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This Article is From Sep 10, 2020

कंगना रनौत को लेकर ठाकरे-पवार की मुलाकात में क्या-क्या हुआ...?

Swati Chaturvedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 11, 2020 00:17 am IST
    • Published On सितंबर 10, 2020 18:19 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 11, 2020 00:17 am IST

अभिनेत्री कंगना रनौत काफी तेज़ गति से आगे बढ़ी हैं और (Y+ सिक्योरिटी के साथ) मुंबई में शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच छिड़ी राजनैतिक जंग के बीचोंबीच उतर आई हैं.

बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से ही कंगना ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे पर लगातार हमले बोलते रहने वाली की छवि बना ली थी. CM पर लगाए गए कई आरोपों में ऐसा महसूस हुआ, जैसे वह BJP की प्रॉक्सी के तौर पर काम कर रही हैं, जो शिवसेना द्वारा सहयोगी दल के तौर पर किनारा कर लिए जाने से अब तक नाराज़ है.

जब कल मुंबई स्थित कंगना के दफ्तर के कुछ हिस्सों को ढहा दिया गया, यह सरासर सेना द्वारा बदले की कार्रवाई थी. समझदारी नहीं थी यह. उद्धव ठाकरे और शिवसेना की छवि उन दबंगों जैसी बनी, जो अपने विरोधियों को पूरी ताकत से परेशान करने के लिए कानून की भी परवाह नहीं करते. बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी कल कतई एकमत से स्पष्ट किया कि ढहाए जाने की कार्रवाई अन्यायपूर्ण और द्वेषभरी थी. कम से कम इस मोर्चे पर तो कंगना की छवि शहीद सरीखी बन गई.

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उद्धव ठाकरे के लिए ज़्यादा चिंताजनक यह है - सभी के सामने साफ है कि वह एक असंभ्रांत से जाल में फंस गए, जो BJP ने उनके लिए बिछाया था. कंगना और मुंबई की तुलना पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर से करने वाले उनके ट्वीट चारा थे. सुशांत राजपूत की मौत के मामले की जांच में आदित्य ठाकरे को उलझाने की BJP की कोशिशों को नाकाम करने वाले उद्धव ठाकरे ने इस बार अपने लोगों पर काबू पाने से इंकार कर दिया, और संजय राउत जैसे नेताओं ने कहा कि कंगना को मुंबई से दूर ही रहना चाहिए. इसके बाद, उद्धव ठाकरे को शिवसेना के पुराने तौर-तरीकों से दूर रहने और पूरी दृढ़ता के साथ गवर्नेन्स और महाराष्ट्र में लगातार बढ़ते जा रहे कोरोनावायरस के आंकड़ों पर फोकस बनाए रखने के लिए जो श्रेय मिलता रहा है, उसमें कुछ कमी आई.

उधर, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने उद्धव ठाकरे, और उनके सहयोगियों - कांग्रेस और शरद पवार - के बीच खाई पैदा कर महाराष्ट्र सरकार को अपदस्थ करने की अपनी कोशिशों में कोई कसर, कोई ढील नहीं छोड़ी है.

महाराष्ट्र में सत्तासीन गठबंधन के आर्किटेक्ट शरद पवार ने कंगना को बेवजह और ज़रूरत से ज़्यादा तवज्जो देने के लिए ठाकरे को सार्वजनिक रूप से लताड़ा और कहा कि कंगना पर ध्यान ही नहीं दिया जाना चाहिए. सार्वजनिक रूप से लताड़ने के बाद शरद पवार ने उद्धव ठाकरे और संजय राउत के साथ मुलाकात भी की.

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सूत्रों का कहना है कि कल शाम हुई मुलाकात में शरद पवार ने उद्धव ठाकरे को सलाह देते हुए कहा कि कंगना रनौत सिर्फ एक बॉलीवुड सेलिब्रिटी (बहुत-से अभिनेताओं को अतीत में शिवसेना के आतंक का सामना करना पड़ा है, क्योंकि सेना के मुताबिक उन्होंने जिन फिल्मों में काम किया, वे अ-हिन्दू फिल्में थीं...) नहीं हैं, बल्कि अमित शाह की तरफ से काम कर रही हैं. शरद पवार ने कहा कि उद्धव ठाकरे को उसी वक्त पीछे हट जाना चाहिए था, जब कंगना रनौत को अमित शाह ने वाई+ सिक्योरिटी (कंगना को अब वही सिक्योरिटी कवर हासिल है, जो देश के प्रधान न्यायाधीश के पास है) दिलवा दी थी. शरद पवार ने यह भी कहा कि कंगना द्वारा मुंबई के खिलाफ इस्तेमाल की गई भाषा से ही जनता की राय सरकार के पक्ष में हो जाती, तो दफ्तर ढहाए जाने की कार्रवाई गैरज़रूरी थी.

मुलाकात के दौरान मौजूद रहे एक सूत्र के मुताबिक, ठाकरे एक इंच भी पीछे नहीं हटे, और कहा कि उन्हें 'महाराष्ट्र' का बचाव करना ही था, और उनका वोट बैंक कहे जाने वाले 'मराठी मानुष' को सेना से इस पर कार्रवाई किए जाने की उम्मीद थी. बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा ढहाए जाने की कार्रवाई पर रोक लगा दिए जाने और उनके सहयोगियों की बेचैनी के बावजूद ठाकरे अडिग हैं - वह कंगना पर ढीले नहीं पड़ेंगे. कंगना से निपटने के लिए सेना की योजना में विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव, देशद्रोह का मुकदमा तथा खार स्थित कंगना के घर को ढहाए जाने का एक और नोटिस शामिल हैं.

कंगना का ट्विटर पर हमला (कुछ भी बिना सोचे-समझे नहीं किया गया) और ढहाने गए स्क्वाड की तुलना 'बाबर की फौज' से किया जाना उस सीटी जैसा था, जो BJP के IT सेल को रास आती है, बिना किसी साफ-साफ दिखने वाली कोशिश के मुस्लिमों पर वार करना. कंगना ने फिल्म निर्देशक करण जौहर को भी ढहाए जाने की कार्रवाई से जोड़ने की कोशिश की, जिन पर वह बॉलीवुड में नेपोटिज़्म को बढ़ावा देने और पालने-पोसने के आरोप लगाती रही हैं. ढहाए जाने की कार्रवाई और उनके बीच रिश्ता जोड़ने में वक्त खराब न कीजिए. कुछ हासिल नहीं होगा.

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कंगना की मुंबई के खिलाफ कही गई बातें BJP के लिए सोने की खान साबित हो सकते थे, लेकिन अब पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की स्थिति कुछ अजीब हो गई है. सुशांत सिंह राजपूत की मौत के लिए ठाकरे परिवार पर हमलावर होने वालों में देवेंद्र फडणवीस शुरू से ही सक्रिय रहे, जिसका फायदा वह बिहार विधानसभा चुनाव में उठा सकते थे, और बता सकते थे कि बिहार की मिट्टी का एक बच्चे की मौत को महाराष्ट्र की सरकार उतनी गंभीरता से नहीं ले रही है, जितनी होनी चाहिए. अब, महाराष्ट्र BJP मुंबई के खिलाफ अपमानजनक हमलों की तरफदारी करती नज़र नही आ सकती, क्योंकि उसका तत्काल लाभ शिवसेना उठा लेगी. फिर भी, फडणवीस को मोटे तौर पर कंगना को समर्थन देना पड़ा और ढके-छिपे ढंग से कहना पड़ा कि हमले हल्के रखे जाएं. संदेश था - ठाकरे परिवार को जितना कोसना है, कोसें, लेकिन मुंबई पर टिप्पणी न करें.

सो, क्या शिवसेना पुराने ढर्रे पर लौट आई है...? सेना के नेताओं का कहना है, नहीं, अगर आप पार्टी संस्थापक बाल ठाकरे के पैमाने से मापते हैं, तो हम अब भी वहीं कहीं हैं. लेकिन उद्धव ठाकरे अब पिता के तौर पर काम कर रहे हैं, जिनके बच्चे पर रिया चक्रवर्ती से कथित लिंक के चलते गैरज़रूरी हमला किया जा रहा है.

शरद पवार ने उद्धव ठाकरे से मराठा आरक्षण मुद्दे पर फोकस करने के लिए कहा है, जिसे कल ही सुप्रीम कोर्ट से झटका मिला है. बताया गया है कि पवार ने कहा, "आप और मैं (प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदी और (गृहमंत्री अमित) शाह की BJP को जानते हैं... यह राजनीति है, आप हर किसी बात से विचलित नहीं हो सकते..."

क्या शिवसेना अब शरद पवार की बात मानेगी...? कुछ हद तक. कंगना पर हमला करना शिवसेना की परम्परागत छवि है. एक वरिष्ठ शिवसेना नेता ने मुझसे कहा कि कंगना रनौत को भी ठाकरे सरकार को गिराने के लिए चलाए जा रहे और कभी खत्म नहीं होने वाले 'ऑपरेशन लोटस' की ही अगली कड़ी समझ लीजिए...

सो, महाराष्ट्र भले ही महामारी से जूझ रहा है, हमारे नेता अपनी वास्तविक प्राथमिकता पर ही फोकस करते नज़र आएंगे. एक दूसरे को ढहाते हुए...

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं…

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