- दिल्ली के 40 मॉनिटरिंग स्टेशनों में से आधे पर एयर क्वालिटी इंडेक्स 400 से ऊपर दर्ज किया गया है
- रोहिणी के स्वर्ण जयंती पार्क में लोग प्रदूषण के बावजूद दौड़, योग और टहलने जैसी गतिविधियां जारी रखे हुए हैं
- बुजुर्गों का मानना है कि प्रदूषण के बावजूद चलना-फिरना स्वास्थ्य के लिए आवश्यक और जरूरी है
दिल्ली की आबोहवा अभी भी बेहद ख़राब श्रेणी में दर्ज है. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के मुताबिक़ राजधानी के 40 में से 20 मॉनिटरिंग स्टेशनों पर एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 400 से ऊपर पहुंच चुका है. GRAP-4 लागू होने के बावजूद ज़मीन पर हालात कुछ और ही तस्वीर पेश कर रहे हैं. रोहिणी का स्वर्ण जयंती पार्क इसकी एक झलक दिखाता है, जहां रविवार की सुबह प्रदूषण के बीच भी ज़िंदगी रुकती नज़र नहीं आई.

प्रदूषण के बीच भी पार्क में ज़िंदगी जारी
पार्क में दौड़ते, टहलते, योग करते और खिलखिलाते लोग यह सवाल छोड़ जाते हैं कि क्या लोग प्रदूषण की गंभीरता को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं या फिर इसे स्वीकार कर जीने का रास्ता चुन चुके हैं. 38 साल के सौरभ, जो एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं, रविवार सुबह करीब 10 किलोमीटर दौड़ पूरी कर चुके थे और अब वॉर्म-अप कर रहे थे. सौरभ कहते हैं, “पिछले 3-4 साल से यही रूटीन है. जब तक दौड़ नहीं लेता, चैन नहीं मिलता. प्रदूषण है, मानता हूं, लेकिन मास्क पहनकर रनिंग मुझसे नहीं हो पाती. पेड़-पौधों के बीच दौड़कर अच्छा महसूस करता हूं.”

बुजुर्गों की राय—“चलना-फिरना ज़रूरी”
इसी पार्क में 62 साल के एक वेटनरी डॉक्टर भी किसी युवा की तरह एक्सरसाइज करते दिखे. वे हर हफ्ते रुड़की से रोहिणी अपने परिवार से मिलने आते हैं. उनके साथ उनकी पत्नी भी पार्क में टहलती हैं। उनका कहना है, “प्रदूषण है, हमें पता है, लेकिन अगर हम ये सब छोड़ दें तो शरीर जाम हो जाएगा, चलना-फिरना बंद हो जाएगा.”

लाफ्टर क्लब और भजन-कीर्तन का माहौल
सुबह-सुबह लाफ्टर क्लब बनाकर ठहाके लगाने वाले बुजुर्गों का एक समूह भी यहां मौजूद था. 65 से 75 साल की उम्र के ये लोग मास्क साथ लेकर आते हैं, लेकिन योग और लाफ्टर के दौरान मास्क उतार देते हैं. उनका कहना है कि वे एहतियात बरतते हैं, लेकिन हंसी और सामाजिक मेलजोल को छोड़ नहीं सकते. पार्क के एक कोने में भजन-कीर्तन का माहौल था. ‘राम कुटिया' के बैनर तले भजन गाते लोगों ने बाद में मिठाई, ढोकला और चाय के साथ अपने 74 साल के साथी का जन्मदिन भी मनाया. इस समूह में कोई आईबी, प्लानिंग कमीशन या बैंक से रिटायर्ड 75-80 साल के बुजुर्ग थे तो कुछ आज भी अपना बिज़नेस संभाल रहे हैं. सभी का एक ही कहना था कि सुबह का ये मिलना-जुलना उनकी रोज़ की “खुराक” है, इसके बिना दिन अधूरा लगता है.
महिलाएं और युवा भी सक्रिय
युवा भी पीछे नहीं रहे, कुछ लोग नौकरी से वक्त निकालकर संडे को ‘फनडे' मानते हुए फुटबॉल खेलने पहुंचे थे. बड़ी संख्या में महिलाएं भी पार्क में टहलती और एक्सरसाइज करती दिखीं. मोर, पक्षियों और हरियाली के बीच भले ही स्वर्ण जयंती पार्क के आसपास का AQI 444 तक पहुंच चुका हो, लेकिन बच्चे, युवा और बुज़ुर्ग तीनों ही उम्र के लोग छुट्टी के दिन भी बेफिक्री से फिजिकल एक्टिविटी करते नज़र आए.

मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता
ज़्यादातर लोगों का मानना है कि कोरोना काल में घरों में बंद रहकर उन्होंने मानसिक परेशानियों का जो दौर झेला, उससे उन्होंने सबक लिया. अब कोशिश यही रहती है कि कुछ वक्त गैजेट्स से दूर रहें, लोगों से मिलें-जुलें और सामाजिक प्राणी होने के नाते एक-दूसरे के साथ ग़म और ख़ुशियां बांटें. उनके मुताबिक़ प्रदूषण के बीच भी वे सावधानी बरतेंगे, लेकिन योग, दौड़, एक्सरसाइज और सामाजिक मेलजोल से भरी अपनी सक्रिय दिनचर्या नहीं छोड़ेंगे.
ज़िंदगी को थामे रखने की जद्दोजहद
दिल्ली की हवा भले ही सांस लेना मुश्किल बना रही हो, लेकिन पार्कों में लोग यह संदेश देते दिखे कि ज़िंदगी को थामे रखने की कोशिश अभी भी जारी है, चाहे AQI कितना ही क्यों न बढ़ जाए.
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