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This Article is From Dec 17, 2021

क्या पंजाब में कैप्टन के मेल से गुरू हो सकते हैं फेल ?

Manoranjan Bharati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 27, 2021 14:05 pm IST
    • Published On दिसंबर 17, 2021 20:55 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 27, 2021 14:05 pm IST

2022 में पंजाब में होने वाला विधानसभा चुनाव काफी दिलचस्प होने वाला है वजह है चुनाव में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की इंट्री. कैप्टन ने पंजाब चुनाव के लिए आखिरकार बीजेपी का दामन थाम ही लिया है. उनकी पंजाब लोक कांग्रेस बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लडेगी. इसमें सुखदेव सिंह ढ़ीढसा भी साथ होंगे उनकी पार्टीका नाम है शिरोमणि अकाली दल संयुक्त. इस तरह से पंजाब में पहली बार चुनाव चोतरफा लडा जाएगा. एक तरफ कांग्रेस तो दूसरी तरफ आम आदमी पार्टीतीसरी तरफ शिरोमणि अकाली दल और बसपा तो चौथी तरफ होगी बीजेपी,कैप्टन की पंजाब लोक कांग्रेस और सुखदेव सिंह ढ़ीढसा की शिरोमणि अकाली दल संयुक्त. अब जरा 2017 के विधान सभा चुनाव परिणामों के आंकड़ों पर नजर डालते हैं.

117 सीटों वाली पंजाब विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को 77 सीटों के साथ 38.64 फीसदी वोट मिले थे. आप जिसने लोक इंसाफ पार्टी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था 20 सीटों के साथ 23.80 फीसदी वोट मिले थो और लोक इंसाफ पार्टी को 2 सीट औरि 1.2 फीसदी वोट मिले थे. वहीं शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी गठबंधन को 18 सीटें मिली थी जिसमें से अकाली दल को 15 सीट और 25.2 फीसदी तो बीजेपी को 3 सीट और 5.4 फीसदी वोट मिले थे. तो ये रहा पंजाब के पिछले चुनाव का गणित. अब 2017 से 2022 के चुनाव में आते है जो फरवरी महीने में होने वाला है. चुनावी परिस्थिति काफी बदल गया है. पंजाब में कैप्टन के बजाए कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी के रूप में एक दलित को मुख्यमंत्री की कमान सौंपी है. अकाली और बीजेपी का गठबंधन टूट चुका है किसान कानून की वजह से. अकाली दल अब बसपा के साथ है जिसने सत्ता में आने पर दलित उपमुख्यमंत्री बनाने की बात कही है पंजाब में 2017 में बसपा को 1.5 फीसदी वोट मिले थे. बीजेपी जिसे 2017 में 5.4 फीसदी वोट मिला था ने अब कैप्टन का दामन थाम लिया है और पहली बार सीनियर दल के रूप में चुनाव लड़ने जा रही है. अभी तक बीजेपी पंजाब में 25 सीटों के आसपास ही लड़ती रही है.

2017 में अकाली दल ने बीजेपी को 23 सीटें दी थी जिसमें से बीजेपी ने 3 सीट पठानकोट,फजिल्का और कपूरथला ही जीत पाई थी. यानि बीजेपी के लिए पंजाब चुनाव पहाड चढने जैसा है. भले ही सरकार ने कृषि कानून वापिस ले लिया है लेकिन साल भर चले आंदोलन और उसमें जान गवांए किसानों की टीस पंजाब भूला नहीं है. दूसरी ओर पंजाब की मौजूदा कांग्रेस सरकार ने 400 के करीब किसानों को मुआवजा दे दिया है.

मगर अभी भी कांग्रेस में यह कहना मुश्किल है कि यदि कांग्रेस जीतती है तो मुख्यमंत्री कौन होगा. यह संदेह वोटरों के मन में भी होगा क्योंकि नवजोत सिंह सिद्धु क्या चुप बैठेगें क्योंकि सभी को मालुम है कि सिद्धु दो धारी तलवार की तरह की तरह है पता नहीं कब किसको काट दें. यानि पंजाब में चुनाव बिसात पूरी तरह बिछ गई है. जिसके एक खिलाड़ी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं 2017 में आम आदमी पार्टी को 20 सीटों के साथ 23.80 फीसदी वोट मिले थे जो की अकाली दल से 2 फीसदी ही कम है यही वजह है कि अरविंद केजरीवाल हर तीसरे दिन पंजाब में गुजार रहे हैं. घोषणाओं की बाढ़ लगा रखी है उन्होनें हर महिला को 1000 रूं महीने के मुफ्त,बिजली बिल माफ और बाकी तरह की माफी भी. अच्छे स्कूल और अस्पताल का वायदा भी.

क्योंकि अरविंद केजरीवाल को लगता है कि यह चुनाव आम आदमी पार्टीके लिए जीवन मरण का प्रश्न हैं क्योंकि उनके कई विधायक उनेहें छोड़ चुके हैं  और भगवंत मान खुद को मुख्यमंत्री पद के दावेदार ना घोषित किए जाने से नाराज बताए जा रहे हैं. अब अकाली दल और बसपा की बात तो अकाली दल खुद को सबसे पहले कृषि कानून को लेकर एनडीए छोड़ने की बात जनता को बता रही है साथ ही पंजाब की पार्टीहोने का भी दांव खेलती रही है. देखना होगा उनमें कितना दम है क्योंकि इतना तो जरूर कहा जा सकता है कि पंथ का वरदहस्त उन पर रहता ही है.

और अंत में कैप्टन और बीजेपी की बात कर लेते हैं. इस संदर्भ में केवल एक बात कहूंगा कि 2012 के विधान सभा चुनाव में मनप्रीत बादल जो अभी भी वित्त मंत्री हैं और उस वक्त भी प्रकाश सिंह बादल के वित्त मंत्री थे ऋण माफी के सवाल पर अकाली सरकार से अलग हो गए थे और अपनी एक पार्टीपीपुल्स पार्टीआफ पंजाब बनाई थी जिसका 2012 के चुनाव में वामदलों के शात अन्य छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन था. 2012 में मनप्रीत बादल के गठबंधन को 6 फीसदी वोट मिले थे जिसकी वजह से कांग्रेस को नुकसान हुआ था और पंजाब के इतिहास में अकाली दल लगातार दूसरी बार सरकार में आई थी. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था.

मतलब कैप्टन और बीजेपी किसका नुकसान करेगे क्या वे अकाली दल के वोट में सेंध लगाऐगें या कांग्रेस के और यदि वे सफल रहे तो यह कहना मुश्किल होगा कि किसका नुकसान होगा. मतलब साफ है कैप्टन और बीजेपी के वोट प्रतिशत पर बाकी दलों का भविष्य तय होगा.अब सबसे बड़े सवाल के साथ आपको छोड जाता हूं कि क्या कैप्टन के मेल से गुरू हो सकते हैं फेल ?

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