कब जागेगा इंडिया, एक नई सुबह में...

बातचीत या शान्ति-वार्ता से पाकिस्तान के कान पर जूं भी नहीं रेंगती - इसका कितनी बार और सबूत चाहते हैं हम... कब जागेगा इंडिया, एक नई सुबह में, जिसमें आतंकवाद से इस तरह नहीं डरना पड़ेगा...

जब से मुंबई में आतंकवादियों का हमला हुआ है, और आतंकवादियों के तार इस बार भी लगभग हमेशा की तरह पाकिस्तान से ही जुड़े दिखाई दे रहे हैं, हमेशा ही की तरह जनता की तरफ़ से एक ही आवाज़ आती सुनाई दे रही है... अब पाकिस्तान पर हमला हो जाना चाहिए...

भगवान जाने, सरकार को कैसा लग रहा है... लेकिन इस बार जनता की इस इच्छा में पहले के मुकाबले कहीं ज़्यादा मजबूती नज़र आ रही है... पहले कुछ लोग ही हमला कर देने की बात करते थे, और कुछ का कहना होता था - 'ऐसा मुमकिन नहीं है, क्योंकि किसी मुल्क पर हमला करना आसान नहीं होता...' या 'आप क्या समझते हैं, अमेरिका की तरह आप भी किसी मुल्क पर हमला कर सकते हैं...' या 'अगर हिन्दुस्तान ने पाकिस्तान पर हमला किया तो दुनिया के बहुत-से मुल्क हमारे ख़िलाफ़ हो जाएंगे...' या 'पाकिस्तान पर हमला कर देने की सूरत में वह भी चुपचाप नहीं बैठेगा, क्योंकि उसके पास भी हर तरह की लड़ाई के लिए पर्याप्त हथियार मौजूद हैं, और हिन्दुस्तान का भी इस लड़ाई से काफ़ी नुकसान होगा...'

इस तरह की बहुत-सी बातों के बीच जनता के एक तबके की आवाज़ दबकर रह जाती रही है, और पाकिस्तान से हिसाब कभी चुकता नहीं हो पाया... या यूं कहिए, पाकिस्तान को कभी इस बात के लिए सबक नहीं सिखाया जा सका, कि सहिष्णु कहे जाने वाले हिन्दुस्तान पर हमला कर देने का अंजाम क्या हो सकता है, और 'पहले हमला नहीं' के सिद्धांत का पालन करने वाले हिन्दुस्तान के शांत रहने को उसकी कमज़ोरी न समझे पाकिस्तान...

लेकिन इस बार माहौल कुछ अलग महसूस हो रहा है... इस बार आम जनता ही नहीं, बड़े पदों पर विराजमान, और पढ़े-लिखे तबके के लोग भी कुछ ऐसी ही बातें कर रहे हैं... हमें याद है कि प्रधानमन्त्री की गद्दी पर बैठे व्यक्ति का हमेशा ऐसा बयान आता रहा है, जिसमें हमले से बचने की बातें कही जाती रही हैं... अन्य राजनेताओं के बयानों में भी कहीं न कहीं नाम लेने से बचने का एहसास होता रहा है...

लेकिन इस बार प्रधानमन्त्री ने कहा, 'विश्व समुदाय को सुनिश्चित करना चाहिए कि पाकिस्तान में आतंकवाद का आधारभूत ढांचा पूरी तरह हमेशा के लिए ध्वस्त कर दिया जाए। भारत आतंकवाद के बारे में पाकिस्तान के वायदों पर यकीन नहीं करेगा तथा हम विश्व समुदाय के साथ मिलकर सुनिश्चित करेंगे कि कथनी को करनी में बदला जाए।' इस बयान में पहले के बयानों की तरह टालमटोल वाली भाषा की गैर-मौजूदगी बहुत उत्साह देने वाली है... इसके अलावा विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी कहा कि 'आतंकवाद के खिलाफ सरकार कोई भी ठोस कदम उठाती है तो विपक्ष हर हाल में सरकार का साथ देगा...' इन दो बड़े नेताओं के अलावा भी एक और बेहद पढ़े-लिखे और अनुभवी नेता, जो पत्रकार भी रहे हैं, अरुण शौरी ने भी भाषा में बदलाव लाते हुए कहा, 'एक आंख के बदले दोनों आंखें और एक दांत के बदले पूरा जबाड़ा ले लेने का वक्त आ गया है...' जनता के एक बहुत बड़े हिस्से के मुताबिक 'किसी न किसी दिन देश का प्रधानमन्त्री बनने' के लिए राजनीति में उतरे राहुल गांधी ने भी कहा, 'आतंकवादियों को हर भारतीय के प्राणों की कीमत का एहसास दिलाना होगा...'

खैर, राजनेताओं के बयान हमेशा ही जोशीले होते हैं, लेकिन याद रखिए, हर तरफ़ से एक ही तरह के, यानि बदला लेने की भाषा में बात करने वाले, बयान पहले दुर्लभ रहे हैं... इसके अलावा जनता के हर तबके में ऐसे लोगों की तादाद भी इस बार कम ही महसूस हो रही है, जो हमले से बचने की सलाह दिया करते थे...

हमले के बाद भी ज़िंदगी की रफ़्तार जारी है... दफ्तर, घर, मोहल्ले, बाजारों, पान की दुकानों और सडकों पर पहले ही की तरह हर व्यक्ति बातचीत करता है... लेकिन इस बार नया यह है कि हर जगह 'हमला' शब्द पहले से कहीं ज़्यादा सुनाई दे रहा है... जब कहीं सर्वेक्षण किए जाते हैं, तब भी तो कुछ लोगों से बात करके उसी में से प्रतिशत का हिसाब लगाकर नतीजे को जनता की राय बताया जाता है... सो, अगर उन्हीं मानकों से देखें तो इस बार अधिकतर हिन्दुस्तानी चाहते हैं, कि पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए उस पर हमला ज़रूरी है...

बहरहाल, जनता के गुस्से को दरकिनार कर हमले की बात न भी करें, तो पाकिस्तान को इस बात के लिए मजबूर किया जाना अब अनिवार्य हो गया है कि वह अपनी धरती का इस्तेमाल कर रहे भारत के अपराधियों को पकड़ने के लिए हिन्दुस्तान का साथ दे... हिन्दुस्तान के फौजियों को पाकिस्तान की धरती पर जाकर कार्रवाई करने की इजाज़त मिले, और वे उनको पकड़ने या नेस्तोनाबूद करने के लिए तैयार होकर जाएं... और हां, ऐसा भी महसूस हो रहा है कि इस मांग के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी आज के माहौल में जुटाना पहले की तरह मुश्किल नहीं होगा... लेकिन अगर पाकिस्तान इसके लिए राजी नहीं होता है, तो भी हिन्दुस्तान को इस बार खामोश नहीं बैठे रहना होगा...

याद रहे - अगर एक हमले के बाद अमेरिका अपने सबूतों के आधार पर अफगानिस्तान पर हमला कर देने और उसको कब्जा लेने का हक रखता है तो हिन्दुस्तान की धरती पर भी वैसे ही जियाले जन्म लेते हैं, और देश को सुरक्षित रखने का जज़्बा भी उनमें अमेरिका के नागरिकों से कम नहीं है...

हम मानते हैं कि परेशानियां होंगी, या यूं कहिए परेशानियां बढ़ेंगी पाकिस्तान पर हमला कर देने से, खतरा भी बेहद बढ़ जाएगा... लेकिन बातचीत या शान्ति-वार्ता से पाकिस्तान के कान पर जूं भी नहीं रेंगती है - इसका कितनी बार और सबूत चाहते हैं हम... कब तक बातचीत का राग अलापते रहेंगे हम... कब जागेगा इंडिया, एक नई सुबह में, जिसमें आतंकवाद से इस तरह नहीं डरना पड़ेगा...

विवेक रस्तोगी Khabar.NDTV.com के संपादक हैं...

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