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This Article is From Jan 16, 2017

चरखे का संसार, उससे जुड़े शब्द और अपना कुर्ता बनाने की आसान विधि

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    January 16, 2017 18:03 IST
    • Published On January 16, 2017 18:03 IST
    • Last Updated On January 16, 2017 18:03 IST
आप इस तस्वीर में जो चरखा देख रहे हैं, उसे गांधी जी ने यरवदा जेल में बंद रहने के दौरान विकसित किया था ताकि इसे ब्रीफकेस की तरह बंद कर कहीं भी ले जाने में सुविधा हो.
 
charkha

चरखे के भीतर जो सबसे बड़ा पहिया दिख रहा है उसे 'मूल चक्र' कहते हैं. छोटे वाले पहिये को 'गति चक्र' कहते हैं. मूल चक्र और गति चक्र को एक मोटे से धागे से जोड़ा गया है इसे 'मोटी माल' कहते हैं.
 
charkha

'गति चक्र' यानी जो छोटा पहिया है उसे भी एक पतले घागे के साथ चरखे के सबसे आगे वाले हिस्से से जोड़ा गया. इस हिस्से का आकार अंग्रेजी अक्षर 'वी' जैसा है. इसे मोड़िया कहते हैं. मोड़िया और गति चक्र को जिस पतले धागे से जोड़ा गया है उसे 'पतली माल' कहते हैं. मोड़िया में एक छोटी सी पुली लगी होती है. पतली माल को पहले इस पुली में फंसाते हैं और फिर गति चक्र में.
 
charkha

अब इस तस्वीर में चरखे के बाहर रुई की पतली-पतली नाल रखी है. इसे ही पूनी कहते हैं. पूनी मतलब रुई की पतली गुच्छी. इसे ही जब तकली से फंसाते हैं तो सूत निकलने लगता है. तकली को तकुआ भी कहते हैं.
 
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सौ ग्राम रुई की गुच्छी या पूनी से 2000 मीटर सूत निकाल सकते हैं. सौ ग्राम रुई की कीमत तीस या पैंतीस रुपये होती है. किसी वयस्क को कुर्ता बनाने के लिए पौने तीन या तीन मीटर कपड़े की जरूरत होती है. तीन मीटर कपड़े के लिए नौ हजार मीटर धागा कातना होगा. एक हजार मीटर धागा कातने में ढाई से तीन घंटे का वक्त लगता है. यानी सत्ताईस घंटे चरखा चलाकर आप अपने लिए कुर्ते का कपड़ा बना सकते हैं. आपको करना ये है कि पूनी से सूत तैयार कीजिए, खादी ग्रामोद्योग के पास जाइए. वो इसके बदले ऐसे ही धागे से बना कपड़ा दे देंगे या आप अपने काते हुए धागे से कुर्ता बनवा सकते हैं.


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