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This Article is From Nov 27, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : क्या जज बीएच लोया की मौत से पर्दा उठ पाएगा?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 28, 2017 08:42 am IST
    • Published On नवंबर 27, 2017 21:12 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 28, 2017 08:42 am IST
सीबीआई के स्पेशल जज बृजगोपाल हरिमोहन लोया की मौत के बाद की प्रक्रियाओं को लेकर कैरवां पत्रिका में जो सवाल उठे हैं, उसके समानांतर इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट आ गई है. कुछ जगहों पर एक्सप्रेस की रिपोर्ट कैरवां की रिपोर्ट को काटती है तो कुछ जगहों पर एक्सप्रेस की रिपोर्ट को लेकर ही नए संदेह खड़े हो जाते हैं. अच्छा होता कि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट संज्ञान लेता और ऐसी जांच समिति बनती जो सबसे पहले जज लोया के परिवारवालों में सिस्टम और समाज के प्रति भरोसा पैदा करे. परिवार के लोगों को ही सामने आकर यह जोखिम उठाना होगा क्योंकि बात उन्हीं से शुरू हुई थी. कैरवां पत्रिका ने एक्सप्रेस की रिपोर्ट पर कुछ नहीं कहा है. हाल ही में राजेश और नुपूर तलवार का मामला हो या रेयान स्कूल के बस कंडक्टर अशोक का मामला है, इसका सबक ये है कि मीडिया ट्रायल से बचा जाना चाहिए. चूंकि मैंने पहली बार कैरवां पर रिपोर्ट की है इसलिए मुझे एक बार और एक्सप्रेस की रिपोर्ट का सार आपके सामने रखना चाहिए.

मेरे प्राइम टाइम का उद्देश्य यही था कि अपनी बात कहने से किसी को डरना नहीं चाहिए. इंडियन एक्सप्रेस को भी परिवार के सदस्यों से बात करने में सफलता नहीं मिली है. इसलिए ज़रूरी है कि ऐसी जांच समिति बने जिसके सामने जाने में परिवार को भरोसा हो और मीडिया ट्रायल बंद हो. सवाल उठ गए हैं जिनसे संबंधित दस्तावेज़ और सवाल समिति के सामने ही रखें जाएं वर्ना एक एक सबूत को लेकर टीवी पर बहस होगी तो वही सबूत कभी सही लगेगा और कभी ग़लत. कैरवां की पहली रिपोर्ट 21 नवंबर को आई है, इंडियन एक्सप्रेस की 27 नवंबर को. छह दिनों की चर्चा के बाद अगर परिवार खुल कर बोलने का साहस नहीं जुटा पा रहा है तो चिंता की बात है. क्या वे डरे हुए हैं या परिवार के भीतर कोई बात है. जो लोग जांच एजेंसियों की हरकतों, लंबी कानूनी प्रक्रियाओं से गुज़रें हैं वो जानते हैं कि उस तरफ जाने के क्या अंजाम होते हैं. इसलिए उनका भय समझा जा सकता है. मगर उन्हें पता होना चाहिए कि इन्हीं सब के बीच आम से आम लोग सिस्टम से लड़ते हैं और इंसाफ भी पाते हैं. कैरवां के निरंजन टाकले ने लिखा है कि जज लोया की मौत के 80 दिनों बाद जांच की मांग की थी, 18 फरवरी 2015 को लेकर मंज़ूर नहीं हुई. ऐसा नहीं था कि परिवार ने तीन साल बाद चुप्पी तोड़ी है, चुप तो अब भी है, बोलने का साहस नहीं जुटा पा रहा है.

जज लोया की पत्नी और बेटे ने कैरवां के निरंजन टाकले से बात नहीं की, लिखा है कि उन्हें जान का डर है. एक्सप्रेस के विवेक देशपांडे और मौर्या जांवलकर से भी मां बेटे ने बात नहीं की. अगर मां बेटे किसी डर से बात नहीं कर रहे हैं तो यह चिन्ता की बात है. कैरवां पत्रिका के निरंजन टाकले ने जज लोया के पिता हरिकिशन लोया से नवंबर 2016 में मुलाकात की थी. तब उन्होंने कहा था कि 85 साल का हो चुका हूं, मौत का डर नहीं, मगर बच्चियों और उनके बच्चों की जान की फिक्र है.

एक्सप्रेस ने लिखा है कि हरिकिशन लोया, अनुराधा बियाणी, सरिता मांधाने का फोन स्विच ऑफ, वो घर पर भी नहीं मिले. यानी जिन लोगों ने कैरवां के रिपोर्टर से बात की उन लोगों से एक्सप्रेस के रिपोर्टर संपर्क नहीं कर सके. घर पर नहीं मिले. अनुराधा बियाणी ने वीडियो बयान दिया है और इस केस में वही एकमात्र ऑन रिकॉर्ड बयान है.

कैरवां की रिपोर्ट बहन अनुराधा बियाणी, सरिता मानधाने और पिता हरिकिशन के बयान पर आधारित है. एक्सप्रेस ने श्रीनिवास लोया, हरिकिशन लोया के भाई, जस्टिस लोया के चाचा से बात की है जो कहते हैं कि उनकी भतीजी अनुराधा ने जज की मौत को लेकर सवाल उठाए हैं वो काफी अहम हैं. चाचा श्रीनिवास लोया ने एनडीटीवी से भी बात करते हुए कहा कि उन्हें यही बताया गया था कि पोस्टमार्टम हो चुका है और शव को बाक्स में रखकर नागपुर से भेजा जा चुका है. हम शव का इंतज़ार कर रहे थे और जब पहुंचा तो एंबुलेंस का ड्राइवर ही था और कोई नहीं था. यही बात अनुराधा बियाणी ने कही है. कैरवां और एक्सप्रेस की रिपोर्ट मे पोस्टमार्टम के बाद शव लेने के लिए जिस व्यक्ति ने हस्ताक्षर किए हैं उनका नाम डॉ. प्रशांत राठी है. प्रशांत राठी ने कैमरे पर बात करने से इंकार कर दिया है, उनसे एनडीटीवी के मानस और सौरव गुप्ता ने संपर्क करने का प्रयास किया था. प्रशांत राठी ने मानस से जो कहा और एक्सप्रेस से जो कहा उसमें एक बहुत बड़ा अंतर है.

प्रशांत ने एनडीटीवी के मानस से कहा कि मेरे अंकल ने सुबह छह बजे के करीब जज लोया की मौत की सूचना दी और मैं शोक के समय में परिवार की सहायता के लिए तुरंत पहुंचा. डॉ प्रशांत राठी ने मानस से कहा कि ये अंकल औरंगाबाद में रहते हैं और जज लोया के कज़िन हैं. राठी ने मानस को रिश्ता नहीं बताया कि मौसा हैं, अंग्रेज़ी का अंकल और कज़िन इस्तमाल किया. नाम भी नहीं बताया कि कौन हैं.

यही राठी एक्सप्रेस से बात करते हैं तो साफ-साफ कहते हैं कि मौसा का फोन आया और उनका नाम रुक्मेश पन्नालाल जाकोटिया है. उनका फोन आता है कि उनके कज़िन जज लोया मेडिट्रिना अस्पताल में भर्ती हैं और मुझे लोया की मदद के लिए कहते हैं. जब मैं अस्पताल पहुंचता हूं तो डाक्टर बताते हैं कि उनकी मौत हो चुकी है. यह बात मैं अपने अंकल को बताता हूं. अंकल मुझे औपचारिकताओं का ध्यान रखने के लिए कहते हैं.

अब आपने देखा कि प्रशांत राठी एक रिपोर्टर से कहते हैं कि अंकल का फोन आता है कि 6 बजे लोया की मौत हो गई है. एक रिपोर्टर से कहते हैं कि लोया भर्ती हैं, उनकी मदद करें. अस्पताल जाकर पता चलता है कि लोया मर चुके हैं. यहां एक और सवाल है. नागपुर में डाक्टर प्रशांत राठी ही अकेले सब मैनेज कर रहे थे तो क्या उनसे लोया के परिवार के किसी करीबी ने बार-बार बात की, जानने के लिए कि क्या हो रहा है, शव कहां ले जाएगा. क्या डाक्टर राठी बता सकते हैं कि उनसे परिवार के किसने कहा कि शव मुंबई नहीं, लातूर से सटा गाटेगांव जाएगा. डॉ प्रशांत राठी ने कैमरे पर बात करने से इंकार कर दिया. यह साफ नहीं है कि राठी के मौसा जाकोटिया जज लोया के कितने करीबी थे, क्या वे पिता से बात कर रहे थे, क्या अनुराधा बियाणी से बात कर रहे थे? डॉ प्रशांत राठी ने एनडीटीवी के मानस को बताया कि उन्होंने जज लोया के शव को नहीं देखा था. उन्हें एक चादर में लपेटा गया था. बस उन्होंने साइन कर दिया.

कैरवां की रिपोर्ट में बहन अनुराधा बियाणी नागपुर में किसी रिश्तेदार की बात करती हैं मगर नाम नहीं बताती हैं. उनकी बातचीत में रुक्मेश पन्नालाल जाकोटिया का कोई ज़िक्र नहीं है, न ही जज लोया के पिता ने नाम लिया है. प्रशांत राठी ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में साइन करते हुए ख़ुद को मृतक का चचेरा भाई बताया है. पिता के साइड से. मगर उनके मौसा जज लोया को अपना भाई बताते हैं. मौसा का भाई तो मौसा के बराबर हुआ. तो राठी ने खुद को लोया का चचेरा भाई कैसे बता दिया. अगर मैं सही हूं तो राठी लोया और जाकोटिया के भतीजा लगेंगे. क्या रुक्मेश पन्नालाल जाकोटिया जज लोया की पत्नी, पिता और बहन अनुराधा के संपर्क में थे.

एक्सप्रेस की रिपोर्ट से साफ नहीं होता है कि शव मुंबई की जगह लातूर के गाटेगांव भेजने का फैसला किसका था. पत्नी शर्मिला लोया को फोन गया था तो क्या उन्हें पता था कि शव गाटेगांव जाएगा, मुंबई नहीं आएगा. उनका परिवार लातूर के आस-पास रहता है तो हो सकता है कि यह व्यावहारिक फैसला हो. मगर यही नहीं पता चल रहा है कि नागपुर से गाटेगांव ले जाने का फैसला किसका था. यह तभी साफ होगा जब शर्मिला लोया खुद मीडिया के सामने आकर अपनी स्थिति साफ करेंगी.

कैरवां ने यह तो लिखा है कि मौत की सूचना का फोन पत्नी को भी गया, बहनों को भी और पिता को भी. बहन अनुराधा ये बताती हैं कि फोन पर कोई बार्डे थे जो अपने को जज बताते हैं, उनका फोन आया था. बहन सरिता भी बताती हैं कि बार्डे नाम के जज ने फोन किया था. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बार्डे का नाम साफ हो जाता है. वे जज बार्डे हैं. जज बार्डे को एक्सप्रेस की रिपोर्ट में लोकल जज कहा गया है और इनका पूरा नाम है जज विजय कुमार बार्डे. एक्सप्रेस में है कि हाईकोर्ट के नागपुर बेंच के डिप्टी रजिस्ट्रार रुपेश राठी और बार्डे जस्टिस लोया को दांडे अस्पताल लेकर जाते हैं कार में. कैरवां में लिखा है कि दो जज आटो में जज लोया को लेकर जाते हैं. एक्सप्रेस में लिखा है कि दो जज कार में जज लोया को लेकर जाते हैं. जस्टिस सुनील शुक्रे ने कहा है कि जज बार्डे कार खुद चला रहे थे.

हमारे सहयोगी सुनील सिंह से जस्टिस गवई ने कहा कि वे उस वक्त नागपुर में सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव जस्टिस थे. एक्सप्रेस से भी वही कहते हैं कि वरिष्ठ प्रशासकीय जज होने के नाते उन्हें ही फोन किया और तब वे अपने साथी जज सुनील शुक्रे को लेकर मेडिटिरिना अस्पातल पहुंचे. अपने ड्राईवर का भी इंतज़ार नहीं किया. दोनों रवि भवन से एक मील की दूरी पर रहते थे. जज को लेकर अस्पताल ले जाने में लोकल जज, डिप्टी रजिस्ट्रार, जज कुलकरणी और जज मोडक भी थे. जस्टिस गवई ने सुनील सिंह को यह भी बताया है कि रवि भवन में कुल पांच कमरे बुक थे मगर रात में तीनों ने एक ही कमरे में रहना पंसद किया. क्योंकि सभी की वापसी का टिकट एक ही साथ का था और अगली सुबह मुंबई लौटना था. मुंबई से गए दोनों जज शव के साथ इसलिए नहीं गए क्योंकि वे दोस्त की मौत के सदमे में थे.

कैरवां में अनुराधा बियाणी ने कहा है कि दोनों जज डेढ़ महीने तक परिवार से नहीं मिले. अब आप देख रहे हैं कि जब जज लोया की बहनों ने सवाल किया तो जज साहिबान चुप थे. अब परिवार के लोग चुप हैं तो जज साहिबान अपनी बात रख रहे हैं. जांच का एलान अभी तक नहीं हुआ है. जज लोया के बेटे ने तब के चीफ जस्टिस को पत्र लिखा था कि मुझे डर है कि ये नेता मेरे परिवार के किसी भी सदस्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं. मेरे पास इनसे लड़ने की ताकत नहीं है. हमारी ज़िंदगी ख़तरे में है. एक जज का बेटा चीफ जस्टिस को पत्र लिखता है. मौत के 80 दिन बाद. यह पत्र कैरवां पत्रिका ने अपने वीडियो में दिखाया है. इस पत्र के बाद क्या परिवार को सुरक्षा दी गई, क्यों नहीं दी गई?

एनडीटीवी के मानस ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रवि भवन में किसी भी जज के लिए कोई कार डेज़िगनेट नहीं थी. यह बात रवि भवन के कुछ स्टाफ ने मानस को नाम ना लेने के शर्त पर बताई.

यह भी देखा जाना चाहिए कि घटना के आसपास महाराष्ट्र विधानसभा का सत्र शुरू होने वाला था. क्या उस वक्त रवि भवन में कोई एंबुलेंस थी. यह सब जांच से पता चलेगा, मीडिया ट्रायल से नहीं. एक्सप्रेस में लिखा है कि जज लोया ने 4 बजे सीने में दर्द की शिकायत की लेकिन कार से निकटम अस्पताल पहुंचने में पौने पांच बज जाते हैं. सुबह के वक्त तीन किलोमीटर का फासला तय करने में क्या 45 मिनट लगना चाहिए. इसका जवाब मालूम नहीं है. अब सवाल उठता है कि जज लोया को सीने में कब दर्द हुआ. इसके अलग अलग वर्ज़न हैं.

कैरवां में निरंजन टाकले ने लिखा है कि साढ़े बारह बजे सीने में दर्द हुआ. अनुराधा बियाणी के अनुसार दोनों जजों ने यह बात परिवार को बताई थी. कैरवां के अनुसार पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहा गया है कि 4 बजे दर्द हुआ और सवा 6 बजे मौत हुई. इंडियन एक्सप्रेस को जस्टिस भूषण गवई ने बताया कि जज लोया की करीब 4 बजे तबीयत खराब हुई. एनडीटीवी से जस्टिस भूषण गवई ने कहा है कि साढ़े तीन बजे जज लोया की तबीयत ख़राब हुई. जस्टिस भूषण गवई ने हमारे सहयोगी सुनील सिंह से बात की है.

इस संदर्भ में अनुराधा बियाणी का बयान महत्वपूर्ण हो जाता है कि दोनों जजों ने बताया कि साढ़े बारह बजे सीने में तकलीफ हुई. मतलब जस्टिस मोदक और जस्टिस कुलकरणी ने. मगर जस्टिस गवई के अनुसार तो दोनों सुबह के वक्त जज लोया को लेकर अस्पताल गए थे. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट का महत्व है मगर आप जानते हैं कि इस देश में पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के साथ क्या क्या खिलवाड़ हो जाते हैं. इसका मतलब यह नहीं कि इस केस में यही हुआ है, मैं बस संदर्भ के लिए बता रहा हूं. कौन सही बोल रहा है यह तो जांच से ही पता चलेगा. आप भी किसी पर बेवजह शक न करें. सुनील सिंह ने जब जस्टिस गवई से बात की तो एक और सवाल का जवाब मिला. उनके अनुसार जस्टिस मोदक और जस्टिस कुलकरणी ही जज लोया के साथ गए थे. गवई के मुताबिक पहली बार वे शादी में जज लोया से मिले थे. उनके मुताबिक समारोह से निकलकर तीनों लोग गोकुल पेठ पान खाने गए थे. तीनों का मतलब जज लोया, जस्टिस कुलकरणी और जस्टिस मोदक पान खाने गए थे.

जस्टिस गवई को सुबह छह बजे डिप्टी रजिस्ट्रार ने फोन कर जज लोया के मौत की सूचना दी, और तब वे मेडिट्रिना अस्पताल गए जहां पर जस्टिस मोदक, जस्टिस कुलकरणी, जज बार्डे और डिप्टी रजिस्ट्रार मौजूद थे. जस्टिस गवई आईसीयू में गए थे और उनके शरीर पर कहीं ख़ून के निशान नहीं थे. मौत की सूचना हर जगह छह बजे हैं. जज लोया की एक और बहन सरिता ने कैरवां के निरंजन टाकले से कहा है कि पांच बजे जज बार्डे का फोन आया था कि बृजगोपाल की मौत हो चुकी है.

क्या समय में अंतर को लेकर शक किया जा सकता है, कम से कम मीडिया ट्रायल में नहीं होना चाहिए. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के बाद ईसीजी की छपी हुई तस्वीर को लेकर थोड़ी सनसनी हो गई. ईसीजी की रिपोर्ट में ऊपर बृजगोपाल लोहिया लिखा है और नीचे की तारीख 30 नवंबर है. जबकि मौत एक नवंबर को हुई है. क्या ईसीजी मशीन से ऐसी चूक हो जाती है. अस्पताल ने इस बारे में कहा है कि 30 नवंबर की जो तारीख दिख रही है, वो तकनीकि खराबी हो सकती है. हम हर तीन महीने पर अपनी मशीन को री-कैलिब्रेट करते हैं ताकि ऐसी चूक न हो, लेकिन कभी-कभी बीच-बीच में ऐसी गड़बड़ी हो जाती है. हम अपने तथ्य पर कायम हैं. ईसीजी दिसंबर एक तारीख को हुई थी. अस्पताल ने बाद में एक्सप्रेस को बताया है जिसे एक्सप्रेस ने अपनी वेबसाइट पर छापा है. क्या उस रोज़ और भी रिपोर्ट पर 30 नवंबर की तारीफ छपी थी, ये सब तो जांच से ही पता चलेगा.

कुछ लोगों ने ईसीजी को देखकर कहना शुरू कर दिया कि ईसीजी सामान्य है. हमने दो डाक्टरों से बात की लेकिन एक चेतावनी ध्यान में रखिएगा. बीमारी का पता एक रिपोर्ट से नहीं चलता है, और एक रिपोर्ट से भी चलता है. यह सारी बातें जांच के दायरे में होनी चाहिए मगर अब कैरवां और एक्सप्रेस ने अलग-अलग वर्जन छापे हैं तो हमने दो डाक्टरों से बात कर ली.

अनुराधा ने कैरवां को बताया है कि दांडे हास्पीटल के डॉक्टरों और कर्मचारियों ने क्या चिकित्सा की गई इसका कोई विवरण देने से हास्पीटल ने इनकार कर दिया, वहीं दांडे हॉस्पिटल के निदेशक पिनाक दांडे ने एक्सप्रेस से बात की है और ब्यौरा दिया. आप देखेंगे कि ज़्यादातर सवाल मौत के बाद की गतिविधियों को लेकर जो सूचनाओं का आदान प्रदान हो रहा है, उसमें कई जगह समानता है, कई जगह अंतर है. कोई भी सवाल इस बात को ठोस रूप से उठता नहीं दिखा कि क्या जज लोया की हत्या की गई होगी. पोस्टमार्ट के वक्त कई बड़े जज मौजूद थे. इसका विवरण कई तरह से सही साबित होता है. हमने यह सवाल किया था कि पोस्टमार्ट का फैसला किसका था, लेकिन इस सवाल का जवाब आपको कानून की प्रक्रिया से ही मिलेगा. अनुराधा बियाणी ने कैरवां को बताया है कि डाक्टर होने के कारण वो जानती हैं कि पोस्टमार्टम के दौरान खून नहीं निकलता और बियाणी ने दोबारा पोस्टमार्टम की मांग की थी लेकिन वहां इकट्ठे लोया के दोस्तों और सहकर्मियों ने उन्हें हतोत्साहित किया कि यह कहते हुए कि मामले को और जटिल बनाने की जरूरत नहीं है. कई अधिकारियों का कहना है कि पोस्टमार्ट के समय खून नहीं निकलता लेकिन हमारे सहयोगी मुकेश सिंह सेंगर ने फॉरेंसिक एक्सपर्ट डॉ. के सी शर्मा से बात की. उन्होंने कहा कि परिवार को सूचित किए बिना भी पोस्टमार्टम हो जाता है. पोस्टमार्ट होने के बाद कई बार कपड़ों में रक्त लग जाता है जिसके कई कारण होते हैं.

एक्सप्रेस और कैरवां में एक और किरदार है. ईश्वर बाहेती. कैरवां में इसे आरएसएस का बताया गया है. एक्सप्रेस में इन्हें जज लोया के मित्र डॉ. बहेती का भाई बताया गया है और जज लोया ईश्वर बाहेती के संपर्क में थे. मगर बाहेती ने एक्सप्रेस और कैरवां से बात नहीं की है. कम से कम उन्हें मीडिया से संपर्क करना चाहिए कि उनके पास जज लोया का फोन कैसे आया, वो मौत के तीन चार दिनों बाद फोन लेकर कैसे परिवार के पास पहुंच गए, क्या यह सही है कि फोन से डेटा उड़ा दिया गया था, एक ही एसएमएस बचा था. सुप्रीम कोर्ट के वकील सुदीप श्रीवास्तव ने कुछ सवाल उठाए हैं.

बहुत तरह के सवाल हैं जो एक दूसरे से टकरा रहे हैं. परिवार के सदस्यों ने जो कहा है क्या उसे जांच से साबित किया जाएगा, या फिर एकतरफा इधर से या उधर से बयान के ज़रिए खारिज कर दिया जाएगा. मोबाइल टावर से पता चल सकता है कि कौन जज कहां तक गए थे, कौन किससे बात कर रहा था, लोया ने किसे फोन किया, पत्नी को किस नंबर से फोन गया. मगर ये सब तो जांच से ही सामने आ सकेगा जब तथ्य और गवाहों की पेशी होगी.

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