राजीव पाठक : कब ठीक होगा देश का टैक्स सिस्टम?

राजीव पाठक : कब ठीक होगा देश का टैक्स सिस्टम?

इन दिनों ज्यादातर चार्टर्ड एकाउंटेट के दफ्तरों में कर्मचारी देर शाम तक काम में उलझे रहते हैं। काम का बहुत दबाव दिखता है। हो भी क्यों न, आखिर 30 सितम्बर से पहले ऑडिटेड टैक्स रिटर्न जो भरना है। इसके अलावा देश के वित्तमंत्री अरुण जेटली को रोजाना सैकड़ों चिट्ठियां लिखी जा रही हैं कि कृपया समयसीमा थोड़ी बढ़ा दीजिए।

आखिर टैक्स कन्सल्टेन्ट समयसीमा बढ़ाने की मांग क्यों कर रहे हैं, यह जानना बेहद जरूरी है।

अब पहले समझ लें कि यह मसला क्या है। आमतौर पर नौकरीपेशा या किसी भी कमाई करने वाले, जिसे आमदनी का ऑडिट नहीं करवाना होता है, उसे 31 जुलाई तक इन्कम टैक्स रिटर्न भरना होता है, वहीं जिनका ऑडिट जरूरी होता है जैसे कि 25 लाख से ज्यादा सालाना वेतन पाने वाले या कमाई करने वाले लोग और प्राइवेट कम्पनियां, उनके रिटर्न्स (ऑडिट के साथ) भरने की अंतिम तिथि 30 सितम्बर होती है।

यही सिस्टम वर्षों से चला आ रहा है। आमतौर पर 31 जुलाई को सामान्य नौकरीपेशा लोगों के रिटर्न फाइल हो जाते हैं और फिर कंपनियों के ऑडिटेड रिटर्न फाइल करने के लिए 60 दिन मिलते हैं, लेकिन इस साल मामला गड़बड़ा गया है। इनकम टैक्स विभाग ने पहले मई महीने में ही आम लोगों के रिटर्न फाइल करने का फॉर्मेट अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया। इस फॉर्मेट में कई सारी जानकारियां मांगी गईं थी, जो देना मुश्किल हो रहा था। स्वाभाविक था कि देश में इसकी बहुत आलोचना हुई। इस आलोचना के चलते इनकम टैक्स विभाग ने इसे वापस ले लिया। फिर 50 दिनों तक कुछ नहीं हुआ और आखिरकार 29 जुलाई को नया फॉर्मेट जारी हुआ, ताकि लोग उसके मुताबिक इनकम टैक्स भर सकें। अपनी इस स्पष्ट नाकामी के चलते इनकम टैक्स विभाग ने समय बढ़ाकर 31 अगस्त कर दिया।

इसी दौरान गुजरात में पाटीदार आंदोलन के चलते हिंसा हो गई,  तो तारीख 7 सितम्बर तक बढ़ा दी गई। अब आखिरकार आमलोगों के इन्कम टैक्स रिटर्न 7 सितम्बर को भरे गये।

गुजरात के अग्रणी चार्टर्ड एकाउंटेंट रजनी शाह कहते हैं कि ऐसे में ऑडिट करने के बाद टैक्स रिटर्न भरने का जो समय पहले 60 दिन था, वह इस साल घटकर मुश्किल से 23 दिन रह गया। ऐसे में क्वालिटी काम की उमीद कैसे की जाए। इसीलिये समय बढ़ाने की मांग की जा रही है, लेकिन वित्त विभाग की  9 सितम्बर को जारी एक प्रेस रिलीज में साफ कर दिया गया है कि समयावधि नहीं बढ़ाई जाएगी। सरकार ने तर्क दिया है कि फॉर्मेट में ज्यादा फेरबदल नहीं किया गया है।

शाह कहते हैं कि अगर मामूली फेरबदल ही किए गए हैं तो विभाग को फॉर्मेट अपलोड करने में एक साल का समय क्यों लगा, क्योंकि पिछले साल बजट तो जुलाई में ही पेश हो गया था।

कई लोगों को लगता है कि इस साल इनकम टैक्स विभाग टैक्स कन्सल्टेंट से बदला ले रहा है। आखिर किस बात का बदला, इसकी कहानी भी दिलचस्प और हैरतअंगेज है।

आमतौर पर जो भी टीडीएस (टैक्स काटकर किसी को वेतन देना) काटता है उसे हर तिमाही पर वह धनराशि सरकार के पास जमा करवानी होती है और फिर प्राइवेट कंपनियों को 15 दिन में और सरकारी विभागों को 30 दिन में रिपोर्ट दर्ज करवानी होती है। इसमें अगर देरी हुई तो आपको प्रतिदिन 200 रुपये की दर से जुर्माना देना होगा। वैसे यह नियम वर्षों से है, फिर भी जुर्माना नहीं लिया जाता था, लेकिन 2012-13 की दूसरी तिमाही से अचानक लाखों लोगों को जुर्माने के नोटिस पहुंचने लगे। सभी आश्चर्य में थे।

मामला कोर्ट पहुंचा, लेकिन मुकदमा करने वालों ने सभी सरकारी विभागों से भी आरटीआई के तहत जानकारियां जुटानी शुरू कीं कि क्या यह नोटिस प्राइवेट कंपनियों के साथ सरकारी को भी मिला है, या क्या सरकारी महकमे यह रिपोर्ट समय पर भरते हैं।

इसमें जो तथ्य आए वह चौंकाने वाले थे। कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल और यहां तक कि इनकम टैक्स विभाग खुद भी समय से यह रिपोर्ट फाइल नहीं करता, लेकिन उनके खिलाफ तो कार्रवाई नहीं होती।

इस पर काफी शोर मचा। सरकार ने अपने विभागों पर लगाम तो नहीं कसी, बल्कि उन्हें इसके लिए 31 मार्च 2014 तक का समय दे दिया।

रजनी शाह कहते हैं कि शायद यह पहली बार हो रहा था कि कानून एक ही था, लेकिन प्राइवेट कंपनियों पर लागू हुआ और सरकारी विभागों को छूट दे दी गई। ऐसा भेदभाव उन्होंने पहले कभी नहीं देखा।

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इससे जुड़े कई मामले देश की अलग-अलग अदालतों में भी विचाराधीन हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि जब डिजिटल इंडिया की मुहिम चल रही है तो क्या देश में बुनियादी टैक्स व्यवस्था भी कभी सुचारू हो पाएगी?