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This Article is From May 27, 2015

खाने की पसंद क्या सरकारें तय करेंगी?

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    मई 27, 2015 21:44 pm IST
    • Published On मई 27, 2015 21:25 pm IST
    • Last Updated On मई 27, 2015 21:44 pm IST
नमस्कार मैं रवीश कुमार, मांस खाना न तो धार्मिक रूप से अपराध है न सांस्कृतिक रूप से फिर भी कुछ मांसाहारियों की एक ख़ूबी होती है। वे तीज त्योहार के टाइम एक दिन से लेकर नौ दिनों के लिए शाकाहारी हो जाते हैं। हमारे बिहार में छठ पूजा समाप्त नहीं हुई कि लोग घाट से ही मछरी खरीदने दौड़ पड़ते हैं। बंगाल में दुर्गापूजा के वक्त अंजली के बाद ही मुड़ी घंटो और कौशा मांशो खाने लगते हैं तो उत्तर भारत में नवरात्र के समय व्रत करने वाले मांस को हाथ नहीं लगाते। ऐसे कई मंदिर हैं जहां भैंसों की बली दी जाती है। बीफ का मतलब सिर्फ गाय का मांस नहीं होता। भैंस बैल और बछड़े का भी होता है। बीफ खाने के विवाद को हमें मांसाहार बनामा शाकाहार वालों से अलग देखना चाहिए।

केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी ने आजतक के मंथन कार्यक्रम में राजदीप सरदेसाई से कह दिया कि जो ये आस्था और विश्वास का मुद्दा है। गाय को भारत में पवित्र माना जाता है तो हम इसे मारने की अनुमति नहीं दे सकते। जो इसके बिना नहीं रह सकते उन्हें पाकिस्तान या अरब देशों में चले जाना चाहिए। नक़वी साहब से पहले गिरिराज सिंह ने भी मोदी विरोधियों को पाकिस्तान भेजने की बात कही थी। बेचारा पाकिस्तान भी नक़वी और गिरिराज जी के कहने पर कितने लोगों को एडजस्ट करेगा। कहीं कश्मीर से बड़ा मसला बीफ़ न हो जाए।

बुधवार सुबह इंडियन एक्सप्रेस में जब केंद्रीय गृह राज्य मंत्री रिजीजू साहब का बयान पढ़ा तो पता लगा कि मोदी सरकार में कोई तो है जो बीफ खाता है और खाने को लेकर शर्मिंदा नहीं है। मिज़ोरम की राजधानी आइज़ोल में उन्होंने कहा कि मैं अरुणाचल प्रदेश से हूं और बीफ खाता हूं। क्या कोई मुझे रोक लेगा। इसलिए किसी की आदत को लेकर इतना टची यानी छुईमुई होने की ज़रूरत नहीं है। अगर कोई मिज़ो ईसाई कहे कि यह यीशू की भूमि है तो पंजाब या हरियाणा में किसी को क्यों प्रोब्लम होना चाहिए। महाराष्ट्र गुजरात मध्यप्रदेश में हिन्दू बहुसंख्यक हैं और वे हिन्दू आस्था के हिसाब से कानून बनाना चाहते हैं। लेकिन जहां हम बहुसंख्यक हैं तो हमें अपने हिसाब से करने दो। काश कि किरण साहब अपनी बात पर अड़े रह जाते मगर आज सुबह उन्होंने स्पष्टीकरण भेज दिया कि मेरे बयान को मिसकोट किया गया है। जब सिविल सोसायटी और प्रेस ने मुझसे पूछा कि क्या बीफ खाने पर क्या उन्हें पाकिस्तान जाना होगा। मैंने कहा कि भारत एक सेकुलर देश है और खान पान की आदतों को रोका नहीं जा सकता है लेकिन हिन्दू बहुल राज्यों में हिन्दू आस्था और भावना का सम्मान किया ही जाना चाहिए। भारत में नया फैशन चल गया है। जो भी हिन्दू के ख़िलाफ बोलता है सेकुलर हो जाता है। प्रधानमंत्री का विजन एक अरब 20 करोड़ लोगों के लिए है। हमें सांप्रदायिक आधार पर न बांटा जाए।

वैसे ग़ौर से देखेंगे तो I was misquoted के अलावा कुछ भी मिसकोटेड नहीं है। लेकिन इसमें रिजीजू साहब बीफ खाने का समर्थन तो कर ही रहे हैं। शायद इसी को और क्लियर करने के लिए शाम को गुलाहाटी से बयान देते हैं कि मैंने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है। मिज़ोरम के लोग सिविल सोसायटी और प्रेस ने मुझसे पूछा कि क्या उन्हें बीफ खाने पर पाकिस्तान जाना होगा। तो मैंने कहा कि हम संविधान से शासित होते हैं जिसमें हमारी आस्था है। मैंने यह भी कहा कि मेरे परिवार में, मेरी पत्नी और मेरे बच्चे कोई बीफ नहीं खाता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मुझ पर थोपा जाएगा। इस पर कोई विवाद नहीं होना चाहिए।

इस सफाई में भी एक झोल है। वे अब कह रहे हैं कि थोपा नहीं जाना चाहिए। क्या वे एक्सप्रेस वाली बात ही कह रहे हैं। मिज़ोरम में रिजीजू साहब ने प्रेस कांफ्रेंस मे जो बोला है उसकी आडियो रिकार्डिंग मौजूद है मगर मेरे पास नहीं है। रिजीजू ने एक्सप्रेस को चुनौती नहीं दी है। क्या पता एक्सप्रेस ही रिकार्डिंग सामने रख दे। दूसरी सफाई में उनका इस बात पर ज़ोर है कि मेरे परिवार का कोई बीफ नहीं खाता है। उनसे यह पूछा जा सकता था कि क्या वे महाराष्ट्र हरियाणा की तरह पूर्वोत्तर के राज्यों में भी गौ मांस पर प्रतिबंध की वकालत करते हैं।

पूर्वोत्तर के सातों राज्य, बंगाल और केरल में बीफ खाने या बेचने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। बिहार, यूपी, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, दिल्ली सहित जम्मू कश्मीर में भी गौ हत्या पर प्रतिबंध है।

मुंबई में 1956 से गाय का मांस नहीं बिक रहा है। विनोबा भावे के कहने पर कुरैश समाज ने बेचना बंद कर दिया था। महाराष्ट्र में भी 1976 से प्रतिबंध है लेकिन इसमें 1995 के संशोधन को इस साल मंज़ूरी मिली है। नई सरकार ने गौ वंश हत्या बंदी कानून के ज़रिये बैल और बछड़े के मांस पर प्रतिबंध लगा दिया है। महाराष्ट्र में 80 प्रतिशत बीफ बैल और बछड़े का होता है। गाय का मांस तो बिकता ही नहीं है। अब कहीं और से भी लाकर गाय बैल भैंस के मांस को खाना या रखना अब जुर्म हो गया है।

भारत दुनिया में ब्राज़ील के बाद भैंसे के मीट का दूसरा बड़ा निर्यातक देश हैं। महाराष्ट्र, पंजाब उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा निर्यात होता है। भैंस को लेकर कोई राजनीति नहीं है जबकि आप हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश ही चले जाएं तो पता चलेगा कि लोग अपनी भैंस से कितना प्यार करते हैं लेकिन वे भैंसे के निर्यात पर आंदोलन भी नहीं करते। कांचा इलैया ने बफलो नेशनलिज्म किताब में सवाल भी उठाया है कि गाय पवित्र है तो भैंस क्यों नहीं है। गाय का काटना जुर्म है तो भैंस की बली क्यों जायज़ है।

महाराष्ट्र में प्रतिबंध के बाद किसान नाराज़ बताए जा रहे हैं। गो वंश हत्या बंदी कानून के बाद बीमार बैल और बछड़ों को पालना मुश्किल हो गया है। कई बार किसान इन्हें बेचकर अपना कर्ज कम कर लेते थे। अब इन्हें सूखे में भी बीमार बैल की सेवा करनी पड़ रही है। गौ हत्या और गौ मांस खाने को लेकर हमारे देश में राजनीतिक टकराव से लेकर दंगे तक हुए हैं। लाउडस्पीकर और गौ मांस को लेकर कई दंगे हो चुके हैं। दलित कार्यकर्ता और ईसाई कहते रहे हैं कि वे बीफ खाते रहे हैं। यह उनका भोजन है। हिन्दू समाज की ऊंची जातियों में भी कई लोग बीफ खाते रहे हैं। आपको बाबर से लेकर अकबर तक का फरमान मिलेगा कि हिन्दुओं की भावना का ध्यान में रखते हुए गौ मांस नहीं खाना चाहिए। गांधी का भी बयान मिलेगा। डॉक्टर अंबेडकर ने भी विस्तार से इस पर लिखा है कि ऐसा नहीं है कि ब्राह्मणों और हिन्दुओं ने कभी गौ मांस खाया ही नहीं। इसी पर इतिहासकार डीएन झा की किताब द होली काउ भी है। काफिला डाट ओर आर जी पर सुभाष गाताडे ने लिखा है कि सावरकर ने कहा था कि गाय न तो मां है न भगवान है पर एक उपयोगी जानवार है। दूध क्रांति के जनक वी कूरियन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि हमारे डेरी बिजनेस में ज़रूरी है कि जो अस्वस्थ गायें हैं उन्हें हटाते रहे हैं। मायावती ने महाराष्ट्र में गौ वंश हत्या कानून का समर्थन किया है। पंजाब सरकार ने इसी 20 मई को एक फैसला किया है कि राज्य के 472 गौशालाओं को मुफ्त बिजली दी जाएगी।

देश की छह बड़े मांस निर्यातक कंपनियों में चार के मालिक हिन्दू हैं। बीमार गायों और चौराहों पर पोलिथीन खाने के लिए मजबूर गायों के लिए तो कुछ नहीं है। बूढ़ी और बीमार गायों का रखरखाव कौन करेगा। भारतीय राजनीति के इस सवाल पर ऐसा कुछ बचा नहीं है जो कहा नहीं गया हो। रोज़गार से लेकर आहार तक पर चर्चा हो चुकी है। रिजीजू साहब हो सकता है एक बार और सफाई दें लेकिन क्या हम इसे लोकतांत्रिक अधिकारों के चश्में से देख सकते हैं। नहीं खो वाला वैसे ही नहीं खाता है। जो खाता है उससे कानून से क्यों वंचित किया जाए। प्राइम टाइम

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