जेएनयू मामले में आम चुनाव से तीन महीने पहले ही चार्जशीट क्‍यों?

इस केस के सामने के आने के बाद पहली बार गोदी मीडिया का स्वरूप सामने आया था. टीवी पर राष्ट्रवाद को लेकर बहस छिड़ गई

जेएनयू मामले में आम चुनाव से तीन महीने पहले ही चार्जशीट क्‍यों?

जवाहर लाल यूनिवर्सिटी का मसला फिर से लौट आया है. 9 फरवरी 2016 को कथित रूप से देशदोह की घटना पर जांच एजेंसियों की इससे अधिक गंभीरता क्या हो सकती है कि तीन साल में उन्होंने चार्जशीट फाइल कर दी. वरना लगा था कि हफ्तों तक इस मुद्दे के ज़रिए चैनलों को राशन पानी उपलब्ध कराने के बाद इससे गोदी मीडिया की दिलचस्पी चली गई है. उस दौरान टीवी ने क्या क्या गुल खिलाए थे, अब आपको याद भी नहीं होंगे. आपको क्या, हममें से शायद ही किसी को याद होंगे. लेकिन अब जब पुलिस ने कन्हैया, उमर ख़ालिद, अनिर्बान के ख़िलाफ़ चार्जशीट पेश कर दी है तो उम्मीद है कि मीडिया 1200 पन्नों की चार्जशीट को पढ़ने का कष्ट उठाएगा. हमने चार्जशीट नहीं पढ़ी है. हमें पूरी जानकारी नहीं है कि पुलिस ने अपने आरोपों के संदर्भ में क्या सबूत होने की दलील दी है. पुलिस ने जो कोर्ट में कहा है, सूत्रों ने जो कहा है उसी के आधार पर सब कुछ है.

उस पर आने से पहले हम इस मामले से जुड़ी कुछ पुरानी ख़बरों को याद कर लेते हैं. इस केस के सामने के आने के बाद पहली बार गोदी मीडिया का स्वरूप सामने आया था. टीवी पर राष्ट्रवाद को लेकर बहस छिड़ गई तो जेएनयू में भी शिक्षकों ने खुले आसमान के नीचे राष्ट्रवाद को लेकर लेक्चर देना शुरू कर दिया जो सब यूट्यूब पर है. घटना के आस पास कई चीज़ें एक दूसरे से टकरा रही थीं. हैदराबाद में रोहित वेमुला की मौत के बाद कुछ जगहों पर छात्रों का गुस्सा उफ़ान पर था. जेएनयू के नारों में रोहित वेमुला का भी ज़िक्र हो उठता था. 11 फरवरी को इस मामले में बीजेपी सांसद महेश गिरी केस दर्ज कराते हैं और 12 फरवरी को कन्हैया कुमार, अनिर्बान और उमर ख़ालिद को गिरफ्तार किया जाता है. 19 मार्च 2016 को इन तीनों को दिल्ली हाईकोर्ट से बेल मिल जाती है. धीरे-धीरे मीडिया के पर्दे से यह केस पर्दे के पीछे चला जाता है. अब जो मीडिया अनिर्बान, उमर खालिद और कन्हैया को देशद्रोही ठहरा रहा था उसी मीडिया के लिए कन्हैया कुमार स्टार वक्ता बन जाते हैं और उन्हें चैनलों के कान्क्लेव में बुलाया जाने लगता है. कन्हैया के सहयोगी ने बताया कि आठ मीडिया कान्कल्वे में उन्हें स्टार वक्ता के रूप में बुलाया और अभी तक कन्हैया 200 कार्यक्रमों में भाषण दे चुके हैं. हमने उमर खालिद से पूछा कि क्या आपको भी चैनलों ने कन्हैया की तरह बुलाया तो जवाब मिला कि नहीं, उनके बयान तो चले मगर किसी ने अपने अंचायत पंचायत टाइप के कांक्लेव में उमर ख़ालिद को नहीं बुलाया. आप उस समय का मीडिया भी याद कीजिए. एक वीडियो टेप जिस पर तीन साल बाद पुलिस चार्जशीट पेश कर सकी है, उस वीडियो टेप को लेकर इन सभी को जनता की नज़र में देशद्रोही बना दिया गया. शहरों कस्बों में जेएनयू के खिलाफ नारे लगाते हुए रैलियां निकाली गईं और छवि बनाई गई जैसे जेएनयू में पढ़ाई के अलावा बाकी सारे काम होते हैं. उस वक्त गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी बयान दिया था कि 9 फरवरी को नारे लगाने वालों को हाफिज़ सईद का समर्थन प्राप्त है. मीडिया ने यही सवाल पूछना शुरू कर दिया. एक न्यूज़ चैनल ने तो 7 मिनट का वीडियो चला दिया कि जेएनयू के छात्र अफ़ज़ल गुरु को शहीद बोल रहे हैं जबकि सात मिनट के उस वीडियो में कोई छात्र इस तरह के नारे लगाते नहीं दिखा. चैनलों पर बोल्ड अक्षरों में लिखे जाने लगे कि जेएनयू में पढ़ाई होती है या देशद्रोह पर पीएचडी होती है. न्यूज़लौंडरी एक वेबसाइट है उस पर आप सोरोदीप्तो सान्याल का लेख देख सकते हैं. यह लेख 27 फरवरी 2016 का है. इससे पता चलेगा कि मीडिया ने इस घटना को किस दिशा में मोड़ा था. मीडिया के गोदी मीडिया में बदलने का औपचारिक एलान किया था. सूत्रों ने बताया है कि सीबीआई ने दस वीडियो की फोरेंसिक लैब में जांच करवाई है जो सही पाए गए हैं. तो एक समय चला कि वीडियो सही नहीं है, अब बात सामने आई है कि वीडियो सही हैं.

उसके बाद से इसी मीडिया ने यह सवाल कभी नहीं किया कि देशद्रोह में पीएचडी जैसे मामले में चार्जशीट दायर क्यों नहीं हो रही है, चार्जशीट बन रही है या पीएचडी हो रही है. जिस घटना को लेकर चैनलों ने इतना खूंखार रुख अपनाया उन चैनलों ने कब कब ये सवाल किया कि जेएनयू मामले में चार्जशीट कहां है. क्यों नहीं आ रही है. यह मामला पुलिस की जांच का तो है ही, मीडिया के ट्रायल का भी है. जिसका अब न तो हिसाब हो सकता है और न इंसाफ़. मीडिया में कई तरह के वीडियो आए जिन्हें लेकर तब कई सवाल उठे थे.

एक साल बाद कई मीडिया हाउस में एक खबर छपती है जिसे हफपोस्ट ने सार रूप में पेश किया था. इंडिया टुडे ने एक्सक्लूसिव रिपोर्ट की थी जिसमें बताया था कि उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया है कि तथाकथित एंटी नेशनल नारे लगाने वाले कन्हैया की आवाज़ का सैंपल सही नहीं है. इतनी खबरें आती थीं कि यह भी कहा कि प्रोफेसर तक नारे लगा रहे थे जिनका कुछ पता नहीं चला. उस समय के पुलिस कमिश्नर बी एस बस्सी ने कहा था कि काफी सबूत हैं कि कन्हैया कुमार ने नारे लगाए तब दिल्ली सरकार इसमें कूद पड़ी और अपनी तरफ से मजिस्ट्रेट जांच बिठा दी. मजिस्ट्रेट की जांच में कन्हैया कुमार को क्लिन चिट मिल गई.

हमारे सहयोगी मुकेश सिंह सेंगर ने बताया कि भ्रष्टाचार के मामले में 60 दिनों के भीतर चार्जशीट पेश करनी होती है, गंभीर अपराध के मामले में 90 दिनों में और आतंक के केस में 180 दिनों में. मगर कई बार स्थितियां अलग भी हो सकती हैं. फिर भी तीन साल बाद चार्जशीट पेश हुई है. पुलिस का कहना है कि देरी इसलिए हुई क्योंकि जांच और आरोपियों की पहचान में वक्त लगा. अब पटियाला हाउस कोर्ट इस पर संज्ञान लेगा, फिर चार्जशीट सारे आरोपियों को भी दी जाएगी और ट्रायल चलेगा. तभी हो सकता है कि चार्जशीट की बातें ठीक तरीके से मीडिया में सामने आ सकेंगी. 

कन्हैया अनिर्बान और उमर खालिद पर 124ए के तहत देशद्रोह, धारा 147 के तहत झगड़ा फसाद फैलाना, 120बी यानी आपराधिक साज़िश, 143 अवैध ढंग से जमा होना, 149 एक लक्ष्य के लिए मिलकर अपराध करना, धारा 323 जानबूझ कर नुकसान पहुंचाना, 465 जालसाज़ी करना इत्यादि आरोप लगे हैं.

पुलिस ने कुल 46 लोगों को आरोपी बनाया है. 10 मुख्य आरोपी हैं. 7 कश्मीरी नौजवान भी हैं. इनमें से कुछ जामिया के हैं, एएमयू के हैं और जेएनयू के हैं. पुलिस ने इनसे पूछताछ की है. 36 लोगों को कॉलम 12 में रखा गया है. यानी इनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले हैं. इनमें सीपीआई नेता डी राजा की बेटी अपराजिता, सहला रशीद, रामा नागा और अम्बेडकर यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर लाहिरी के नाम हैं. जेएनयू में उस रोज़ अफ़ज़ल गुरु और मक़बूल भट्ट की फांसी के विरोध में कार्यक्रम हुए थे जिसमें कथित रूप से देश विरोधी नारे लगने के आरोप हैं.

90 लोगों को गवाह बनाया गया है जिनमें जेएनयू के छात्र हैं, सिक्योरिटी गार्ड हैं, जेएनयू प्रशासन से जुड़े लोग हैं. उमर खालिद और अनिर्बान ने चार्जशीट की खबर पर अपनी प्रतिक्रिया ज़ाहिर की है. उनका कहना है कि हम दिल्ली पुलिस गृह मंत्रालय और भारत सरकार को बधाई देते हैं कि आम चुनाव से 3 महीने पहले गहरी नींद से जागे हैं. 

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