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This Article is From Oct 12, 2015

निधि का नोट : सही नीयत के इंतजार में बिहार...

Reported By Nidhi Kulpati
  • चुनावी ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 12, 2015 22:26 pm IST
    • Published On अक्टूबर 12, 2015 20:35 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 12, 2015 22:26 pm IST
बिहार में विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं और इसी सरगरमी के बीच मुझे यहां एक बार फिर जाने का मौका मिल गया। पिछले साल लोकसभा चुनावों में पंजाब की बजाय बिहार को चुना था। एक उत्सुक्ता थी उस राज्य को समझने की जिसे कई मापदंडों में पिछड़ा हुआ बताया गया। वो छवि पिछले साल ऐसी बदली कि इस साल जाने में समय नहीं गंवाया। पिछले साल बिहार की सड़कों और शौचालयों ने सफर में कोई दिक्कत नहीं आने दी। हंसिएगा नहीं, लेकिन जब दिन में 400-500 किलोमीटर सफर सड़क के जरिए करना हो तो ये दोनों चीजें बहुत मायने रखती हैं।

तो इस बार विधानसभा चुनावों के लिए मैंने मुद्दों को चुना। जाने से पहले स्टूडियो में एक दिन बिहार से वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि उनकी शादी के समय गांव में बिजली के लिए पोल लग गया था, ससुरजी ने बड़े गर्व से कहा था जमाईबाबू 6 महीने में बिजली आ जाएगी। 38 साल बीत गए, आजतक बिजली नहीं आई। बस इसी बात से इच्छा बढ़ गई कि क्यों न जायजा लिया जाए। बिहार के कई ऐसे गांव हैं जहां बिजली नहीं है, और बिहार ही क्यों देशभर में कई हैं। तो क्यों न इसी से शुरुआत हो।

पटना पहुंच कर पहले हमने रुख किया गोपालगंज का। वैशाली, सीवान होते हुए मीरगंज के रास्ते पहुंचे गोपालगंज के एक गांव। हैरत थी कि किस तरह सोलर एनर्जी से यहां लोग अपना काम चला रहे थे। सबके पास फोन था, घर साफ सुथरे थे, लोगों में बदलाव के लिए आवाज थी। एक ने बुलन्द आवाज में कहा था कि ओबीसी होने के बावजूद भी असहाय हैं। शाम होते ही अंधेरा हर ओर छा गया, लेकिन जाते-जाते अच्छा लगा कि बच्चे लालटेन की रोशनी में मन लगा कर पढ़ रहे थे, अंग्रेजी बोल रहे थे, साफ लहज़े में। मन को सुकून सा मिला, 21वीं सदी में हमारे नेता भले ही हमें मूलभूत सुविधाएं न दें, देश आगे बढ़ जाएगा।

ये वो राज्य था जहां से पढ़ाई पूरी करके मेरे कई सहयोगी आते हैं। क्यों इतना पलायन होता है इस राज्य से, क्यों इतना असुरक्षित लोग महसूस करते थे। 15 साल के लालू राज को तो सब कोसते हैं, लेकिन उससे पहले 10 साल तक कांग्रेस ने 6 मुख्यमंत्री बदले, जिससे राजनीतिक अस्‍थिरता रही।

नीतीश-बीजेपी के 10 साल में हालात बदले। फिरौती के कारोबार पर लगाम लगी, लेकिन व्यवस्था और संगठनों को पटरी पर लौटने में समय लग गया। देश के साथ यहां का युवा आगे बढ़ गया। चाहे दिल्ली में शिक्षण संस्थान हों या फिर रोजगार के अवसर, लोग रुके नहीं पलायन कर गए। अनपढ़ मजदूर भी कमाई के लिए बाहर निकल गए।

बिहार में पटना से बाहर निकलते ही लम्बे लम्बे खेत नजर आते हैं, हरियाली चारों ओर छाई दिखती है, लोग कम दिखे, हालांकि जनसंख्या के लिहाज से यहां पॉपुलेशन डेन्सिटी देश भर में सबसे ज्यादा है। यह राज्य विकास के लिए बेताब सा है, ज़रूरत है सही नीयत की।

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