नई दिल्ली: खरही के ऊंचे पौधों के बीच संकरी कच्ची सड़क पर जब हम आगे बढ़े तो हमें भाड़े की बोलेरो गाड़ी किसी वरदान से कम नहीं लगी। आमतौर पर शहरों को जोड़ने वाली सड़क की शानदार हालत मुख्य सड़क से हटते ही थोड़ी पतली हो जाती है। ग्रामीण सड़कों की हालत चमचमाते हाईवेज़ से उलट है।
वैसे भी बक्सर में गंगा के तीरे जिन इलाक़ों में हम घूम रहे थे वो गंगा की बाढ़ और उसकी धार से होने वाले कटाव के लिए जाने जाते हैं। बरसात और बाढ़ के दिनों में ये कटाव इतना ज़्यादा होता है कि साल भर में नदी 100 मीटर तक खिसक जाती है। किनारों को काट कर धारा नया प्रवाह ले लेती है। खेत के खेत अपने में समा लेती है।
नैनीजोर, माणिकपुर, अर्जुनपुर और केशवपुर... ये तमाम ऐसे इलाक़े हैं जहां कटान अपने उग्रतम रूप में नज़र आती है। उमरपुर गांव के निवासी सत्येन्द्र ठाकुर बताते हैं कि बक्सर की आधी आबादी कटाव की समस्या से पीड़ित है लेकिन सुनने वाला कोई नहीं। कुछ नवयुवकों ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की। इलाक़े के लोगों ने चुनाव के बहिष्कार भी किया। फिर कोर्ट के आदेश के बाद रेत की बोरियां और पत्थर से किनारों को पाटने का काम शुरू हुआ। लेकिन ये इतनी धीमी गति से हुआ है कि नदी की धार के पैनेपन के आगे नाकाफी साबित हो रहा है। कुछ किनारे पत्थर से पाटे गए हैं तो कही रेत की बोरी से काम चलाया गया है। लेकिन बोरियां सड़ गई हैं और उसमें भरी रेत फिर से नदी में समा गई है। सैंकड़ो एकड़ उपजाऊ ज़मीन कट चुकी है। सैंकड़ो एकड़ कटान की कगार पर है।
कटान की ये समस्या एक और समस्या की जनक है। नदी बक्सर के किनारों को काट रही है जो कि बिहार में पड़ता है। वहीं गंगा बलिया की तरफ रेतीली ज़मीन छोड़ रही है जो यूपी में पड़ता है। कटान में खोयी अपनी ज़मीन को बक्सर वासी नदी पार बलिया में ऊपर हुई ज़मीन में तलाशने जाते हैं। उस पर दावा करते हैं। लेकिन बलिया के लोग उस पर अपना ही दावा जता बैठ जाते हैं। केशवपुर के मृत्युंजय बताते हैं कि हर कोई कटान में गई अपनी ज़मीन पाना चाहता है। ऐसे में जिस किनारे पर रकबा बढ़ता है, उधर किसानों को ज़मीन देने की व्यवस्था होनी चाहिए।
लेकिन ऐसा होता नहीं और गांव वाले आपस में उलझ जाते हैं। नतीजा कई बार गोली चलने तक की नौबत आ चुकी है। कई मामलों को प्रशासन सुलझा लेता है कि लेकिन समस्या इतनी व्यापक है कि वो भी हाथ खड़े कर देता है। मामला यूपी और बिहार की सरकार मिल कर सुलझा सकती है। लेकिन राजनेता कोर्ट के भरोसे बैठने को कहते हैं। केशवपुर के प्रवीण कुमार राय कहते हैं कि नेता हर चुनाव से पहले वादा कर जाते हैं लेकिन चुनाव के बाद बैठ जाते हैं। इस चुनाव में भी नेता हर संभव अपने पक्ष में वोट जुटाने, प्रतिपक्षी के वोट काटने की कोशिश में लगे हैं। इस बीच गंगा अपनी रफ्तार से ज़मीन काटती जा रही है। गांव के लोग कहते हैं कि नेता वोट की फसल के लिए अपनी नई ज़मीन बना लेते हैं, हमें कहां से अपनी खोई ज़मीन मिलेगी।