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This Article is From May 11, 2016

सुशील कुमार को नज़रअंदाज़ करना क्यों है मुश्किल

Vimal Mohan
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 11, 2016 00:27 am IST
    • Published On मई 11, 2016 00:07 am IST
    • Last Updated On मई 11, 2016 00:27 am IST
सुशील के मन में रियो में पदक जीतने का सपना है और नरसिंह यादव के मन में भी। रियो के लिए क्वालिफ़ाई नरसिंह यादव ने किया है, 74 किलोग्राम वर्ग में और वो कहते हैं कि उनका हक़ है कि उन्हें रियो जाने का मौक़ा मिले।

कई जानकार कहते हैं कि अगर अब तक ओलिंपिक्स में जाने के लिए ओलिंपिक्स का क्वालिफ़ाइंग टिकट हासिल करने के बाद ट्रायल्स नहीं किए गए, तो अब क्यों? नरसिंह यादव ये भी कहते हैं कि उनका फ़ोकस रियो की तैयारी पर है और उनका ध्यान बंटाना ठीक नहीं। वो ये भी कहते हैं कि वो 74 किलोग्राम में अनुभवी और बेस्ट पहलवान हैं।

ओलिंपिक का कोटा एथलीट अपने देश के लिए जीतता है और ये अधिकार उस देश के फ़ेडरेशन को होता है कि वो किस खिलाड़ी को इन खेलों में हिस्सा लेने का मौक़ा दे। भारतीय कुश्ती संघ ने अब तक चुप्पी साध रखी है। ज़ाहिर है पत्रकार दोनों पहलवानों से पूछ कर उनके बयानों के आधार इस मसले को तूल दे रहे हैं।  

सुशील ने अब तक ये नहीं कहा कि वो भारतीय ओलिंपिक के इतिहास में इकलौते डबल ओलिंपिक पदक विजेता (निजी स्पर्धाओं में) हैं, इसलिए रियो के टिकट पर हक़ उनका भी बनता है। उनका कहना है कि पिछले चार सालों में उनका फ़िटनेस लेवल अभी बेहतरीन है। वो चाहते हैं कि उनके और नरसिंह के बीच ट्रायल्स हों और उसके आधार पर ही रियो जाने का फ़ैसला किया जाए।

ऐसे में कुश्ती संघ को दोनों पहलवानों की भावनाओं से ऊपर उठकर इसका फ़ैसला करना चाहिए। उन्हें शायद इस आधार पर फ़ैसला करना चाहिए कि रियो में किस पहलवान के जीतने की उम्मीद ज़्यादा है। इसके लिए दोनों पहलवानों की भिड़ंत एक सही विकल्प नज़र आता है।

26 साल के नरसिंह कहते हैं कि उन्होंने 2007 से लेकर अब तक 74 किलोग्राम वर्ग में कई पदक जीते हैं। नरसिंह ने 2010 के कॉमनवेल्थ खेलों में 74 किलोग्राम वर्ग में स्वर्ण पदक, 2014 इंचियन एशियन गेम्स में कांस्य पदक एशियन चैंपियनशिप 2015 में कांस्य पदक और 2015 लास वेगास वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीते और रियो का टिकट भी हासिल कर लिया।

वैसे नरसिंह यादव 2012 लंदन ओलिंपिक्स कनाडा के मैट्ट जेंट्री से 74 किलोग्राम वर्ग में पहला मैच हार कर बाहर हो गए थे।

सुशील कुमार ने 2004 के एथेंस ओलिंपिक्स में भी हिस्सा लिया था, 60 किलोग्राम वर्ग में। लेकिन तब वो नाकाम रहे थे। लेकिन 2008 में कांस्य और 2012 में रजत पदक जीतकर उन्होंने इतिहास कायम कर दिया।  सुशील ने 74 किलोग्राम वर्ग में ग्लासगो कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक भी जीता है।

वर्ल्ड चैंपियन सुशील ने बयान दिया है, "मैं सिर्फ़ ट्रायल्स की मांग कर रहा हूं। मैं नहीं कहता कि मेरा रिकॉर्ड शानदार रहा है इसलिए मुझे रियो भेज दिया जाना चाहिए।"  सुशील अमेरिकी पहलवान जॉर्डन बुरोह का भी उदाहरण पेश करते हैं। वो कहते हैं कि ओलिंपिक चैंपियन बुरोह को भी ट्रायल्स देना पड़ा और ऐसा पूरी दुनिया में होता है तो यहां क्यों नहीं?

सवाल ये भी है कि नरसिंह अगर खुद को 74 किलोग्राम का बेस्ट पहलवान कहते हैं तो ट्रायल्स से ऐतराज़ क्यों? सुशील ये भी बताते हैं कि 1992 और 1996 ओलिंपिक्स के दौरान ट्रायल्स होते रहे हैं।

सुशील को 2008 और 2012 में किसी ने चुनौती नहीं दी। इसलिए उन्हें ट्रायल्स के दौर से नहीं गुज़रना पड़ा। लेकिन जिस देश में ओलिंपिक के पदक बिरले ही आते हों, अगर वहां एक आज़माया, अनुभवी चैंपियन ट्रायल्स की मांग करता है तो क्या ये ज़्यादती है? क्या भारतीय कुश्ती संघ को सुशील की मांग को नज़रअंदाज़ करना चाहिए?

(विमल मोहन एनडीटीवी इंडिया में कार्यरत हैं...)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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