भारतीय रुपया 9 जनवरी, गुरुवार को अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया. अमेरिकी करेंसी के मजबूत रुख और कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के बीच रुपया शुरुआती कारोबार में एक पैसे की गिरावट के साथ 85.92 प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया. इसके साथ ही रुपये में लगातार तीसरे कारोबारी सत्र में गिरावट जारी रही.
भारतीय रुपया क्यों लगातार हो रहा कमजोर?
अमेरिकी बॉन्ड यील्ड्स में वृद्धि और नॉन-डिलिवरेबल फॉरवर्ड्स (NDF) मार्केट में डॉलर की मजबूत मांग के चलते भारतीय रुपये की वैल्यू में गिरावट आई. विदेशी मुद्रा कारोबारियों के अनुसार, अमेरिकी बॉण्ड पर अधिक प्रतिफल और विदेशी पूंजी की निरंतर निकासी के कारण अमेरिकी डॉलर को मजबूती मिली. वहीं, घरेलू शेयर बाजारों में गिरावट के चलते भी रुपया और कमजोर हुआ.
इससे पहले रुपया बुधवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 17 पैसे टूटकर 85.91 के अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ था.
डॉलर इंडेक्स गिरावट के बावजूद मजबूत स्तर पर
वहीं, छह प्रमुख करेंसी के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर इंडेक्स में हालांकि 0.11 प्रतिशत की गिरावट आई लेकिन वह 109 के मजबूत स्तर पर था. बुधवार को इसमें 0.3% की वृद्धि आई थी, जबकि एशियाई करेंसी मिलीजुली स्थिति में थीं.
10 साल की अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड बुधवार को 4.73% तक पहुंच गई, जो अप्रैल 2024 के बाद का सबसे ऊंचा स्तर था, हालांकि एशिया में कारोबार के दौरान इसमें थोड़ी कमी आई.
रुपया निकट भविष्य में 86 के आसपास बने रहने की संभावना
ट्रेडर्स ने बताया कि सरकारी बैंक डॉलर की बिक्री करते हुए नजर आए, जो संभवतः भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ओर से था, जिससे रुपया कुछ हद तक गिरावट से बच पाया. एक निजी बैंक के ट्रेडर के अनुसार, "आरबीआई हमेशा की तरह सक्रिय है, जिससे रुपया निकट भविष्य में 86 के आसपास बने रहने की संभावना है."
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