरत

जिन मार्गों की पड़ताल की गई, उनमें से सबसे अधिक 182 मार्ग एमसीडी के नियंत्रण वाली थीं और ज्यादा धूल वाले सभी सभी 35 क्षेत्र निगम के अधिकार क्षेत्र में पाए गए. बयान में बताया गया कि 50 हिस्सों में धूल का स्तर मध्यम, और 70 में यह कम रहा, जबकि 27 मार्गों पर धूल नहीं मिली. आयोग ने बताया कि इससे पता चलता है कि एमसीडी को सड़कों की सफाई तेज करने की जरूरत है, खासकर उन हिस्सों में जहां धूल बार-बार आ जाती है. बयान में बताया गया कि तुलनात्मक रूप से एनडीएमसी का प्रदर्शन बेहतर रहा.

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प्रदूषण का कारण पराली जलाया जाना नहीं

पराली जलाने की घटनाएं कई सालों में सबसे कम होने के बावजूद, दिल्ली-एनसीआर की सर्दियों की हवा दमघोंटू बनी हुई है. अक्टूबर और नवंबर के ज़्यादातर समय, प्रदूषण का स्तर 'बेहद खराब' और 'गंभीर' के बीच रहा, जिसकी वजह मुख्य रूप से वाहनों और अन्य स्थानीय स्रोतों से निकलने वाला पीएम 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) और कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) का बढ़ता 'ज़हरीला मिश्रण' है.

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सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के एक नए विश्लेषण के अनुसार, दिल्ली के कम से कम 22 वायु-गुणवत्ता निगरानी केंद्रों पर 59 दिनों का अध्ययन किया गया जिनमें से 30 से ज्यादा दिनों तक कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) का स्तर तय सीमा से ऊपर रहा. द्वारका सेक्टर-8 में सबसे ज्यादा 55 दिन कार्बन मोनोऑक्साइड की सीमा अधिक रही. इसके बाद जहांगीरपुरी और दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तर परिसर रहे, जहां 50 दिनों तक कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर सीमा से ज्यादा पाया गया. विश्लेषण में राजधानी में प्रदूषण के बढ़ते हुए चिंताजनक क्षेत्रों पर भी प्रकाश डाला गया है.

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