प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली:
बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गरीबों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए अमेरिका में 'ओबामा केयर' की तर्ज पर 'मोदी केयर' जैसी योजना का ऐलान किया. सरकार ने 50 करोड़ लोगों को पांच लाख रुपये सालाना बीमा कवरेज की घोषणा की. इन बीमा योजनाओं का प्रीमियम सरकार देगी. लेकिन यह भी सच है कि दो साल पहले किए गए ऐलान पर अभी कुछ नहीं हुआ है.
जिस समय वित्तमंत्री संसद में विराट स्वास्थ्य बीमा योजना का ऐलान कर रहे थे 50 साल के रोहतास राम मनोहर लोहिया अस्पताल के बाहर धक्के खा रहे थे. केवल नौ हज़ार रुपये तनख्वाह वाले इस मज़दूर के पास पहले से चली आ रही कोई सरकारी बीमा योजना नहीं है. रोहतास ने एनडीटीवी इंडिया को बताया कि आदमी के लिए बीमा योजना सुविधाजनक विकल्प नहीं है क्योंकि सरकारी अस्पतालों की हालत खराब है और निजी अस्पताल बहुत महंगे हैं.
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रोहतास की तरह करोड़ों गरीबों के पास कोई स्वास्थय बीमा योजना नहीं है. पहले यूपीए सरकार के वक्त 30 हज़ार रुपये सालाना के हेल्थ कवरेज का ऐलान हुआ जिसके लिए सालाना कुल 1100 करोड़ प्रीमियम खर्च करना पड़ता है. एनडीए सरकार ने दो साल पहले एक लाख रुपये के कवरेज का वादा किया
जिसका फायदा अब तक किसी को नहीं मिल पाया, यानी योजना ठप है.
अब सरकार 50 करोड़ लोगों को पांच साल सालाना हेल्थ बीमा का सब्ज़बाग दिखा रही है. 30 हज़ार रुपये की बीमा योजना के लिए सरकार को 750 रुपये प्रीमियम देना होता है और इस हिसाब से पांच लाख रुपये बीमा कवरेज के लिए 12000 रुपये की किस्त जमा करनी होगी. जानकारों के मुताबिक इतना बीमा देने के लिए सरकार को हर साल कुल सवा लाख करोड़ रुपये का प्रीमियम देना होगा जो केंद्र और राज्य सरकारों के सम्मिलित हेल्थ बजट से अधिक है.
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हेल्थ इकॉनोमिस्ट इंद्रनील मुखर्जी का कहना है, 'नेशनल हेल्थ मिशन जो कि केंद्र सरकार की सबसे महत्वपूर्ण योजना है जिसके तहत बच्चों और महिलाओं को सरकारी स्वास्थ्य सेवा भी मुहैया कराई जाती हैं. उसमें 770 करोड़ की कटौती हुई है. इससे बच्चों और माताओं की मृत्यु दर बढ़ने का डर है, दूसरी ओर सरकार ने जो सरकारी बीमा योजना के विस्तार का ऐलान किया है उसका प्रीमियम ही अगर देखें तो केंद्र सरकार के पिछले साल के कुल स्वास्थ्य बजट का तीन गुना बनता है. 2015 के आंकड़े हमारी पास पूरी तरह उपलब्ध हैं जिसमें केंद्र और राज्यों का कुल स्वास्थ्य बजट 1 लाख 30 हजार करोड़ था और सरकार ने जो ऐलान किया है उससे कुल प्रीमियम ही इतना या इससे ज्यादा ही बनेगा.'
सरकार अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के वक्त प्रचलित हुई 'ओबामा केयर' की तरह 'मोदी केयर' शुरू करना चाहती है लेकिन सरकार के मौजूदा आंकड़े को सही भी मानें तो अभी देश की 25 प्रतिशत आबादी ही आज सरकारी बीमा कवरेज में है. बेहतर सरकारी अस्पतालों के अभाव में उन्हें ज्यादातर खर्च अपनी जेब से ही करना पड़ता है और अगर वे निजी अस्पतालों में जाते हैं तो लूटे जाते हैं.
VIDEO : 50 करोड़ लोगों के कैशलेस इलाज का वादा
सवाल है कि जब गरीब सरकारी अस्पतालों के बाहर लोग परेशान घूम रहे हैं और बीमा योजनाओं का फायदा मरीज से अधिक बीमा कंपनियों को होता है तो सरकारी अस्पतालों के हाल सरकार क्यों ठीक नहीं करती. क्योंकि इतने पैसे से तो सरकारी अस्पतालों को दुरस्त करने, दवाइयों का इंतज़ाम करने और लाखों लोगों को रोजगार दिया जा सकता है.
जिस समय वित्तमंत्री संसद में विराट स्वास्थ्य बीमा योजना का ऐलान कर रहे थे 50 साल के रोहतास राम मनोहर लोहिया अस्पताल के बाहर धक्के खा रहे थे. केवल नौ हज़ार रुपये तनख्वाह वाले इस मज़दूर के पास पहले से चली आ रही कोई सरकारी बीमा योजना नहीं है. रोहतास ने एनडीटीवी इंडिया को बताया कि आदमी के लिए बीमा योजना सुविधाजनक विकल्प नहीं है क्योंकि सरकारी अस्पतालों की हालत खराब है और निजी अस्पताल बहुत महंगे हैं.
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रोहतास की तरह करोड़ों गरीबों के पास कोई स्वास्थय बीमा योजना नहीं है. पहले यूपीए सरकार के वक्त 30 हज़ार रुपये सालाना के हेल्थ कवरेज का ऐलान हुआ जिसके लिए सालाना कुल 1100 करोड़ प्रीमियम खर्च करना पड़ता है. एनडीए सरकार ने दो साल पहले एक लाख रुपये के कवरेज का वादा किया
जिसका फायदा अब तक किसी को नहीं मिल पाया, यानी योजना ठप है.
अब सरकार 50 करोड़ लोगों को पांच साल सालाना हेल्थ बीमा का सब्ज़बाग दिखा रही है. 30 हज़ार रुपये की बीमा योजना के लिए सरकार को 750 रुपये प्रीमियम देना होता है और इस हिसाब से पांच लाख रुपये बीमा कवरेज के लिए 12000 रुपये की किस्त जमा करनी होगी. जानकारों के मुताबिक इतना बीमा देने के लिए सरकार को हर साल कुल सवा लाख करोड़ रुपये का प्रीमियम देना होगा जो केंद्र और राज्य सरकारों के सम्मिलित हेल्थ बजट से अधिक है.
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हेल्थ इकॉनोमिस्ट इंद्रनील मुखर्जी का कहना है, 'नेशनल हेल्थ मिशन जो कि केंद्र सरकार की सबसे महत्वपूर्ण योजना है जिसके तहत बच्चों और महिलाओं को सरकारी स्वास्थ्य सेवा भी मुहैया कराई जाती हैं. उसमें 770 करोड़ की कटौती हुई है. इससे बच्चों और माताओं की मृत्यु दर बढ़ने का डर है, दूसरी ओर सरकार ने जो सरकारी बीमा योजना के विस्तार का ऐलान किया है उसका प्रीमियम ही अगर देखें तो केंद्र सरकार के पिछले साल के कुल स्वास्थ्य बजट का तीन गुना बनता है. 2015 के आंकड़े हमारी पास पूरी तरह उपलब्ध हैं जिसमें केंद्र और राज्यों का कुल स्वास्थ्य बजट 1 लाख 30 हजार करोड़ था और सरकार ने जो ऐलान किया है उससे कुल प्रीमियम ही इतना या इससे ज्यादा ही बनेगा.'
सरकार अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के वक्त प्रचलित हुई 'ओबामा केयर' की तरह 'मोदी केयर' शुरू करना चाहती है लेकिन सरकार के मौजूदा आंकड़े को सही भी मानें तो अभी देश की 25 प्रतिशत आबादी ही आज सरकारी बीमा कवरेज में है. बेहतर सरकारी अस्पतालों के अभाव में उन्हें ज्यादातर खर्च अपनी जेब से ही करना पड़ता है और अगर वे निजी अस्पतालों में जाते हैं तो लूटे जाते हैं.
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सवाल है कि जब गरीब सरकारी अस्पतालों के बाहर लोग परेशान घूम रहे हैं और बीमा योजनाओं का फायदा मरीज से अधिक बीमा कंपनियों को होता है तो सरकारी अस्पतालों के हाल सरकार क्यों ठीक नहीं करती. क्योंकि इतने पैसे से तो सरकारी अस्पतालों को दुरस्त करने, दवाइयों का इंतज़ाम करने और लाखों लोगों को रोजगार दिया जा सकता है.
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