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फिल्म ने जीते 6 फिल्मफेयर और एक राष्ट्रीय पुरस्कार, प्रोड्यूसर की भर गई जेबें, फिर भी गुमनामी में खो गए फिल्म के दोनों हीरो

1964 में रिलीज हुई फिल्म ‘दोस्ती’ ने बॉक्स ऑफिस पर कमाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. लेकिन इस फिल्म के सितारों का करियर रंग नहीं ला सका और वो गुमनामी के अंधेरे में खो गए.

फिल्म ने जीते 6 फिल्मफेयर और एक राष्ट्रीय पुरस्कार, प्रोड्यूसर की भर गई जेबें, फिर भी गुमनामी में खो गए फिल्म के दोनों हीरो
61 साल पहले रिलीज हुई ये फिल्म तो चली नहीं चली सितारों की तकदीर

बॉलीवुड के सुनहरे दौर यानी 1960 के दशक में कई ऐसी फिल्में बनीं, जो आज भी दर्शकों के दिलों में बसती हैं. इन्हीं में से एक थी ‘दोस्ती', जो 6 नवंबर 1964 को रिलीज हुई थी. ये फिल्म दो गरीब लेकिन दिल के अमीर दोस्तों की कहानी थी. जिनके नाम होते हैं रामू और मोहन की. दोनों दिव्यांग, लेकिन दोनों के बीच की सच्ची दोस्ती ने दर्शकों को जज्बातों से भर दिया था. फिल्म की सादगी, संगीत और कहानी ने इसे उस दौर की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में शामिल कर दिया. लेकिन अफसोस, इसके दोनों ही हीरो समय के साथ गुमनामी में खो गए. इस फिल्म ने आज 61 साल पूरे कर लिए हैं.

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फिल्म ने जीते 6 फिल्मफेयर और एक राष्ट्रीय पुरस्कार

सत्येन बोस के निर्देशन में बनी ‘दोस्ती' को कम बजट में बनाया गया था. लेकिन इसने बॉक्स ऑफिस पर इतिहास रच दिया. उस जमाने में इस फिल्म ने करीब 2 करोड़ रुपये की कमाई की थी, जो 1964 में किसी चमत्कार से कम नहीं था. फिल्म को 6 फिल्मफेयर अवॉर्ड्स और 1 नेशनल अवॉर्ड मिला. मोहम्मद रफी की आवाज में चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे और राही मनवा दुःख की चिंता जैसे गाने आज भी अमर हैं. लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का संगीत और मजरूह सुल्तानपुरी के बोल ने इसे और खास बना दिया. फिल्म ने सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी खूब लोकप्रियता हासिल की थी.

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गुमनामी में खो गए दोनों सितारे

इतनी हिट फिल्म के बाद आम तौर पर एक्टर्स का करियर संवर जाता है. लेकिन दोस्ती फिल्म के दोनों कलाकारों के साथ ऐसा नहीं हुआ. रामू का किरदार निभाने वाले सुशील कुमार (सुशील बेलानी) ने बचपन में ही फिल्मों में काम करना शुरू किया था. ‘दोस्ती' से मिली लोकप्रियता के बाद भी वो फिल्मी दुनिया छोड़ने पर मजबूर हो गए. उन्होंने फिल्मी दुनिया छोड़ दी और एयर इंडिया में नौकरी कर ली. मोहन का किरदार निभाने वाले सुधीर कुमार सावंत का फिल्मी करियर ज्यादा लंबा नहीं चला. कुछ मराठी और हिंदी फिल्मों के बाद उन्होंने फिल्मों से दूरी बना ली. 1993 में उनका निधन कैंसर के कारण हुआ.

कह सकते हैं कि ‘दोस्ती' ने जहां दर्शकों को भावनाओं में डुबोया. वहीं इसके दोनों सितारों की जिंदगी एक सच्ची लेकिन अधूरी कहानी बनकर रह गई.

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