प्रधानमंत्री को खत लिखना कब गुनाह हो गया?

मॉब लिचिंग के बारे में सुप्रीम कोर्ट के ही एक विस्तृत फैसले का ज़िक्र करना ज़रूरी है. 16 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट में मॉब लिंचिंग के बारे में आदेश देकर ज़िले से लेकर राजधानी के स्तर पर मॉब लिंचिंग को रोकने के लिए पुलिस की पूरी जवाबदेही तय की थी.

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में एक आरोपी गौतम नवलखा के मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हुई. जस्टिस अरुण मिश्र और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच में सुनवाई हुई. गौतम नवलखा के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जनवरी 2018 में जब एफआईआर हुई थी उसमें गौतम नवलखा का नाम नहीं है. अगस्त 2018 से उनकी गिरफ्तारी पर अदालत की तरफ से रोक लगी है मगर तब से लेकर अब तक पुलिस ने उनसे कोई पूछताछ नहीं की है. गौतम नवलखा हिंसा के ख़िलाफ हैं. वे सीपीआई माओइस्ट के सदस्य नहीं हैं. सिर्फ कुछ ज़ब्त काग़ज़ात के आधार पर कार्रवाई की गई है. सिंघवी ने कोर्ट से मांग की कि गौतम नवलखा को अदालत से मिला संरक्षण बढ़ाया जाना चाहिए तिस पर अदालत ने आदेश दिया है कि जब तक इस मामले की सुनवाई चल रही है, गिरफ्तारी नहीं हो. जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि ज़मानत देना और एफआईआर रद्द करना दोनों अलग-अलग मामले हैं. UAPA के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए जस्टिस मिश्रा ने कहा कि इसके लिए प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होना ही ज़रूर नहीं है. यदि कोई ऐसे संगठन की सहायता देता है तो वह UAPA के तहत अपराधी हो सकता है. महाराष्ट्र सरकार ने गौतम नवलखा की याचिका का विरोध किया है. राज्य के सरकारी वकील ने कहा कि नवलखा के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत हैं. इस पर जस्टिस मिश्रा ने कहा कि जो सबूत मिले हैं उसे अदालत के सामने पेश किया जाए. इस मामले में अगली सुनवाई 15 अक्तूबर को होगी.

मॉब लिचिंग के बारे में सुप्रीम कोर्ट के ही एक विस्तृत फैसले का ज़िक्र करना ज़रूरी है. 16 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट में मॉब लिंचिंग के बारे में आदेश देकर ज़िले से लेकर राजधानी के स्तर पर मॉब लिंचिंग को रोकने के लिए पुलिस की पूरी जवाबदेही तय की थी. इसी के साथ अदालत ने कहा था केंद्र और राज्य सरकार को रेडियो, टीवी और आफिशियल साइट पर प्रसार करना चाहिए बताना चाहिए कि मॉब लिंचिंग और भीड़ की हिंसा की सज़ा बहुत सख़्त है. सोशल मीडिया पर भीड़ को उकसाने वाले ग़ैर जवाबदेह वाली सामग्री हटाई जाए. जो लोग यह काम कर रहे हैं उनके खिलाफ़ एफ आई आर होनी चाहिए.

पहले तो इसी की समीक्षा होनी चाहिए कि भीड़ की हिंसा को रोकने के लिए केंद और राज्य सरकारों ने रेडियो टीवी या अखबार में क्या प्रचार प्रसार किया. क्या आपने ऐसा कोई अभियान देखा है या विज्ञापन देखा है. अब इसी संदर्भ में उन 49 लोगों के पत्र को देखिए जो प्रधानमंत्री को लिखा गया था. पत्र लिखने वालों ने खुद को शांति का समर्थक बताया है और प्रधानमंत्री से अपील की गई है कि मुस्लिम, दलित या अन्य अल्पसंख्यकों की लिंचिंग तुरंत रोकी जाए. अब आप बताइये. क्या ये 49 लोग पत्र लिखकर कोई आपराधिक काम कर रहे थे? लेकिन इसके बाद भी पत्र लिखने वालों के खिलाफ बिहार के मुज़फ्फरपुर में एफआईआर दर्ज हुई है. इन लोगों पर राष्ट्रदोह, धार्मिक आस्था भड़काने, शांति भंग करने का आरोप लगाया गया है. क्या मॉब लिंचिंग के खिलाफ लोगों को आगाह करना, प्रधानमंत्री या किसी को पत्र लिखना, धार्मिक आस्था भड़काने का प्रयास है, क्या ये काम राष्ट्रोह है, पत्र लिखने वालों में कुछ की उम्र तो बहुत ही है.

84 साल के श्याम बेनेगल हैं जिन्होंने संविधान पर राज्यसभा के लिए शानदार एपिसोड बनाए हैं. श्याम बेनेगल को 2005 का दादा साहब फाल्के अवार्ड मिला था. 84 साल के सौमित्र चटर्जी हैं. सौमित्र चटर्जी को 2011 का दादा साहब फाल्के अवार्ड मिला था. 78 साल के अदूर गोपाल कृष्णन को 2004 में दादा साहब फाल्के अवार्ड मिला है. 80 साल के इतिहास के प्रोफेसर सुमित सरकार का नाम है. दुनिया भर में इनका नाम है. 80-84 साल के लेखक, फिल्मकार, इतिहासकार से देश को खतरा कब से होने लगा या फिर इनका बोलना भी किसी को बर्दाश्त नहीं हो रहा है. सुमित सरकार की किताब रट्टा माकर न जाने कितने आईएएस, आईपीएस बने होंगे. वो एक पत्थर नहीं फेंक सकते और उन पर राजद्रोह का मुकदमा दायर होता है. 82 साल के समाज विज्ञानी आशीष नंदी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर राष्ट्रदोह कर सकते हैं. भारत के कई अखबारों में नियमित लेखन करने वाले रामचंद गुहा कब देशद्रोही हो गए, क्या सिर्फ एक पत्र लिख कर. जिनकी किताब न जाने कितने घरों में रखी होगी. क्या वे भी एक दिन एंटीनेशनल हो जाएंगे. शुभा मुदगल, पार्था चटर्जी, नवीन किशोर, 'रोज़ा' फिल्म बनाने वाले मणिरत्नम. इन 49 लोगों ने प्रधानंमत्री को जो पत्र लिखा है उसकी भाषा भी शालिन है. बल्कि उन्हें याद दिलाया गया कि संसद में प्रधानमंत्री ने भी मॉब लिचिंग की आलोचना की थी मगर यह काफी नहीं है. ऐसा करने वालों के खिलाफ एक्शन लिया जाना ज़रूरी है. लोकतंत्र में असहमति ज़रूरी है. असहति रखने वालों को एंटी नेशनल नहीं कहा जाना चाहिए. इसके बाद भी एफआईआर दर्ज की गई है. यह एफआईआर मुज़फ्फरपुर के चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद हुई है.

जब आप ख़ुद जर्जर हो जाते हैं तो हवा के झोकें से भी डरने लगते हैं. आए दिन मॉब लिंचिंग हो रही है. लोग मारे जा रहे हैं. जिन्हें चिन्ता नहीं है उन्हें सोचना चाहिए कि वे क्या हो गए हैं. उनकी चुप्पी एक बेहतर समाज का निर्माण कर रही है या वे भी इस भीड़ से डरे हुए उसमें शामिल घूम रहे हैं. सवाल तो यह होना चाहिए कि भीड़ की हिंसा के विरोध में 70 साल और 84 साल के नौजवानों को क्यों पत्र लिखना पड़ रहा है जो 25 साल और 40 साल के बूढ़े हैं, अशक्त हो गए हैं वो क्यों नहीं पत्र लिख पा रहे हैं. इन लोगों का पत्र लिखना देश के नौजवानों को आईना भी दिखाना है. वर्ना प्रधानमंत्री को पत्र लिखना कब गुनाह हो गया.

उधर बॉम्‍बे हाई कोर्ट ने मुंबई का फेफड़ा कहे जाने वाले आरे कॉलोनी के 2646 पेड़ों को काटने की इजाज़त दे दी है. यहां पर मेट्रो का डिपो बनेगा. बृहनमुंबई नगर निगम के वृक्ष प्राधिकरण ट्री अथॉरिटी ने प्रस्ताव पास किया था. चीफ जस्टिस प्रदीप नादराजोग और जस्टिस भारती डांगरे ने कहा है कि वनशक्ति की याचिका मेरिट के आधर पर खारिज नहीं की जा रही है बल्कि सबका भला सोचते हुए किया गया है जिसे अंग्रेज़ी में Principle of commonality कहा गया है. इसलिए केस को मेरिट के आधार पर खारिज नहीं किया गया क्योंकि यह मसला नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट में भी चल रहा है. मुंबई में इन पेड़ों को काटने से रोकने के लिए काफी प्रदर्शन हुए. एक लाख लोगों ने ऑनलाइन याचिका दी थी. कोर्ट ने कहा कि इन एक लाख लोगों की बात का सारांश तो पेश किया ही गया इसलिए यह कहना सही नहीं होगा कि एक लाख लोगों के एतराज़ पर ग़ौर नहीं किया गया. फैसले में लिखा है कि प्रोजेक्ट वाले ने संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान में जीपीएस टैगिंग के साथ 20,900 सैपलिंग लगाए हैं जिनमें से 95 प्रतिशत पेड़ बच गए हैं. कोर्ट ने कहा कि जितने गिराए जाने हैं उससे सात गुना सैपलिंग लगा दिए गए हैं और यह काम दो साल पहले हो चुका है. इस प्रोजेक्ट को संयुक्त राष्ट्र की फ्रेमवर्क फॉर क्लाइमेट चेंज में पंजीकृत है तो विदेशी एजेंसियां भी पर्यावण के असर पर नज़र रख रही हैं. मगर याचिकाकर्ता संतुष्ट नहीं हैं वो सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कर रहे हैं.

पंजाब एंड महाराष्ट्र कोपरेटिव बैंक के प्रंबंध निदेशक जॉय थॉमस को पुलिस ने खोज निकाला है. थॉमस की तलाशी कई दिनों से चल रही थी. इसके अलावा मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा की एफआईआर के अधार पर प्रवर्तन निदेशालय ने शुक्रवार को छह अलग-अलग जगहों पर छापे मारे हैं. पुराने चेयरमैन और एचडीआईएल के प्रमोटरों से संबंधित ठिकानों पर छापे मारे गए. आर्थिक अपराध शाखा ने इस मामले में गिरफ्तार राकेश कुमार वाधवा और सारंग वाधवा को पुलिस हिरासत में लिया है. राकेश वाधवा हाउसिंह डेवलपमेंट इंफ्रा लिमिटेड के चेयरमैन है. इसी बैंक को पंजाब एंड महाराष्ट्र कोपरेटिव बैंक ने सैकड़ों करोड़ का लोन दिया था. यही नहीं 23 सितंबर को जब रिज़र्व बैंक ने रोक लगाई थी तो उसके पहले के 5 दिनों में बैंक से 3200 करोड़ निकाले गए थे. यानी किसी को पता था कि बैंक डूबने जा रहा है. इसी संदर्भ बिजनेस टुडे में खबर छपी है कि मुंबई पुलिस ने पता लगाया है कि पीएमसी बैंक के अधिकारियों ने हाउसिंह डेवलपमेंट इंफ्रा लिमिटेड के आला अधिकारियों के पर्सनल खाते में 2000 करोड़ तक ट्रांसफर किए थे. ज़ाहिर है यह किसी घोटाले से कम नहीं है.

पीएमसी बैंक के प्रबंध निदेशक ज़ॉय थॉमस ने बताया था कि बैंक ने एचडीआईएल ग्रुप की कंपनियों को 2500 करोड़ का लोन दिया गया था. इसमें से 11 कंपनियों का पता चला है जिन्हें 1658 करोड़ का लोन दिया गया है. हालांकि मीडिया में यह भी चल रहा है कि पीएमसी बैंक ने इस ग्रुप को 6500 करोड़ लोन दिए थे. ज़्यादातर पैसा 2017 के साल में दिया गया. 17 सितंबर को एक व्हीसल ब्लोअर ने रिज़र्व बैंक को पत्र लिखा था कि बैंक में भारी धांधली हो रही है. 2017 में यूनियन बैंक आफ इंडिया ने एचडीआईएल को कोर्ट में घसीटा था, बैंकरप्सी मामले में, उस साल पीएमसी बैंक का सैकड़ों करोड़ लोन दिया गया. यह सारा घपला खुलेआम चल रहा था. आखिर किसी की नज़र क्यों नहीं पड़ी. क्या ये पैसा रिकवर होगा. जॉय थामस ने कहा है कि बैंक के चेयरमैन को पता था कि बैंक ध्वस्त होने के कगार पर है. एचडीआईएल के प्रमुख ने बैंक को डूबो देने की धमकी दी थी. आज जब भारतीय रिज़र्व बैंक रेपो रेट को लेकर प्रेस कांफ्रेंस कर रहा था तब पीएमसी बैंक को लेकर सवालों की झड़ी लग गई.

इस प्रेस कांफ्रेंस में रिजर्व बैंक के गर्वनर ने कहा कि रिजर्व बैंक किसी भी कोपरेटिव बैंक को नहीं डूबने देगा. रिजर्व बैंक ने पीएमसी बैंक के मामले में तेज़ी से कारर्वाई की है. इस बैंक की निगरानी के लिए एक अलग से विभाग ही बनाया जा रहा है. अफसरों का काडर बनाया गया है जो पीएमसी बैंक के मामलों को देखेंगे. गवर्नर शक्ति कांत दास ने कहा कि देश के बैंक सुरक्षित हैं, स्थायी हैं, घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है. रिज़र्व बैंक सभी कोपरेटिव बैंकों की समीक्षा भी करेगा. ज़रूरत पड़ी तो सरकार से भी बात करेगा. 3 अक्तूबर को रिज़र्व बैंक ने पीएमसी के खाताधारकों को 25,000 तक निकालने की छूट दे दी थी. पहले यह सीमा 10000 थी.

गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार इस बार के मानसून में बारिश और बाढ़ के कारण 1900 लोगों की मौत हुई है. 22 राज्यों में 25 लाख लोगों का जीवन प्रभावित हुआ है. पटना में अधिकांश इलाकों से पानी निकल गया है लेकिन राजेंद नगर, पाटलिपुत्र कालोनी में पानी है.

सात दिन हो गए मगर राजेंद्र नगर से पानी अभी तक नहीं निकला है. नाले का पानी मिल जाने के कारण पानी काला हो गया है और सड़ भी गया है. लोग कह रहे हैं कि कुछ कम तो हुआ है लेकिन अभी भी वे पानी में हैं. जबकि सरकार कह रही है कि बाहर से पंप मंगाकर पानी निकाल रही है फिर भी पानी घटा नहीं है. कच्चे घरों का ज्यादा नुकसान हुआ है. इस जलजमाव से सरकारी और निजी नुकसान कितना हुआ है, इसका मूल्याकंन बाकी है. ग़रीब लोगों के नुकसान की भरपाई कैसे होगी, किसी को पता नहीं है. लोग खुद भी पानी निकालने में जुटे हैं. जलजमाव वाले इलाके में एटीएम बंद हैं. साफ पानी की आम लोगों को बहुत दिक्कत हो रही है.

गनीमत है कि बारिश रुकी हुई है वरना सारे बयानों के बाद भी पटना का चरमराया हुआ सिस्टम संभाल नहीं पाता. स्थानीय अखबारों में पटना के पंप हाउसों की खस्ता हालत पर खूब रिपोर्ट छपी है. पता चलता है कि किस तरह इस बेसिक काम को अनदेखा किया गया. अभी भी कई पंप हाउस काम नहीं कर रहे हैं जहां मोटर काम कर रहा है वो भी बंद हो जाता है. पंप हाउस चलाने की ज़िम्मेदारी बिहार अर्बन डेवलपमेंट एंड हाउसिंग डिपार्टमेंट की है.  लेकिन इनके चेयरमैन के ढीले जवाब से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि यह शहर किस तरह भगवान के भी भरोसे नहीं था.

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बुलंदशहर में पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार का गौकशी की एक घटना के बाद भीड़ ने पत्थर और गोली मारकर क़त्ल कर दिया था. इस मामले में हिंसा भड़काने के मुख्य आरोपी योगेश राज की शुक्रवार को ज़मानत हो गई. सुबोध कुमार के क़रीबियों का आरोप है कि इस मामले की जांच बहुत तरीके से ढीले तरीके से की जा रही है जिसकी वजह से आरोपी छूट रहे हैं.