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This Article is From Apr 30, 2015

बाबा की कलम से : ममता है मजबूत

Manoranjan Bharati
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  • Updated:
    अप्रैल 30, 2015 18:55 pm IST
    • Published On अप्रैल 30, 2015 18:48 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 30, 2015 18:55 pm IST
बंगाल में हुए स्थानीय निकाय के चुनाव ने एक बार फिर ममता बनर्जी के नेतृत्व पर मुहर लगा दी है। कोलकोता की 144 सीटों में से 114 तृणमूल कांग्रेस के खाते में गई। इतनी तो कभी भी वामपंथी मोर्चे को भी नहीं मिली थी।

मगर सबसे बड़ी खबर ये है कि बीजेपी सदमे में है जिसे केवल सात सीटें मिली हैं जबकि बीजेपी ने इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। प्रचार में भी काफी फिल्मी चेहरों को उतारा था। प्रचार की जिम्मेवारी केन्द्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो और एसएस अहलूवालिया के जिम्मे थी और बीजेपी अध्यक्ष इसकी निगरानी कर रहे थे।

अमित शाह ने सीधे इस चुनाव में प्रचार तो नहीं किया मगर इससे पहले उनकी रैलियां कोलकोता में भी हुई और स्थानीय चुनाव के दौरान वे बंगाल के आस पास ही थे। अमित शाह पिछले दिनों उत्तर पूर्व में काफी सक्रिय रहे और वहीं से चुनाव पर नजर रखे हुए थे।

टारगेट बंगाल के तहत बीजेपी को लगता था कि वो बंगाल के स्थानीय चुनाव में अपनी उपस्थिति का अहसास करा पाएंगे मगर उनकी रणनीति मात खा गई। एक तो शारदा मामले को तूल दिया गया और ममता बनर्जी सरकार के मंत्रियों की गिरफ्तारी और ममता के नजदीकी लोगों की धर पकड़ कर दबाब बनाने की कोशिश की।

बीजेपी ने ममता बनर्जी पर भी निशाना साधा और ममता को भी भ्रष्ट साबित करने की कोशिश की। बंगाल की जनता को यह नागवार गुजरा क्योंकि उसने हवाई चप्पल और सूती साड़ी पहनने वाले मुख्यमंत्री पर लगाए गए इन आरोपों को नकार दिया।

शायद बीजेपी भूल गई कि ममता बनर्जी ने लेफ्ट से लड़ते लड़ते अपनी एक जूझारू छवि बनाई है। लेफ्ट को यदि ममता ने हराया है तो उन्हीं की तरह सादगी से रहते हुए। लेफ्ट के नेताओं के कोई तामझाम नहीं होते थे और ममता ने तो इस मामले में अरविंद केजरीवाल को भी मात दी है। उन्हें छोटी गाड़ी यहां तक की मोटरसाईकिल तक पर चढ़ने पर भी परहेज नहीं है और न ही ममता बनर्जी के पास कोई आलीशान कोठी है।

ममता जब भी दिल्ली आती हैं छोटी गाड़ी में ही घूमती हैं। जनता ने जमीन से जुड़ी बिना तामझाम की ममता की राजनीति के सामने बीजेपी की कॉरपोरेट राजनीति को अपनाना सही नहीं समझा। दिल्ली के बाद बीजेपी ने बंगाल के स्थानीय निकायों के चुनाव को काफी गंभीरता से लिया था।

अब उसका सारा ध्यान बिहार चुनाव पर होगा जहां उसका मुकाबला लालू-नीतिश की जोड़ी से होने वाला है। नुकसान लेफ्ट फ्रंट के लिए भी है। कोलकाता में उसे केवल 15 सीटें मिली हैं और पूरे बंगाल में 1944 सीटों में से 284 मिली जबकि तृणमूल को 1307 वार्ड। अब परीक्षा सीताराम येचुरी के लिए भी है कि उनकी जगह कहां है। धीरे-धीरे ही सही बीजेपी अपने पांव फैलाने में जुटी है।

पिछले दिनों जो रिपोर्ट आई है उसके अनुसार सीपीएम के सक्रिय सदस्यों में चालीस हजार छोड़ चुके हैं और उनके कार्ड होल्डरों में से एक चौथाई घर बैठ गए हैं। येचुरी इसको कैसे बदलते हैं यह उनके लिए चुनौती होगी मगर उन्होंने भी राहत की सांस ली होगी कि बीजेपी ने उतना अच्छा नहीं किया जितना बीजेपी को उम्मीद थी। मगर चिंता ये भी होनी चाहिए कि जितना लेफ्ट सोच रही थी कि ममता कमजोर होगी उतना हुआ नहीं, उल्टे ममता मजबूत हुई हैं।

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