बेरोज़गारी से ही कहना होगा कि अगर वह कहीं है तो सरकार को दिख जाए. क्योंकि सरकार के पास नौकरियों के जो आंकड़े हैं उससे लगता है कि बेरोज़गार नौकरी लेकर मुझसे व्हाट्सऐप मैसेज से मज़ाक करते रहते हैं कि हमारी ख़बर दिखा दीजिए. हम बस नौकरी लेकर टीवी पर बेरोज़गार दिखना चाहते हैं. जिस रफ्तार से अलग-अलग राज्यों के बेरोज़गारों के पास मेरे नंबर पहुंच जा रहा है...कहीं मैं ही बेरोज़गार न हो जाऊं. आज दो बातें हुई. महेश व्यास ने आंकड़ा दिया है कि पिछले छह हफ्ते में तीन बार बेरोज़गारी की दर 10 प्रतिशत से अधिक हुई है. यह किसी भी स्तर से भयंकर है. दूसरी घटना यह हुई है कि आज महाराष्ट्र के इंजीनियरों ने मेरे फोन पर धावा बोल दिया. उनका दावा है कि वे संख्या में 75,000 हैं और सरकार उन्हें डिप्लोमा इंजीनियरों की भर्ती में शामिल नहीं होने दे रही है.
पुणे के आयुक्तालय में इन इंजीनियरों ने 11 दिनों का धरना भी दिया था. जिसमें तरह-तरह से प्रदर्शन किए और कई नेताओं से मुलाकात की. केले बेचे, चाय बेची. डिग्री बेचने का प्रदर्शन किया. इनका कहना है कि इस वक्त महाराष्ट्र सरकार ने महाभर्ती निकाली है. PWD, सिचाई और जल संरक्षण विभाग में. 2500 जूनियर इंजीनियरों के लिए वैकेंसी आई है. ज़ाहिर है 1998 के नियमों के अनुसार सिर्फ डिप्लोमा इंजीनियर ही इसमें शामिल हो सकते हैं. डिप्लोमा इंजीनियर भी नहीं चाहेंगे कि उनकी योग्यता के इम्तेहान में कोई और आ जाए. क्योंकि इंजीनियरों की बहाली होगी तो डिप्लोमा इंजीनियर को मौका नहीं मिलेगा. मगर बेरोज़गारी इतनी है कि नौजवानों का सब्र टूट रहा है.
छात्रों ने मुझे समझाया कि महाराष्ट्र का चयन आयोग इंजीनियर की बहाली में कई साल ले लेता है. 2017 की परीक्षा का रिज़ल्ट हाल में आया है. वह भी 15-200 वैकेंसी निकलती है. जूनियर इंजीनियर की नौकरी एक ही परीक्षा में हो जाती है तो जल्दी होने की उम्मीद है. इसलिए उन्हें भी मौका मिलना चाहिए. आखिर 75,000 इंजीनियरों के लिए बहाली क्यों नहीं निकलती है. जो कि बात सही भी है. इनका कहना है कि सरकार चाहे तो नियमों में बदलाव कर उन्हें भी भर्ती में शामिल होने की अनुमति दे सकती है. इन्हें इस बात का भरोसा है कि प्राइम टाइम में दिखा देने से महाराष्ट सरकार नींद से जाग जाएगी. तो मैं अपना भरोसा दिला देता हूं, आगे महाराष्ट्र सरकार जाने वो जागती है या नहीं जागती है?
जो बेरोज़गार हैं उनका दर्द वही जानते हैं. बस मेरी नज़र में उनकी कमी यही है कि वे सब अपनी अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं. ऐसा नहीं हैं कि ये लोग संघर्ष नहीं करते मगर अपने-अपने टापुओं में संघर्ष करने से नतीजे नहीं निकलते. अब 11 फरवरी को जब लखनऊ में प्रियंका गांधी रैली कर रही थीं तब बहुत से इंजीनियर कांग्रेस दफ्तर पहुंच गए. रैली में शामिल होने के लिए नहीं बल्कि वहां दिल्ली से आए पत्रकारों से संपर्क करने कि उनकी बात कोई उठा दे और मुख्यमंत्री योगी की निगाह में उनकी तकलीफ आ जाए. हमारे सहयोगी मनोरंजन भारती ने एक से संपर्क करा दिया.
उसने बताया कि उत्तर प्रदेश में 2200 के करीब इंजीनियरों की नौकरी जाने वाली है. इनमें से एक ने बताया कि वह गुजरात में एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था. उसी सैलरी में यूपी आ गया. ऐसी ही कहानी कइयों की है. जब इन्होंने विज्ञापन देखा कि यूपी पावर कार्पोरेशन लिमिटेड को आउटसोर्सिंग के ज़रिए इंजीनियर चाहिए तो अपने राज्य में नौकरी की आस में चले आए. इनका इंटरव्यू हुआ और फिर सलेक्शन. कोई बीटेक था तो कोई डिप्लोमा. सभी को प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट सौभाग्य योजना के लिए काम पर रखे जाने थे. इनका काम था घर-घर बिजली पहुंचाना. इनका कहना है कि जमकर मेहनत की और दिन रात काम कर अपना लक्ष्य पूरा कर दिया, लेकिन अभी भी कई ज़िलों में 45 प्रतिशत काम अधूरा है. फिर भी तीन ज़ोन से इन इंजीनियरों को हटा दिया गया. इनका यह भी कहना है कि यूपी में विद्युत विभाग में 60,000 से अधिक पद रिक्त हैं तो इन्हें क्यों हटाया जा रहा है. इन सभी को 28 फरवरी के आदेश से हटा दिया गया है.
ज़ाहिर है 15 महीने के कांट्रेक्ट के लिए रखा गया था, मगर 6-7 महीने में ही निकाल दिया गया. इन 2000 इंजीनियरों को भी समझ आ गया कि टीवी पर हिन्दू मुस्लिम का डिबेट चलेगा तो इनकी समस्याओं को जगह कहां मिलेगी. नेशनल सैंपल सर्वे 2017-18 का डेटा सामने नहीं आ सका. राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के दो-दो सदस्यों ने भी इस्तीफा दे दिया, इसके बाद भी बेरोज़गारी के आंकड़े अपने आप इसी तरह बाहर आते जा रहे हैं. आज ही खबर आई कि भारत संचार निगम लिमिटेड BSNL से 35,000 कर्मचारियों को ज़बरन रिटायर किया जा रहा है. अलग-अलग खबरों के अनुसार उनसे कहा जा चुका है और कहा जाने वाला है कि वे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले लें.
बीएसएनएल कर्मचारी यूनियन का कहना है कि सेवानिवृत्ति देने की योजना से कोई लाभ नहीं होने वाला है. आईआईएम अहमदाबाद ने एक रिपोर्ट दी है कि निजी टेलीकॉम कंपनियों की तुलना में बीएसएनएल में 5 गुना ज़्यादा कर्मचारी हैं. बीएसएनल आर्थिक संकट से गुज़र रहा है, इसलिए अपने खर्चों में कटौती के लिए कई तरह के उपायों पर विचार किया जा रहा है. इसमें मेडिकल बिल और यात्रा भत्ते में कटौती का विचार हो रहा है. पिछली तिमाही में बीएसएनल को करीब दो हज़ार करोड़ का घाटा हुआ था. घाटे का क्या कारण है. हम शीर्ष अधिकारियों का बयान नहीं ले सके, लेकिन यूनियन वालों का कहना है कि बीएसएनएल के पास 4जी नहीं होने के कारण वे बाकी कंपनियों के साथ प्रतियोगिता नहीं कर पा रहे हैं.
हमने आपको अलग-अलग कहानियां इसलिए बताईं ताकि आप देखें कि नौकरी के सेक्टर में क्या हो रहा है. अभी तक इस बात के कम आंकड़े आए हैं कि नीचले स्तर पर काम करने वालों की सैलरी कितनी बढ़ी है, उसके बढ़ने की रफ्तार क्या है. पिछले दिनों खबर आई थी कि नेशनल सैंपल सर्वे 2017-18 की रिपोर्ट के अनुसार सर्वे के साल में 45 साल में सबसे अधिक बेरोज़गारी दर्ज हुई है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनमी के महेश व्यास तो कब से कह रहे हैं कि वास्तविक बेरोज़गारी 8 से 9 फीसदी के करीब है. आज महेश व्यास ने एक और लेख लिखा है. इस लेख के नतीजे ख़तरनाक हैं.
जुलाई 2017 से ही बेरोज़गारी की दर बढ़ती जा रही है. दिसंबर 2018 में बेरोज़गारी की दर 7.4 हो गई है. जनवरी में इसमें थोड़ी गिरावट आई 7.1 प्रतिशत हुई, लेकिन अब फिर से फरवरी में तेज़ी से वृद्धि देखी जा रही है. 10 फरवरी को बेरोज़गारी की दर 8.63 प्रतिशत पर पहुंच गई. महेश व्यास का कहना है कि पिछले छह महीने में साप्ताहिक बेरोज़गारी की दर तीन बार 10 प्रतिशत के पार चली गई. 27 जनवरी को समाप्त हुए सप्ताह में 11.2 प्रतिशत थी. सरकार मानने को तैयार नहीं है.
जो सेक्टर नौकरियों का सिर्फ 10 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करता है, मैं उसके कुछ आंकड़े देना चाहता हूं. मैं ज़रा वह 10 परसेंट वाला हिसाब देना चाहता हूं. सितंबर 2017 से लेकर नवंबर 2018 तक करीब 15 महीने में 1 करोड़ 80 लाख लोगों ने पहली बार प्रोविडेंट फंड कटाना शुरू किया. क्या यह बिना रोज़गार के होता है. इनमें से 64 परसेंट लोग हैं जिनकी उम्र 28 साल है. इसके अलावा एक और तथ्य मैं आपको देना चाहता हूं. हमारे देश में मार्च 2014 में करीब 65 लाख लोगों को नेशनल पेंशन सिस्टम में रजिस्टर किया गया. पिछले साल अक्तूबर में यह संख्या 1 करोड़ 20 लाख हो गई है. यह भी बिना नौकरी के हुआ. क्या कोई ऐसे ही कर देता होगा.
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलते हुए प्रधानमंत्री ने रोज़गार पर कई बातें रखीं. आप पूरा भाषण पढ़ना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि 4 साल मे 36 लाख बड़े ट्रक या कमर्शियल व्हीकल्स बिके हैं. करीब डेढ़ करोड़ पसेंजर व्हीकल बिके हैं. 27 लाख से ज्यादा ऑटो की बिक्री हुई है, जिन्होंने भी ये गाड़ियों खरीदी हैं, उनको चलाने वाला होगा. इसके आसपास भी रोज़गार पैदा हुआ होगा. मगर ट्रक ऑपरेटर्स वाले तुरंत ही खंडन करने लगे.