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Kanwar Yatra Controversy: हर साल कांवड़ यात्रा को लेकर बवाल क्यों बढ़ रहा है?

Kanwar Yatra Controversy: ये भी मान्यता है कि जब श्रावण मास में देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था और इस समुद्र मंथन से काल-कूट विष निकला था तो शिवजी ने संसार की रक्षा करने के लिए इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया था और इस विषपान से उनका ताप काफी बढ़ गया था और इसी के बाद देवराज इंद्र ने जल वर्षा करके शिवजी के ताप को कम किया था.

Kanwar Yatra Controversy: हर साल कांवड़ यात्रा को लेकर बवाल क्यों बढ़ रहा है?
  • हर साल सावन महीने में कांवड़ यात्रा के दौरान हिंसा और मारपीट की घटनाएं होती हैं, जिनमें आम राहगीरों को भी नुकसान पहुंचता है.
  • कांवड़ बांस या लकड़ी से बना पवित्र डंडा होता है, जिसमें गंगाजल भरा जाता है और इसे जमीन पर नहीं रखा जाता है.
  • कांवड़ खंडित होने पर कांवड़ियों को आस्था का अपमान लगता है, जिससे विवाद और हिंसा की घटनाएं बढ़ जाती हैं.
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नई दिल्ली:

हर साल सावन के महीने में कांवड़ियों को लेकर दो तरह की खबरें आती हैं और इन खबरों के साथ हमारा देश भी दो भागों में बंट जाता है. एक तरफ राइट में वो लोग होते हैं, जो कांवड़ियों को बदनाम करने का आरोप लगाते हैं और ये कहते हैं कि छोटी मोटी घटनाओं को जानबूझकर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है ताकि हिन्दू धर्म को बदनाम किया जा सके. दूसरी तरफ लेफ्ट में वो लोग होते हैं, जो कांवड़ियों पर हिंसा और गुंडागर्दी का आरोप लगाते हैं और ये कहते हैं कि कांवड़ यात्रा पर रोक लगनी चाहिए.

इन दोनों तरह की खबरों को लेकर हर साल राजनीति होती है और इस राजनीति के कारण बीच में जो असली मुद्दा है, उसे कोई नहीं देखता. ये मुद्दा है कि हर साल कांवड़ यात्रा के दौरान हिंसा और मारपीट की घटनाएं क्यों होती हैं और कैसे इन घटनाओं को राजनीति की नहीं बल्कि एक समाधान की ज़रूरत है. आज हम एक ऐसी ही तरकीब बताएंगे, जिससे कांवड़ यात्रा के दौरान होने वाली हिंसक घटनाएं पूरी तरह से रुक सकती हैं और इस विवाद को हमेशा के लिए खत्म किया जा सकता है.

कांवड़ यात्रा में हिंसक घटनाएं

पिछले एक हफ्ते में ऐसी 9 घटनाएं हो चुकी, जिनमें कांवड़ियों ने अपनी कांवड़ खंडित होने पर हिंसा और मारपीट की है. ज्यादातर घटनाओं में जिन लोगों को पीटा गया या जिनकी गाड़ियों में तोड़फोड़ हुई, वो लोग आम राहगीर थे, जो उसी रूट से अपने घर, दफ्तर या काम पर जा रहे थे, जहां से कांवड़िये अपनी कांवड़ में गंगा जल लेने जाते हैं.

कांवड़ क्या होती है?

कांवड़ बांस या लकड़ी से बना वो डंडा होता है, जिसे रंग बिरंगे पताकों, झंडे, धागे और चमकीले फूलों से सजाया जाता है और उसके दोनों सिरों पर गंगाजल से भरे कलश, प्लास्टिक की केन और बोतल को लटकाया जाता है. ये वही कलश होते हैं, जिनमें श्रद्धालू गंगा जल भरकर लाते हैं और उन्हें शिवलिंग पर अर्पित करते हैं. ये कांवड़ इतनी पवित्र होती है कि इसे कभी भी जमीन पर नहीं रखा जाता है. इसे किसी ऊंचे स्थान या पेड़ पर लटका कर रखा जाता है और ऐसी मान्यता है कि जमीन पर कांवड़ को रखने से वो अपवित्र और खंडित हो जाती है. इससे आप ये समझ सकते हैं कि एक कांवड़िये के लिए उसकी कांवड़ से बढ़कर कुछ नहीं होता और उसकी कांवड़ यात्रा तभी पूरी मानी जाती है, जब वो अपनी कांवड़ में गंगा जल लेकर आता है और उससे शिवजी का जलाभिषेक करता है. 

विवाद की जड़ में यही कारण है

अब जिस कांवड़ के बिना कांवड़ यात्रा पूरी नहीं हो सकती, अगर वही कांवड़ किसी वजह से खंडित हो जाए या अपवित्र हो जाए तो कांवड़ियों को ऐसा लगता है कि उनकी आस्था के साथ अपमान हुआ है और इस वजह से वो अपनी कांवड़ को खंडित करने वालों से लड़ने-झगड़ने लगते हैं.

लड़ाई बढ़ कैसे जाती है?

ज्यादातर कांवड़िये एक ग्रुप में गंगा जल लेने के लिए जाते हैं इसलिए जब झगड़ा और विवाद होता है तो उसमें एक से ज्यादा कांवड़िये शामिल हो जाते हैं और इस तरह मारपीट और तोड़फोड़ की घटनाएं ज्यादा होती हैं. यहां कांवड़ियो का तर्क ये होता है कि उनकी कांवड़ खंडित हुई है जबकि दूसरे पक्ष का तर्क ये होता है कि उन्होंने जानबूझकर ऐसा नहीं किया और यहां दोनों पक्ष अपनी-अपनी जगह पर सही हैं.

असल में ये पूरी समस्या ट्रैफिक से जुड़ी है. भारत में हर साल लगभग 5 करोड़ हिन्दू कांवड़ यात्रा में शामिल होते हैं और जब ये कांवड़ लेने के लिए जाते हैं तो इन्हें उन्हीं सड़कों से पैदल या गाड़ियों में हरिद्वार और दूसरे स्थानों पर जाना होता है, जहां आम गाड़ियां भी गुजरती हैं. अब जब एक ही सड़क पर एक ही समय में लाखों कांवड़िये और लाखों गाड़ियां एक साथ गुज़र रही होती हैं तो ऐसी स्थिति में पूरी सम्भावना होती है कि कोई गाड़ी, ट्रक या मोटरसाइकिल, किसी कांवड़िये से टकरा जाए और इस हादसे में कांवड़िये की कांवड़ खंडित हो जाए. जब ऐसी ही होता है और कोई कांवड़ खंडित हो जाती है और कांवड़ियों और आम राहगीरों के बीच झगड़ा बढ़ा जाता है और बात हिंसा और मारपीट तक पहुंच जाती है.

बड़ी बात ये है कि ये घटनाएं हर साल होती हैं और हम हर साल इन घटनाओं को इसलिए नहीं रोक पाते क्योंकि कांवड़ियों को और गाड़ियों को एक ही रूट और एक ही सड़क से गुज़रना होता है. सरकार और प्रशासन इस बात को जानते हैं लेकिन उनके सामने ये चुनौती है कि अगर वो कांवड़ियों के लिए पूरा रूट बंद कर देंगे तो आम लोगों को आने-जाने में परेशानी होगी और अगर कांवड़ियों के लिए रास्ता बंद कर देंगे तो कांवड़ यात्रा ही नहीं निकल पाएगी. ऐसी स्थिति में सरकार एक ही सड़क और रूट से कांवड़ यात्रा भी निकालती है और गाड़ियों की आवाजाही भी उसी रूट से होती है और ये घटनाएं हर साल होती रहती हैं.

तो सरकार क्या करती है

कुछ जगहों पर एक्सप्रेसवे और हाइवे पर सरकार कांवड़ियों के पैदल चलने के लिए एक मार्ग बनाती है लेकिन छोटे शहरों में जहां FOUR LANE, TWO LANE हाइवे और सड़कें, वहां कांवड़ियों के लिए एक अलग से रूट बनाना मुश्किल होता है और इन्हीं इलाकों में अक्सर सड़क हादसों में कांवड़ खंडित होने की घटनाएं होती हैं. 

सरकार फिर क्या करे?

अगर इन घटनाओं को हमेशा के लिए रोकना है तो सरकार को एक ऐसी व्यवस्था बनानी होगी, जिसमें कांवड़ियों के पैदल मार्ग को गाड़ियों के रूट से अलग किया जा सके. अगर एक ही सड़क पर कांवड़िये भी चलेंगे और गाड़ियां भी आएंगी-जाएंगी तो ये घटनाएं होती रहेंगी और इन्हें कभी नहीं रोका जा सकेगा. 

विदेशों में ऐसा होता था

आप इसे समझिए कि विदेशों में साइकिल पर चलने वाले लोगों के लिए एक अलग मार्ग होता है, जो गाड़ियों के सड़क मार्ग से अलग होता है. इससे सड़क हादसे कम होते हैं और सड़कों पर रोड रेज की घटनाएं भी नहीं होतीं. इसके अलावा आप इसे फुटपाथ के उदाहरण से भी समझ सकते हैं. जिन शहरों में फुटनाथ पर अवैध कब्जा हो जाता है और इसके कारण लोगों को उसी सड़क पर पैदल चलना पड़ता है, जिस सड़क से गाड़ियां गुज़रती हैं तो फिर इससे सड़क हादसे बढ़ जाते हैं, सड़कों पर ट्रैफिक जाम बढ़ने लगता है और गाड़ियां कई बार पैदल राहगीरों को टक्कर मार देती हैं. हमारे देश में हर साल इसकी वजह से 35 हज़ार लोगों की मौतें होती हैं और यही समस्या कांवड़ यात्रा के दौरान भी होती है. कांवड़िये जब उन्हीं सड़कों से कांवड़ लेने जाते हैं, जिन सड़कों पर गाड़ियां चलती हैं तो एक मार्ग से गुज़रने के कारण सड़क हादसे होते हैं और ज्यादातर मामलों में कांवड़ खंडित होने पर कांवड़ियों और आम लोगों में मारपीट और हिंसा हो जाती है.

इसका एक ही समाधान है कि अगर कांवड़ यात्रा के पूरे रूट पर गाड़ियों के लिए सड़क मार्ग और कांवड़ियों के लिए पैदल मार्ग अलग हो तो ये घटनाएं होंगी ही नहीं लेकिन अभी ऐसा मुमकिन ही नहीं है. एक्सप्रेसवे और हाइवे पर तो ऐसा कुछ जगहों पर मुमकिन हो सकता है लेकिन छोटे शहरों में फुटपाथ नहीं होने या फुटपाथ पर अतिक्रमण होने से कांवड़ियों को सड़क पर चलना पड़ता है और इसी वजह से ये सारी घटनाएं होती हैं.

कांवड़ को इतना पवित्र क्यों मानते हैं?

यहां आपके मन में ये सवाल भी होगा कि कांवड़िये कांवड़ को लेकर इतने भावुक क्यों होते हैं? तो असल में कांवड़ को भगवान शिव की भक्ति का प्रतीक माना गया है. हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि श्रावण मास, जिसे सावन का महीना भी कहते हैं, ये महीना भगवान शिव को समर्पित होता है. शिव पुराण के अनुसार श्रावण मास में भगवान शिव और देवी पार्वती भू-लोक पर विचरण करने के लिए आते हैं और इसीलिए इस श्रावण मास में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनका जलाभिषेक किया जाता है और इस जलाभिषेक के लिए कांवड़ में गंगाजल लेकर आया जाता है. 

ये भी मान्यता है कि जब श्रावण मास में देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था और इस समुद्र मंथन से काल-कूट विष निकला था तो शिवजी ने संसार की रक्षा करने के लिए इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया था और इस विषपान से उनका ताप काफी बढ़ गया था और इसी के बाद देवराज इंद्र ने जल वर्षा करके शिवजी के ताप को कम किया था, जिसकी वजह से अब हर वर्ष श्रावण के महीने में शिवजी का जलाभिषेक किया जाता है और इसके लिए कांवड़ में गंगाजल लाया जाता है.

भारत में भगवान शिव की सबसे ज्यादा पूजा

कांवड़ का महत्व इसलिए भी ज्यादा होता क्योंकि कांवड़ भगवान शिव को समर्पित होती है और भारत में भगवान शिव को सबसे ज्यादा पूजा जाता है. अमेरिका के मशहूर THINK TANK, PEW RESEARCH के मुताबिक, भारत में सबसे ज्यादा हिन्दू भगवान शिव की पूजा करते हैं. इसके बाद भगवान हनुमान की पूजा करते हैं, फिर भगवान गणेश, फिर मां लक्ष्मी, फिर भगवान श्री कृष्ण, फिर मां काली और फिर भगवान राम को हिन्दू अपने सबसे करीब मानते हैं. भगवान शिव के प्रति ज्यादा विश्वास होने के कारण जब साल में एक बार लाई जाने वाली कांवड़ सड़क हादसे में खंडित हो जाती है तो ये विवाद का कारण बन जाती है और इसी वजह से सारे फसाद होते हैं. आप इस कांवड़िये का वीडियो देखिए, जिसकी कांवड़ एक गाड़ी से टक्कर के बाद खंडित हो गई और ये कांवड़िया सड़क पर बेसुध होकर रोना लगा और इसे ऐसा लग रहा था कि इसका सबकुछ खत्म हो गया है.

हमारी सलाह

हमारी एक ही सलाह है कि इस मामले को राइट और लेफ्ट में बांटकर ना देखा जाए क्योंकि जब ऐसा होगा, तब तक हर साल ये हिंसा और मारपीट होती रहेगी. अगर सरकार को इसका रास्ता निकालना है तो उसे कांवड़ यात्रा के लिए अलग से पैदल मार्ग बनाना ही होगा और कांवड़ियों को भी ये समझाना होगा कि सड़क यातायात के नियम कितने जरूरी होते हैं और उन्हें इसका पालन ज़रूर करना चाहिए और कानून को अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए. इस मुद्दे पर Puducherry की उप-राज्यपाल किरण बेदी ने भी एक सलाह दी है, जिसे हमारी सरकारों, कांवड़ियों और आम लोगों को ध्यान से सुनना चाहिए.

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