क्या लाल क़िले में यज्ञ से देश की रक्षा होगी?

हमारे देश में लगातार सत्ता प्रायोजित ऐसी हिंसा और कार्रवाई बड़ी हुई है संविधान जिसकी इजाज़त नहीं देता. हाल में एक फिल्म के विरोध में जो कुछ हुआ, वह इसी की मिसाल था. यह भी न पूछें कि क्या एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में किसी सरकार को यज्ञ जैसा विशुद्ध धार्मिक अनुष्ठान कराना चाहिए?

क्या लाल क़िले में यज्ञ से देश की रक्षा होगी?

गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने रथ यात्रा को रवाना किया

अब लाल किले में राष्ट्र रक्षा यज्ञ होगा. देश के अलग-अलग हिस्सों से इसके लिए मिट्टी लाई जाएगी. किसी और ने नहीं, गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इसके लिए रथ यात्रा को हरी झंडी दिखाई है. यह न पूछें कि क्या संविधान इसकी इजाज़त देता है? हमारे देश में लगातार सत्ता प्रायोजित ऐसी हिंसा और कार्रवाई बड़ी हुई है संविधान जिसकी इजाज़त नहीं देता. हाल में एक फिल्म के विरोध में जो कुछ हुआ, वह इसी की मिसाल था. यह भी न पूछें कि क्या एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में किसी सरकार को यज्ञ जैसा विशुद्ध धार्मिक अनुष्ठान कराना चाहिए? क्योंकि धर्मनिरपेक्षता मौजूदा सरकार और इसके झंडाबरदारों के लिए बड़ा मूल्य नहीं है. यह भी न पूछें कि क्या बीजेपी आने वाले साल के चुनाव को ध्यान में रखते हुए एक तरफ राम रथ यात्रा का समर्थन कर रही है और दूसरी तरफ़ राष्ट्र रक्षा यज्ञ करवा रही है? क्योंकि हमारे राजनीतिक दल अपने चुनावी फ़ायदे के आधार पर ही फ़ैसले करते हैं. लेकिन यह तो पूछेंगे कि यह राष्ट्र रक्षा यज्ञ हमें कहां ले जा रहा है?

क्या अब यज्ञों से राष्ट्र की रक्षा होगी? आख़िर राजनाथ सिंह के दिमाग़ में राष्ट्र का वह कौन सा नक्शा है जिसकी रक्षा वे यज्ञ से करना चाहते हैं? ध्यान से देखें तो इस सरकार के समय राष्ट्र पर बाहरी चोट भी बढ़ी है और इसकी भीतरी दरारें भी. सेना की सर्जिकल स्ट्राइक के राजनीतिक इस्तेमाल की कोशिश ने उल्टे परिणाम पैदा किए और ज़ख्मी पाकिस्तान कुछ ज़्यादा हमलावर हो गया. दिल्ली में बैठे नेता शेखियां बघार रहे हैं और सीमा पर आम लोग भी मारे जा रहे हैं और सैनिक भी. बताया जा रहा है कि हमारी ओर से भी जम कर जवाब दिया जा रहा है. लेकिन सैनिकों की शहादत पर होने वाली यह सियासत दोनों देशों के हुक्मरानों को रास आती है.

सैनिक बेशक़ीमती होते हैं. वे देश के लिए जान देने का जज़्बा रखते हैं, लेकिन राष्ट्रवाद की किसी राजनीतिक परियोजना में उनको जान देने पर मजबूर करना उनको व्यर्थ करना है, उनकी शहादत पर सियासत करना है. इसी तरह देश के अलग-अलग हिस्सों में कहीं गोरक्षा के नाम पर, कहीं लव जेहाद के नाम पर, कहीं किसी और बहाने अलग-अलग संगठन क़ानून को अपने हाथ में लेते रहे हैं. यह अराजकता भी राष्ट्र विरोधी है. यह अलग बात है कि हरियाणा में ऐसी ही अराजकता दिखाने वालों को सरकार माफ़ी दे रही है.

पूछना यह भी चाहिए कि 21वीं सदी में जब हमें अपने विश्वविद्यालयों को दुनिया भर के विश्वविद्यालयों की टक्कर का बनान चाहिए, जब अपने वैज्ञानिक शोध पर मेहनत करनी चाहिए, तब हम वैदिक युग के यज्ञ क्यों कर रहे हैं? यह देश को किस सदी में ले जाने की कोशिश है? बीजेपी के मंत्री और सांसद वैदिक संस्कृति का हवाला देते हैं. लेकिन क्या उन्होंने यह इतिहास पढ़ा है कि पूर्व वैदिक काल की उपलब्धियां किस तरह उत्तर वैदिक काल के बौद्धिक आलस्य और उसकी जड़ता में श्रीहीन और अंततः शून्य होती चली गईं?

ज्ञान की परंपरा आगे बढ़ने से बनती है, पीछे लौटने से नहीं. निस्संदेह हमें अपनी परंपराओं के प्रति सचेत रहना चाहिए. लेकिन परंपराएं कोई जड़ चीज़ नहीं होतीं. वे लगातार बनती-बदलती और विकसित होती हैं. हमें परंपराओं में चुनाव करना पड़ता है. कुछ परंपराओं को हम छोड़ देते हैं, कुछ को बदल डालते हैं और कुछ को बनाए रखते हैं. राष्ट्र रक्षा या किसी भी नाम पर किया जाने वाला यज्ञ दरअसल परंपरा नहीं, परंपरा के शव को ढोने जैसा होगा. इतिहास के प्रेत ऐसे शव ढोते हैं. वे विश्वास को नहीं, अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं- वे हिंसक होने की हद तक जड़ होते हैं, जिद्दी होते हैं और वर्तमान और बदलाव के प्रति असंवेदनशील होते हैं. जीवित समाज और नागरिक परंपराओं को काटते हैं छांटते हैं चुनते हैं. जाति-व्यवस्था भी हमारी परंपरा थी, मगर हम सब मानते हैं कि इस परंपरा से निजात ज़रूरी है- यह अलग बात है कि यही व्यवस्था बताती है कि परंपराओं की जकड़न कितनी सख़्त और ख़तरनाक होती है.

राजेंद्र प्रसाद जब राष्ट्रपति थे तो एक बार बनारस की यात्रा में उन्होंने 500 ब्राह्मणों के पांव धोए थे. आज़ाद हिंदुस्तान के महान राजनीतिक चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया ने इसे अश्लीलता करार दिया था. उन्होंने कहा था कि जिस समाज में जाति के आधार पर किसी के पांव धोए जाते हैं, वह एक उदास-निस्पंद समाज होता है. हमारी सरकार फिर जैसे एक उदास समाज बनाने में जुटी है. राष्ट्र रक्षा के लिए जो उद्यम ज़रूरी हैं, उन्हें प्राथमिकता देने की जगह वह यज्ञ करवा रही है. और यह यज्ञ कहां होगा? उस ऐतिहसिक लाल किले में जिसने मुगलकालीन वैभव देखा है, आज़ाद भारत की लड़ाई देखी है, सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज के कमांडरों पर चलता मुक़दमा देखा है और अपने प्राचीर से नए बनते देश के सारे आह्वान देखे हैं. यह लाल किला विश्व धरोहर का हिस्सा है. यज्ञ के लिए यहां 108 यज्ञ-कुंड बनवाए जाएंगे. जाहिर है, समिधा भी पड़ेगी और हवन भी होगा. इससे देश सुरक्षित हो या न हो, लाल क़िला ज़रूर कुछ असुरक्षित हो जाएगा.

इत्तेफाक से हाल के दिनों में ताजमहल पर बहुत सारे दक्षिणपंथी नेताओं के हमले बढ़े हैं. बीजेपी सांसद और बजरंग दल के नेता ताजमहल को तेज मंदिर बताने की वकालत कर ही चुके हैं. लेकिन लगता है, बीजेपी ताजमहल से पहले लाल क़िले को ही ढहाने पर तुली है. स्मृति के ध्वंसावशेषों पर टिकी विचारधाराएं जैसे सभ्यता को ध्वंसावशेषों में बदल डालना चाहती हैं. यह काम एक दौर में यूरोप में हुआ, कुछ साल पहले अफगानिस्तान में हुआ, हाल-हाल में सीरिया में हुआ, भारत में भी वली दक्कनी की मज़ार नष्ट की गई. ये सब लोग अलग-अलग मज़हबी पहचान के बावजूद अपनी जीवन-दृष्टि में एक जैसे हैं. लाल किले पर जो यज्ञ होना है, वह 11,000 पंडित कराएंगे. इससे राष्ट्र सुरक्षित नहीं, कमजोर होगा. क्योंकि ऐसे जाति-आधारित कर्मकांड की मंज़ूरी भारतीय राष्ट्र नहीं देता. वैदिक परंपराएं लौटेंगी तो बहुत सारे लोगों के संशय और संताप भी लौटेंगे जिन्होंने उस दौर में अपने कान में सीसा झेला है, अपनी पीठ पर कोड़े सहे हैं, जो अस्पृश्यता की अनर्थकारी व्यवस्था के सबसे तीखे शिकार हुए हैं. राष्ट्र की सुरक्षा के लिए यज्ञ कराना अपने राष्ट्र की शक्ति पर भरोसा न करना है. भारत जैसे विशाल राष्ट्र को 11,000 पंडितों के कराए गए यज्ञ से सुरक्षा मिलेगी, यह ख़याल ही इस देश के लिए अपमानजनक है. लेकिन जो देश को समझते हैं, वही ये बात समझेंगे, वह बीजेपी नहीं समझेगी जिसके लिए देश अपने प्रतिशोध का ज़रिया भर है.

प्रियदर्शन NDTV इंडिया में सीनियर एडिटर हैं...

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