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This Article is From Sep 21, 2015

बाबा की कलम से : बिहार चुनाव में भाई-भतीजावाद, दामादों का दम कम

Manoranjan Bharati
  • चुनावी ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 21, 2015 19:03 pm IST
    • Published On सितंबर 21, 2015 18:47 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 21, 2015 19:03 pm IST
बिहार चुनाव में दामादों की पूछ कम होने से रिश्तों पर असर होता दिख रहा है। वैसे तो बिहार और बंगाल में दामादों की खातिरदारी खूब होती है, मगर चुनाव तो चुनाव है, यहां सब जायज होता है।

राबर्ट वाड्रा गांधी परिवार के दामाद हैं तो खूब सुर्खियां बटोरते हैं। सरकार ने अब उन्हें वीआईपी लिस्ट से हटा दिया है। अब उन्हें देश के हवाईअड्डों पर सुरक्षा जांच से गुजरना होगा। वहीं बिहार के दामाद अब सुर्खियों में आ रहे हैं। रामविलास पासवान के दामाद अनिल साधु टिकट नहीं मिलने पर फूट-फूट कर रो रहे हैं, वहीं चिराग पासवान उन्हें मनाने या घर की बात कह कर मामला टालना चाहते हैं। वैसे पासवान परिवार में पहले परिवार होता है बाकी बाद में। पासवान ने तीन टिकट अपने परिवार में बांटे लेकिन सारी टिकट भाई भतीजों में बंट गई। जाहिर है, दामाद बाबू को बुरा लगा होगा...यह कैसा परिवारवाद है कि ससुर की पार्टी पर दामाद का पहले हक होना चाहिए। वहीं जीतन राम मांझी ने भी अपने बेटे को तो टिकट दिया मगर दामाद को भूल गए। अब उनके दामाद देवेन्द्र मांझी ने कहा है कि वे निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे अब मांझी उन्हें मनाने की कोशिश कर रहे हैं।

उधर लालू यादव ने हाल में ही अपनी बेटी की शादी मुलायम सिंह यादव के भतीजे से की है मगर बिहार में कम सीट मिलने की वजह से समाजवादी पार्टी ने लालू - नीतीश गठबंधन से अलग होकर एक नया मोर्चा बनाया है। जब किसी ने लालू यादव के दामाद से पूछा कि क्या आप समाजवादी पार्टी के लिए प्रचार करेंगे तो उन्हें जवाब नहीं सूझ पा रहा था... कह दिया कि यह नेताजी तय करेंगे। यानि बिहार चुनाव में दामादों के सामने एक धर्मसंकट जैसी हालत पैदा हो गई है। ससुर की पार्टी पर घटती पकड़ से यह सारे दामाद परेशान हैं, मगर उनका संघर्ष जारी है। देखते हैं कि दहेज के तौर पर टिकट का दावा करने वाले इन दामादों का संघर्ष कितना रंग लाता है।

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