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This Article is From Oct 02, 2016

सॉफ्ट स्टेट से हार्ड स्टेट बनने का व्हाट्सऐप वीडियो आया क्या?

Kranti Sambhav
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 03, 2016 14:25 pm IST
    • Published On अक्टूबर 02, 2016 23:58 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 03, 2016 14:25 pm IST
हरेक आहट पर लगता है कि तुम हो. हर नोटिफिकेशन के साथ भी ऐसा ही लग रहा है मुझे. व्हाट्सऐप मेरा फ्रेंड-फिलॉसफर-गाइड है. व्हाट्सऐप के ग्रुप मेरे जीवन के आईटम नंबर हैं, कैटरीना-करीना हैं और जैकलीन भी हैं, मेरे ऐगनी-आन्ट हैं ( हिंदी अनुवाद: व्यथा-चाची ), चाणक्य,वेदव्यास और देवदास हैं, डाकिया डाक लाया गाने वाला राजेश खन्ना भी. मेरा जीवन का भंवरा व्हाट्सऐप ग्रुप के रस चूसकर ही भिनभिना रहा है और हर चैट से एफएसएसआई प्रमाणित हनी निकाल रहा है. नोटिफिकेशन इसी पूरी प्रक्रिया की पाकीजा है. जिसकी आहट से पहले ही मैं फोन खोलकर चैट पढ़ कर अपनी ज्ञान-पिपासा बुझाता हूं, ज़मी पर पांव रखने भी नहीं देता. पर दो-तीन दिन से सूखा पड़ा है यह जगत कुआं. जीवन में बहुत बड़ी त्रासदी आ चुकी है और मेरा फोन सन्नाटे में घिरा बैठा है. और इन सबके बाद आज पता चला है कि दिलीप कुमार साहब ने जब यह लाइन कही थी - “इंतजार-ए-यार की वो उम्मीद अफ़्ज़ा घड़ियां…” तो उनकी आवाज़ में तासीर कहां से आई थी, दर्द कहां से छलक आया था. मैं उसी बेचैनी को निकटता से महसूस कर रहा हूं. मैसेज तो अब भी हिनहिना रहे हैं लेकिन जीवन कदमताल कर रहा है. मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर मेरी ग्रोथ का जो ग्राफ व्हाट्सऐप के आने से जीडीपी की तरह बढ़ा था अचानक इंप्लॉयमेंट रेट की तरह धुकुर-धुकर करने लगा है. और यह सब हो रहा है एक वीडियो के इंतजार में.

मुझे नहीं पता है कि वो वीडियो ऐतिहासिक होगा या नहीं पर मैं चांस नहीं लेना चाहता हूं. मैं भी जीवन में इतिहास को बनते हुए देखना चाहता हूं. मैं भी चाहता हूं कि मेरी जीवनी में लिखने के लिए कुछ तो चैप्टर आए. अभी तो साढ़े सात सौ वर्ड से आगे नहीं जा रही है. मेरे एज ग्रुप के कई लोगों ने इतिहास को बनते देख लिया है, पता नहीं उन्होंने कैसे मैनेज किया पर मैं सिर्फ कुछेक लोगों को इतिहास बनते देखना ही मैनेज कर पाया हूं. पर उससे ज्यादा कुछ नहीं. पैदा भी ऐसे वक्त में हुआ जहां कोई एक्साइटिंग कॉन्फ़्लिक्ट भी नहीं था. एक दो हुए भी तो वहां पर कोई-कोई जाकर लड़ आए. अपना जाना भी न हो सका है. वीडियो की बात तो छोड़ ही दीजिए. लेकिन अब मैं यह मौका नहीं छोड़ना चाहता हूं. अब मैं तैयार हूं. सर्जिकल फुटेज- आई एम रेडी.

अब इसमें ऐतिहासिकता दरअसल पर्सनल है. आजन्म मैंने सॉफ्ट स्टेट- सॉफ्ट स्टेट सुना है. भारत को होना चाहिए-नहीं होना चाहिए पर एक से एक ज्ञानी शास्त्रार्थ में लगे देखे हैं. अब मेरी यह दुविधा थी कि भारत सॉफ्ट स्टेट है किस ऐंगिल से? कुछेक चुनिंदा पिनकोड को छोड़कर तो यह स्टेट किसी पर तो सॉफ्ट रहा नहीं? अब इससे ज्यादा हार्ड स्टेट और कैसा हो सकता है? लेकिन बहस करना जैसे ज्ञानियों का धर्म है वैसे ही नए सवालों का गला घोंटना परमधर्म. तो मैं मन मारकर इतने साल से बैठा हुआ था. अब लग रहा है कि दुविधा खत्म होगी. विद्वानों के हिसाब से अब सॉफ्ट से हार्ड स्टेट में इंडिया का मेटामोर्फ़ोसिस हो चुका है. अब बस एक आखिरी वीडियो आने की देर है. गृहमंत्री ने ट्रांज़िशन की पुष्टि कर दी है. फोटो-वीडियो को आश्वासन भी दिया है. तो मैं इंतजार कर रहा हूं.

सुना है कि ड्रोन से भी शूट हुआ है. रात का शूट है तो नाइट विज़न कैमरा भी इस्तेमाल हुआ हो सकता है? पता नहीं एचडी में होगा कि नहीं , आजकल युद्ध के शॉट हाई डेफिनिशन पर न देखें तो मजेदार नहीं लगता है. एचडी फुटेज के इंतजार में मैं डाटा भी कम ही इस्तेमाल कर रहा हूं. वाईफाई खोज खोज के काम चला रहा हूं. बस आ जाए जल्दी. कब तक हॉलीवुड का प्रोडक्शन देख देखकर काम चलाएं. जीरो डार्क थर्टी को टक्कर देने के लिए होम प्रोडक्शन वाली ‘आधी रात के बाद’ जैसा कोई टाइटल चाहिए.  

अब इस बेचैनी को सर्जिकल स्ट्राइक पर शक से मत जोड़िएगा. मुझे शक नहीं. लेकिन इसी से सब कुछ ठीक हो जाएगा इस पर यकीन भी नहीं. मैं सरकार को कोंच भी नहीं रहा, कि किया है अटैक तो दिखाइए फोटो, तब मानेंगे. क्योंकि छप्पन इंची-छप्पन इंची का ताना देकर तो लोगों ने कर ही दिया है कमाल. उन्मादी सिर्फ एक काडर से नहीं आते हैं. विचार की धार के दोनों किनारों पर उन्माद की खेती लहलहाती है. बाकी इतने उकसावे के बाद अगर वीडियो भी आ जाएगा तो फिर क्या कहेंगे? लेकिन हम सबके लिए मक़बूल फिल्म के पंकज कपूर तो हो नहीं सकते कि मुंह में जबर्दस्ती पान ठूंसकर बोलें कि ‘मियां गिलौरी खाया करो, ज़ुबान काबू में रहती है”. पाकिस्तानी आर्मी भी सुना है एलओसी में जंकेट लेकर गई थी पत्रकारों का. यह दिखाने के लिए कि देखिए यहां तो कोई हमला ही नहीं हुआ है. लेकिन फिलहाल जिसे वे जुमला कह रहे हैं वह हमला में बदल गया तो क्या होगा?

पर इन सबसे अहम बात तो यह है कि इन सब सवाल और बवाल से मैं निरपेक्ष हूं. मैं तो सिर्फ एक दर्शनार्थी हूं. मेरी उत्कंठा है इतिहास बदलने वाले मोमेंट को पकड़ने की. तो इंतजार है वीडियो का. लेकिन गृहमंत्री मेरे व्हाट्सऐप ग्रुप में तो हैं नहीं पर किसी न किसी के व्हाट्सऐप ग्रुप में तो होंगे?

क्रांति संभव NDTV इंडिया में एसोसिएट एडिटर और एंकर हैं...

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