बिहार की पोस्टर पॉलिटिक्स : मिहिर गौतम

बिहार की पोस्टर पॉलिटिक्स : मिहिर गौतम

नई दिल्‍ली:

बिहार का पैकेज पॉलिटिक्स बेशक सुर्खियों में हो, लेकिन पटना पहुंचते ही अहसास हो जाता है कि वोट के लिए पोस्टर पॉलिटिक्स की भी अहमियत है। प्लेटफॉर्म से बाहर आते वक्त आपको चारों तरफ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नज़र आते हैं।

बिहार बीजेपी के नेता गायब हैं, इसके पीछे की रणनीति बीजेपी बेहतर समझती होगी। वैसे नीतीश कुमार के पोस्टर भी नहीं दिखें। लगा जैसे वाकई बीजेपी ने पोस्टर पर काफी ध्यान दिया है और रेस में वो आगे है। लेकिन स्टेशन से बाहर आते ही ये सोच बदलती दिखती है, पीएम नरेंद्र मोदी के पोस्टर तो कम नहीं होते, लेकिन नीतीश के बड़े-बड़े पोस्टर ये बता देते हैं कि पोस्टर के मामले में मुक़ाबला एक तरफ़ा तो बिल्कुल नहीं है। दोनों दलों का अपना-अपना गठबंधन है, लेकिन पोस्टर में गठबंधन गायब है। या तो नीतीश हैं या प्रधानमंत्री मोदी।
 

जेडीयू के पोस्टर में फिर एक बार नीतीश कुमार हैं तो बीजेपी के पोस्टर में अपराध, भ्रष्टाचार और अहंकार, क्या इस गठबंधन से बढ़ेगा बिहार। बीजेपी बिहार सरकार पर सवाल उठा रही है तो फिर एक बार नीतीश कुमार के नारे पर जेडीयू को जीत का भरोसा है। लेकिन हैरानी की बात है बिहार में 15 साल तक सत्ता में रहे लालू प्रसाद पोस्टरों से क्यों गायब हैं। बहुत ढूंढने पर लालू प्रसाद यादव का भी पोस्टर दिखा, जिसमें नीतीश नहीं दिखे, हां राबड़ी ज़रूर थीं।
 

खैर पोस्टर के साथ मेरा सफ़र जारी रहा और मैं पहुंच गया उस गांधी सेतु पुल पर, जो उत्तर बिहार को राजधानी से जोड़ता है। पुल की हालत लगातार बिगड़ रही है, लेकिन इस पुल को लेकर पोस्टर में कहीं कोई ज़िक्र नहीं है। ये बात हैरान करती है, जिस पुल से हज़ारों गाड़ियां गुज़रती हैं, वो पुल कब तक टिका रहेगा, कहना बहुत मुश्किल है।
 

चलिए अरसे बाद पुल पर जाम नहीं मिला और बिहार के वैशाली पहुंच गया। नीतीश और पीएम मोदी के पोस्टर तो कम नहीं हुए, लेकिन अब आरजेडी के पोस्टर दिखने लगे। लालू प्रसाद से ज़्यादा उनके बेटे इलाकों में पोस्टर के ज़रिए स्वागत करते नज़र आए। महुआ में तेज प्रताप तो वहीं राघोपुर में तेजस्वी के पोस्टरों की बाढ़ है। वैसे दूसरे दल के लोग भी दमखम लगाते दिख रहे हैं।
 

लेकिन मुज़फ़्फ़रपुर पहुंचते-पहुंचते फिर नीतीश और पीएम मोदी के पोस्टर शुरू हो जाते हैं, बाकी पोस्टरों का कद शायद इतना ऊंचा नहीं कि वो दिखें। खैर चुनाव नज़दीक है और मुक़ाबला आमने-सामने का है। बस जो बात खटकती है वो है व्यक्तिवाद की तरफ़ बढ़ती राजनीति। जितनी बड़ी तस्वीरें लगी हैं, अगर उसमें योजनाएं या कामों का ज़िक्र होता तो जनता को भी तय करने में शायद आसानी होती कि किसका साथ दें। ख़ैर जनता समझदार है और वो पोस्टर पॉलिटिक्स और पैकेज पॉलिटिक्स पर नहीं बल्कि उसे चुनेगी जिसकी बातों में होगा दम।
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