डॉ विजय अग्रवाल : हमारी जिन्दगी में सबसे ज्यादा मजा जोखिम लेने में इसलिए है...

डॉ विजय अग्रवाल : हमारी जिन्दगी में सबसे ज्यादा मजा जोखिम लेने में इसलिए है...

प्रतीकात्मक चित्र

बहुत से खेल ऐसे होते हैं, जो सिर्फ रिस्क वाले होते हैं। अब हम इस बात पर इस तरह से सोचना शुरू करते हैं कि जान का खतरा होने के बावजूद कोई इसमें जाने का निर्णय क्यों लेता है? मजबूरी में जाना एक अलग बात है, जैसे कि किसी सैनिक को आदेश मिलने पर सरहद पर जाना पड़ता है। लेकिन यहां तो हमारी अपनी च्वाइस होती है। कोई भी मजबूरी नहीं होती। फिर भी हम इसे चुनते हैं, तो हम ऐसा क्यों करते हैं? इसका सरल-सा और शायद सबका ही उत्तर यह होगा कि 'इसलिए, क्योंकि ऐसा करने में मजा आता है।'

यह बिल्कुल सही उत्तर है कि 'मजा आता है।' हम यहां इसी मुद्दे पर बात कर रहे हैं। किसी भी काम को करने में या तो मजा आता है या उसे करना सजा लगती है। या फिर हो सकता है कि हमें कुछ पता ही न लगता हो। दरअसल यह मजा और सजा ही तो अनुभव है। सुकरात ने सजा के तौर पर जब जहर पिया था, तो वे उसे ऐसे पी रहे थे, मानो गरम-गरम सूप पी रहे हों। चौंकाने वाली बात यह भी है कि वे इस जहरीले सूप को पीने के दौरान अपने शिष्यों से दर्शनशास्त्र पर चर्चा भी करते जा रहे थे। क्या हममें से कोई ऐसा कर सकता है? नहीं। हममें से कोई ऐसा क्यों नहीं कर सकता? इसलिए क्योंकि हमें मजा नहीं आएगा। वह हमें सजा लगेगी। वह होती ही है। तो फिर सुकरात को क्यों नहीं लगी?

खैर, यह एक अलग बात है। अब मैं इस बात पर आता हूं कि जिंदगी को खतरे में डालने से भला किस तरह का मजा मिल सकता है। हम लोग तो अपनी जिंदगी की जद्दोजहद में ही केवल इसलिए लगे रहते हैं, ताकि उसे खतरों से बचा सकें - धन के अभाव के खतरे से, बीमारी के खतरे से, एक्सिडेंट के खतरे से, चोरी के खतरे से, मर्डर के खतरे से तथा इसी तरह के और भी न जाने किन-किन खतरों से। यदि आप सोचकर देखेंगे, तो पाएंगे कि मनुष्य जाति में जो संग्रह करने की प्रवृत्ति है, अधिक से अधिक इकट्ठा करने की जो लालसा है, उसके केंद्र में सभी तरह के खतरों से बचने की इच्छा ही है। वह चाहता है कि जिंदगी अधिक से अधिक सुरक्षित रहे। जबकि जानवर ऐसा नहीं चाहते। उनके लिए तो अभी जो है, बस वही सब कुछ है। बाद का बाद में देखा जाएगा। और एक हम हैं कि जिंदगी को खतरे में डालकर मजा लेना चाहते हैं। क्या आपको नहीं लगता कि हम बिल्कुल उल्टा काम कर रहे हैं? भला कहीं भय में, जोखिम में भी कोई मजा हो सकता है?

यह सच है कि जिंदगी को खतरे में डाल देने वाले कामों की अपनी एक बहुत बड़ी खूबी होती है और यह खूबी समय के साथ जुड़ी हुई खूबी है। जब कोई नौजवान किसी खतरनाक चट्टानों पर चढ़ रहा होता है, तो वह जानता है कि यदि उसका ध्यान एक सेकेण्ड के सौवें हिस्से के लिए भी चूका, तो वह अपने-आपको हजारों फीट गहरी खाई में गिरा हुआ पाएगा और वह यह जानने लायक भी नहीं रह जाएगा कि ऐसा क्यों हुआ। छोटी-सी चूक जिंदगी के खात्मे का कारण बन सकती है। जाहिर है कि कोई भी खिलाड़ी जानबूझकर ऐसी चूक नहीं करना चाहेगा।

इसका दूसरा पक्ष यह है कि जब कोई भी आदमी खतरनाक कामों में लगा रहता है, तो उसकी पूरी चेतना अपने वर्तमान क्षणों पर केंद्रित हो जाती है, यहां तक कि एक सेकेण्ड के हजारवें भाग तक के छोटे-से टुकड़े पर, लाखवें भाग के छोटे-से टुकड़े पर। वह पूरी तरह से वर्तमान में डूब जाता है। यानी कि ऐसे कामों के दौरान, जबकि जिंदगी और मौत का सवाल हो, उसकी चेतना और समय के बीच कोई अंतराल नहीं रह जाता, कोई स्पेस नहीं रह जाता। ये दोनों एक हो जाते हैं। ये जीवन की सबसे अधिक सघनता के क्षण होते हैं। इसे आप वर्तमान काल में रहना कह सकते हैं या वर्तमान में जीना भी कह सकते हैं। चेतना की सघनता के इस क्षण में, वर्तमान से लिप्तता के इस गहरे पल में न तो अतीत रह जाता है और न ही भविष्य। केवल एक ही काल रहता है और वह होता है-वर्तमान और यहां तक कि वर्तमान काल का भी वह छोटा-सा टुकड़ा, जिसे आप समय का गार्ड पार्टिकल्स कह सकते हैं।

समय तथा चेतना के आपसी संबंध ही अनुभव की उत्कृष्टता का निर्धारण करते हैं। समय और चेतना के बीच दूरी जितनी कम होगी, अनुभव उतना ही बेहतर और गहरा होगा। उत्कृष्ट अनुभव का यह थोड़ा सा क्षण इतना विलक्षण होता है कि आदमी इसको पाने के लिए अपनी जिंदगी तक को जोखिम में डालने का रिस्क उठा लेता है। यह अनुभव जितना ही अधिक उथला होगा, दोनों के बीच मौजूद इस दूरी में अतीत और भविष्य को घुसपैठ करने का उतना ही अधिक मौका मिल जाएगा। ऐसा होते ही अनुभव की विशुद्धता प्रदूषित होने लगेगी। नतीजे में मजा पहले तो कम फिर बाद में धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा।

- डॉ. विजय अग्रवाल जीवन प्रबंधन विशेषज्ञ हैं...

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