श्रीमती इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद भड़की हिंसा में सिखों के नरसंहार के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भी जवाबदेह मानते हुए, उनसे देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' वापस लेने की मांग हो रही है. 'भारत रत्न' पर नेताओं द्वारा टुच्ची राजनीति करने से संविधान के साथ सम्मानों की गरिमा भी तार-तार हो जाती है. इन विवादों के साये में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच द्वारा वर्ष 1996 में दिए गए फैसले के अनेक पहलू फिर प्रासंगिक हो गए हैं.
राजीव गांधी के साथ उठेंगे अनेक सवाल : सिख नरसंहार के लिए राजीव गांधी की जवाबदेही माने जाने का नियम यदि लागू किया जाए, तो हर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को अपने कार्यकाल में हुए भयावह अपराधों की जवाबदेही लेनी होगी. एमरजेंसी के अत्याचारों के लिए इंदिरा गांधी, तो चीन युद्ध में पराजय के लिए नेहरू से 'भारत रत्न' की वापसी की मांग उठ सकती है. गुजरात दंगों में राजधर्म को याद दिलाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी की विफलता के लिए, उनसे भी 'भारत रत्न' की वापसी की मांग करने वाले छुटभैये राजनेता मिल ही जाएंगे. हिन्दी विरोधी आंदोलन के नाम पर विखंडन की राजनीति करने वाले एमजी रामचंद्रन और धर्म परिवर्तन से जुड़े मामलों में शामिल होने के लिए मदर टेरेसा के 'भारत रत्न' पर भी सवाल खड़े किए जा सकते हैं. राज्यसभा से लगातार गैरहाज़िरी के लिए सचिन तेंदुलकर, तो नक्सलियों से सहानुभूति के लिए अमर्त्य सेन के 'भारत रत्न' पर अंगुली उठाने के लिए सोशल मीडिया में तमाम सुर मिल जाएंगे.
जनता पार्टी ने पद्म सम्मानों को खत्म किया, तो अब BJP पहल करे : पद्म सम्मानों की शुरुआत नेहरू सरकार ने 1955 में की थी, जिस पर सदैव विवाद होते रहे हैं. आचार्य जेबी कृपलानी ने पद्म सम्मानों को खत्म करने के लिए 1969 में लोकसभा में बिल पेश किया, जिसे इंदिरा सरकार ने नहीं स्वीकारा. कृपलानी के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 18 से अंग्रेज़ी शासनकाल के दौर के सम्मान ख़त्म हो गए थे, जिन्हें नेहरू ने पद्म सम्मान के तौर पर पिछली खिड़की से लागू कर दिया. केंद्र में विपक्ष की पहली सरकार जनता पार्टी ने 8 अगस्त, 1977 को नोटिफिकेशन जारी कर पद्म सम्मानों को खत्म करने का निर्णय लिया था, परंतु इंदिरा गांधी ने सरकार बनाने पर पद्म पुरस्कारों को 25 जनवरी, 1980 पुनर्जीवित कर दिया. नरेंद्र मोदी सरकार ने पद्म पुरस्कारों के चयन में पारदर्शिता लाने की कोशिश की, इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का सही अर्थों में पालन नहीं हो रहा है.
'भारत रत्न' के लिए राष्ट्रीय और राज्य समितियों का गठन नहीं : सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार पद्म सम्मान और 'भारत रत्न' को संकीर्ण राजनीतिक दायरे में नहीं बांधना चाहिए. संविधान पीठ में चीफ जस्टिस अहमदी समेत जस्टिस कुलदीप सिंह, जस्टिस बीपी जीवन रेड्डी, जस्टिस एनपी सिंह और जस्टिस सगीर अहमद शामिल थे. पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस कुलदीप सिंह के अनुसार उपयुक्त और योग्य व्यक्तियों को ही यह सम्मान मिले, इसके लिए केंद्र और राज्यों में चयन समिति का गठन होना चाहिए. समिति में लोकसभा स्पीकर, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और लोकसभा में विपक्ष के नेता तथा राज्यों में विधानसभा के सभापति, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और विधानसभा में विपक्ष के नेता को शामिल करने का सुझाव दिया था. सुप्रीम कोर्ट के जज के आदेश के बावजूद पिछले 22 वर्ष में इन समितियों का गठन नहीं किया गया.
दागी और दिवालिया लोगों को पद्म सम्मान : सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के पैरा 33 के अनुसार पद्म सम्मान दिए जाने वाले लोगों का चरित्र संदेह के दायरे में नहीं होना चाहिए. देश में बैंकों के पैसों की लूट मची हुई है. विजय माल्या जैसे लोगों ने जनता के पैसे से राज्यसभा की संसद सदस्यता भी हासिल कर ली थी. पद्मश्री से सम्मानित अनेक उद्योगपति बैंकों के कर्ज़ और NPA से जूझ रहे हैं. इन तमाम लोगों में ऑर्चिड कैमिकल के सीएमडी राघवेंद्र राव (2011) मॉजेर बायर के सीएमडी दीपक पुरी (2010), काइनेटिक ग्रुप के चेयरमैन अरुण फिरोडिया (2012) शामिल हैं. बिलियर्ड्स खिलाड़ी माइकल फरेरा और संतसिंह चटवाल जैसे लोगों के आपराधिक मामलों में शामिल होने के खुलासे के बाद पद्म सम्मानों की गरिमा और भी गिर गई.
विधानसभा में सस्ती राजनीति, अब कैसे हो गलती का सुधार : 1984 के सिख-विरोधी दंगों के मामलों को सियासी मोड़ देने के लिए, दिल्ली में आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार, विधानसभा को सस्ती राजनीति का अखाड़ा बना रही है. 'भारत रत्न' केंद्र सरकार द्वारा दिया जाता है, तो फिर इस बारे में दिल्ली विधानसभा में प्रस्ताव या संशोधन लाने का क्या औचित्य था...? सदन में इस बारे में प्रस्ताव यदि पढ़ा गया, तो पारित होने के बाद वह कार्यवाही या रिकॉर्ड का हिस्सा बन गया. गलती को सुधारने के लिए अब सदन की मीटिंग में इसे हटाने के लिए दोबारा प्रस्ताव पारित करना ही चाहिए. 1975-1976 में जेपी की मौत की गलत ख़बर पर लोकसभा में उन्हें श्रद्धांजलि दे दी गई थी, खबर गलत पाए जाने पर दोबारा बैठक कर कार्यवाही को सदन से हटाया गया. सत्ता हासिल करने के लिए राजनेता नया सियासी ड्रामा करते हैं. अब दिवंगत नेताओं के नाम पर सस्ती राजनीति और पद्म सम्मान दोनों को ख़त्म करने की शुरुआत अब क्यों नहीं होनी चाहिए...?
विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...
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