जब बेगूसराय का एक बबुआ बन गया जेएनयू का 'बाबू'

जब बेगूसराय का एक बबुआ बन गया जेएनयू का 'बाबू'

कन्हैया कुमार (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

अपने बेगूसराय नाम सुना होगा, लेकिन पिछले कुछ दिनों से यह नाम ज्यादा चर्चा में आया है। शायद कभी कोई सोचा होगा कि बिहार के बेगूसराय के एक गरीब परिवार के लड़के कन्हैया कुमार को ऐसी पब्लिसिटी मिलेगी। एक ऐसा लड़का जो दसवीं तक की पढ़ाई सरकारी स्कूल में करता है, जिसको अंग्रेजी बोलनी नहीं आती है, जो मेहनत करके जेएनयू में एडमिशन लेता है, फिर चुनाव में छात्र संघ का नेता बन जाता है। एक ऐसा छात्र नेता, जो बोलने में काफी माहिर होता है। आगे जाकर एक टीचर बनना चाहता है, फिर एक ऐसी घटना घटती है, जिससे उसकी जिंदगी बदल जाती है।
 
जेएनयू में तो ऐसे कई छात्र-छात्राएं आते हैं जो गरीब, आदिवासी और दलित परिवार के होते हैं। यहां पढ़ाई करते हैं, जेएनयू की जमीन को अपने मेहनत से महिमामंडित करके चले जाते हैं। कोई आईएस बन जाता है तो कोई नेता, कोई राजनेता बनकर राजनीति करता है, तो कोई सामाजिक कार्यकर्ता बनकर समाज की सेवा करता है। ज्यादा से ज्यादा छात्र-छात्राएं तो प्रोफेसर बनके बच्चों को शिक्षा भी देते हैं, लेकिन शायद कन्हैया कुमार की तरह किसी को पब्लिसिटी मिली हो।

कन्हैया को मिल रही पब्लिसिटी को लेकर कई सवाल उठाए जा रहे हैं, नेता से लेकर राजनेता तक, मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक सब कन्हैया की बात कर रहे हैं। कोई कन्हैया की तारीफ कर रहा है, तो कोई कन्हैया की तारीफ सुनकर गाली भी दे रहा है। अगर आप कन्हैया के ऊपर कुछ लिख रहे हैं और उसकी तारीफ कर रहे हैं, तो संभलकर नहीं तो आप के साथ भी एक देशद्रोही की तरह व्यवहार किया जा सकता है। कुछ लोग तो कन्हैया को देशद्रोह भी मान चुके हैं। कोर्ट से पहले खुद जजमेंट भी दे चुके हैं।

लेकिन, सवाल यह उठता है कि बेगूसराय के इस बबुआ को 'बाबू' बनाने में किसका हाथ है। जब बबुआ से बाबू बन गया है, तो उस पर सवाल क्यों उठाया जा रहा है। कन्हैया तो अपना दुनिया में मस्त था। जेएनयू में छात्र नेता होने के वजह से राजनीति जरूर करता था, लेकिन पढ़ाई में ध्यान भी देता था, लेकिन पिछले कुछ दिनों से कन्हैया को कौन हीरो बनाया? क्या कन्हैया खुद हीरो बन गया? या जो लोग उसे विलेन साबित करना चाहते थे, वही इसे हीरो बना दिए।

चलिए, थोड़ा पिछली घटनाओं पर नजर डालते हैं। जेएनयू में हुई एक रैली को लेकर सवाल उठाया जाता है। एक वीडियो रिलीज किया जाता है, जिसमें यह आरोप लगाया जाता है कि कन्हैया इस वीडियो में कुछ ऐसा नारा लगाया है, जो राष्ट्र के खिलाफ है। इस वीडियो को कई न्यूज चैनल दिखाते हैं, इस वीडियो को बार-बार दिखाया जाता है। पूरा देश इस वीडियो को देखकर हैरान हो जाता है। कन्हैया के प्रति लोगों की नफरत बढ़ जाती है।

राजनेता से लेकर मंत्री तक सब इस मामले को गंभीरता से लेते हैं। पुलिस को भी हरकत में आना पड़ता है। फिर कुछ दिनों बाद यानि 13 फरवरी को कन्हैया को देशद्रोह के चार्ज में जेएनयू से गिरफ्तार किया जाता है। टीवी चैनलों पर सिर्फ कन्हैया का मुद्दे को लेकर बहस होता है। अलग-अलग पार्टी के नेता एक दूसरे से लड़ते हुए नजर आते हैं। सब देश के प्रति अपना भक्ति साबित करने में लगे रहते हैं।

संसद तक भी कन्हैया की काहानी पहुंच जाती है। कुछ मंत्री कन्हैया के खिलाफ पुख्ता सबूत होने की बात करते हैं, तो विपक्ष भी इस मामले को उठाते हुए संसद में हंगामा करना शुरू कर देता है। एक ही पार्टी नहीं, लगभग सभी पार्टियां कन्हैया के इस मुद्दे से राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। एंकर भी टीआरपी की प्रति अपना भक्ति साबित करने के लिए चिल्लाता हुआ, चीखता हुआ नजर आता है। अलग-अलग तरह की वीडियो पेश किया जाता है।

कोर्ट से पहले कन्हैया का टीवी के स्टूडियो में ट्रायल होता है। एंकर अपना जजमेंट सुनाते हुए उसे देशद्रोह बता देता है। फिर क्या होता है, जब कोर्ट में पुलिस यह कहती है कि कन्हैया के खिलाफ ऐसा कोई नारा लगाने का सबूत नहीं है, जो उसे देशद्रोह साबित कर सके, तो उसे बैल मिल जाता है। फिर कन्हैया हीरो बन जाता है। जो टीवी चैनलों ने कन्हैया को विलेन के रूप में पेश किए थे, वह चुप हो जाते हैं। जो लोग कन्हैया को देशद्रोह बताते हुए चिल्ला रहे थे, वह अब कह रहे हैं कि इतना पब्लिसिटी क्यों दिया जा रहा हैं?

कन्हैया के मामले को आराम से सुलझाया जा सकता था। अगर कन्हैया ऐसा कोई नारा लगाया है तो, उसे सजा जरूर मिलना चाहिए, लेकिन यह सजा कोर्ट देगी। जब यह केस कोर्ट में है, तो कोर्ट की जजमेंट तक इंतजार करना चाहिए। अगर कन्हैया गलती किया होगा, तो उसे सजा जरूर मिलेगी। ऐसी घटना की मीडिया ट्रायल नहीं होनी चाहिए। सिर्फ टीआरपी के लिए तथ्य को गलत ढंग से पेश नहीं करना चाहिए।

कन्हैया को उन तमाम एंकर, राजनेता और लोगो को धन्यवाद देना चाहिए, जिनकी वजह वह आज जेएनयू का बाबू बन गया है। टीचर्स से लेकर छात्र तक उसके साथ खड़े नजर आ रहे हैं। मैं भी मानता हूं, अब इस घटना को ज्यादा पब्लिसिटी देने की जरूरत नहीं। जब यह मामला कोर्ट में है, तो कोर्ट की जजमेंट तक इंतजार करना चाहिए। देश के अंदर कई ऐसी घटनाएं हो रहे हैं, जिसका कोई जिक्र नहीं करता है। किसान मरता है, तो इसकी बात नहीं होती है, न ही उसके लिए कोई प्रदर्शन करते हुए नजर आते हैं, कहीं सुखा पड़ा है, तो टीवी की स्टूडियों में इसकी बहस नहीं होती है।

अगर, हम देश से प्यार करते हैं, तो देश के लोगों से भी प्यार करना चाहिए। एक घटना को लेकर हम सब देश भक्ति साबित करने में लगे रहते हैं, लेकिन देश की समस्या को लेकर कभी गंभीर नजर नहीं आते हैं। असली देशभक्त वही होता जो देश के साथ-साथ अपने देश के लोगों से भी प्यार करता है, लोगों की समस्या को अपना समस्या मानते हुए उसका समाधान ढूंढने की कोशिश करता है, न ही सिर्फ भक्ति के नाम पर राजनीति करता है।

सुशील कुमार महापात्रा एनडीटीवी इंडिया के चीफ गेस्ट कॉर्डिनेटर हैं...

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