(सभी घायलों के फोटो फोटोग्राफर इरशाद खान के सौजन्य से)
ये नॉन लीथल हथियार है यानी गैर-जानलेवा हथियार
जब हमने इस बारे में सुरक्षाबलों के अधिकारियों से पूछा तो उनका जवाब था कि ये नॉन लीथल हथियार है यानी गैर-जानलेवा हथियार जिससे जान नहीं जाती है। सुरक्षा बल के लोग बताते हैं कि जब आपकी खुद की जान अटकी हो और कोई दूसरा उपाय न हो तो विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों पर और क्या इस्तेमाल किया जाए। आप लोगों पर डंडा चलाएंगे तो क्या ऐसी हिंसक उग्र भीड़ भागेगी?
उपद्रव में शामिल लोगों ने आंसू गैस का जैसे तोड़ निकाल लिया है
इसके अलावा नॉन लीथल वेपन के तौर पर आंसू गैस के गोले हैं। उपद्रवियों में शामिल लोगों ने इसका जैसे तोड़ निकाल लिया है और कई बाद देखा गया है कि वह पहले से तैयार रहते हैं। आंसू गैस का गोला फायर होने पर ये लोग उस पर गीले बोरे डाल देते हैं जिससे उसका असर नहीं के बराबर हो जाता है।
इसके बाद और हथियार हैं जिसे मिर्ची बम कहते हैं। इसे आलियोरेजन भी कहा जाता है। इसे लोगों पर फेंकने पर आंखों और त्वचा में जलन होने लगती है। पर ये भी उतना असरदार नहीं होता क्योंकि इसका असर भीड़ में मौजूद चंद लोगों तक ही सीमित रहता है और सैकड़ों लोगों की भीड़ पर काबू पाना मुश्किल सा हो जाता है।
एक बार फायर होने से सैकड़ों छर्रे निकलते हैं जो रबर और प्लास्टिक के होते हैं
ले देकर पुलिस और सीआरपीएफ के पास पैलेट गन ही बचती है। इसके एक बार फायर होने से सैकड़ों छर्रे निकलते हैं जो रबर और प्लास्टिक के होते हैं। ये जहां-जहां लगते हैं उससे शरीर के हिस्से में चोट लग जाती है। अगर आंख में लग जाए तो वह काफी घातक होता है। इसकी रेंज 50 से 60 मीटर होती है। छर्रे जब शरीर के अंदर जाते हैं तो काफी दर्द तो होता है। पूरी तरह ठीक होने में कई दिन लग जाते हैं।
(सभी बंदूकों की फोटो राजीव रंजन के सौजन्य से)
बताया जा रहा है कि जिन सैकड़ों लोगों को आंख में इसके छर्रे लगे हैं, उनकी आंखों से अब दिखाई नहीं पड़ रहा है। दिल्ली से गए आंखो के सर्जन डॉक्टर और स्थानीय डॉक्टरों ने कइयों के रेटिना के ऑपरेशन किए हैं और अब सबको इंतजार है उनकी आंखों की रोशनी आने का।
सुरक्षा बल का कहना है वे इसे कमर के नीचे फायर करते हैं
सुरक्षा बल की कोशिश होती है कि इसे सामने से फायर न करें लेकिन, ज्यादातर इनकी भिड़ंत आमने-सामने होती है। सुरक्षा बल का ये भी कहना है वो इसे कमर के नीचे फायर करते हैं लेकिन ये कई बार कमर के ऊपर भी लग जाता है। वजह है जैसे बंदूक से निशाने साधे जाते हैं और गोली वही लगती है जहां फायर की जाती है। पैलेट गन में ऐसा कुछ भी नहीं है।
सुरक्षा बल के अधिकारियों का कहना है कि इसके खराब रिजल्ट्स मालूम है, पर इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। पैलेट बंदूकें ही हैं जिन्हें विरोध के दौरान आसानी से इस्तेमाल किया जा सका है।
इसका इस्तेमाल सुरक्षाबल अंतिम हथियार के तौर पर ही करते हैं
सुरक्षाबल की मानें तो इसका इस्तेमाल वे अंतिम हथियार के तौर पर ही करते हैं। भीड़ इनके ऊपर ग्रेनेड फेंक रही है। पत्थर फेंक रही है। अब तक केवल सीआरपीएफ के 300 से ज्यादा जवान पत्थर से घायल हो गए हैं। कई पुलिस वालों के सिर फट गए हैं। एक बार तो भीड़ ने जीप सहित पुलिसकर्मी को नदी में फेंक दिया, इससे पुलिस वाले डूबकर मर भी गए। ऐसे में अब ये न करें तो क्या करें?
आप लोगों पर हर वक्त बंदूक से फायर नहीं कर सकते। ऐसे में लोगों को डराने के लिए बस यही हथियार बचता है। कुछ लोग ये तर्क दे रहे हैं कि बंदूक की गोली से तो आदमी को एक बार दर्द होता है, लेकिन इससे तो जिंदगी भर का दर्द रह जाता है। अब सवाल उठता है कि सुरक्षाबल उग्र भीड़ से निपटने के लिए क्या करें?
ऐसा भी नहीं कि इस हथियार का इस्तेमाल पहली बार हो रहा है। इसका इस्तेमाल तो 2010 से हो रहा है। भीड़ से निपटने के लिए पैलेट गन का इस्तेमाल दुनिया के कई देशों में हो रहा है। हो सकता है अब पहली बार इतनी आवाजें उठ रही हैं तो इसके दूसरे विकल्प के बारे में भी सोचा जाए। जिससे बेकाबू लोगों पर काबू भी पाया जा सके और सुरक्षा बलों को भी कोई नुकसान न हो।