यूपी चुनाव : जातीय समीकरण साधा फिर भी कांग्रेस के लिए कम नहीं हैं चुनौतियां

यूपी चुनाव : जातीय समीकरण साधा फिर भी कांग्रेस के लिए कम नहीं हैं चुनौतियां

शीला दीक्षित का फाइल फोटो

2017 में होने वाले यूपी चुनाव के लिए कांग्रेस ने अपनी टीम का ऐलान कर दिया है। 78 साल की शीला दीक्षित मुख्यमंत्री उम्मीदवार होंगी जबकि बुधवार को पार्टी ने निर्मल खत्री को हटाकर राज बब्बर को यूपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बोटी-बोटी काट देने की धमकी देने वाले इमरान मसूद को प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया है। जितिन प्रसाद, पूर्व कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, आरपीएन सिंह, राजीव शुक्ला, संजय सिंह जो यूपी से ही आते हैं उन्हें भी प्रदेश चुनाव के लिए महत्वपूर्ण जिम्‍मेदारियां दी गयी हैं। 1988 में कांग्रेस आख़िरी बार यूपी में सत्ता में आयी थी। उसके बाद से कांग्रेस की स्थिति यूपी में बिगड़ती चली गयी। 2012 में हुए यूपी विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने 403 सीटों में महज़ 28 सीटें ही जीती थी।

शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करके पार्टी प्रदेश के लगभग 10 फीसदी ब्राह्मण वोट को लुभाने की कोशिश करेगी जो बीते कई वर्षों से भाजपा व बसपा को अपना हिमायती मानती आई है। शीला दीक्षित का यूपी से पुराना नाता भी है। वह कांग्रेस के एक बड़े नेता उमाशंकर दीक्षित की बहु हैं जो यूपी के उन्नाव जिले से ताल्‍लुक रखते हैं। शीला दीक्षित यूपी के कन्नौज ज़िले से 1984 में सांसद भी रह चुकी हैं।

शीला 1998 से 2013 तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रही जिन्हें देश के सबसे सफ़ल मुख्यमंत्री का ख़िताब भी मिला लेकिन केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, दिल्ली में हुए भ्रष्टाचार व पार्टी के प्रति जनता के रोष ने करीब चार साल पहले उनके तीन दशक से भी पुराने राजनीतिक करियर को पूरी तरह से खत्म कर दिया था। 78 वर्षीय अनुभवी शीला की यूपी चुनाव में मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में राजनीति में यह दूसरी पारी है लेकिन उनका सामना इस चुनाव में सीधे तौर पर युवा अखिलेश यादव व ताकतवर नेता मायावती से होगा जोकि हर मामले में शीला पर भारी पड़ेंगे।

रणनीतिकार प्रशांत किशोर के कहने पर ब्राह्मण नेता शीला पर कांग्रेस ने दांव तो खेला है लेकिन जिस ढंग से दिल्ली में उन्हें शिकस्त मिली उसे देखकर लगता है कि यह बेहद मुश्किल है कि जनता उन पर भरोसा करेगी। कांग्रेस अगर उनकी जगह किसी युवा को मैदान में उतारती तो शायद जनता उसे एक विकल्प के रूप में देखती। हालांकि यूपी में पहली बार मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस का यह फैसला शायद बीजेपी के ऊपर भी सीएम कैंडिडेट घोषित कर चुनाव लड़ने पर मजबूर कर सकता है ।

बुधवार को कांग्रेस का निर्मल खत्री को हटाकर राज्य सभा सांसद राज बब्बर को यूपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाने का फैसला थोड़ा चौंकाने वाला था क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में उनका नाम कहीं था ही नहीं। अपने समय के मशहूर अभिनेता रहे राज बब्बर यूपी के आगरा ज़िले के रहने वाले हैं। कांग्रेस के पहले बब्बर समाजवादी पार्टी में थे और दो बार आगरा से सपा सांसद भी रहे हैं।

बब्बर ने 2006 में अमर सिंह से विवाद के बाद सपा को अलविदा कह दिया था और 2009 में कांग्रेस के टिकट से सपा का गढ़ कहे जाने वाले फ़िरोज़ाबाद से चुनाव लड़कर यूपी सीएम अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल को हराया था। हालांकि 2014 लोक सभा चुनाव में उन्हें पूर्व सेना प्रमुख वीके सिंह ने गाजियाबाद सीट से हरा दिया था। राज बब्बर एक साफ़ छवि के नेता हैं और कांग्रेस ने उन्हें बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या के मुकाबले उतारा है जोकि खुद ओबीसी हैं।

कांग्रेस द्वारा राज बब्बर को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का फैसला सराहनीय है क्योंकि उनकी छवि साफ़ है, वह मशहूर हैं और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री के मुकाबले कहीं ज़्यादा प्रभावशाली है। राज बब्बर को यूपी कांग्रेस का मुखिया बनाने से ठंडे पड़े कार्यकर्ताओं में कुछ तो जोश भरेगा ही ।

वहीं लगभग दो माह पहले कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता व जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम ग़ुलाम नबी आज़ाद को यूपी का चुनाव प्रभारी बनाया था। जातीय समीकरण की राजनीति के महत्व को समझते हुए कांग्रेस ने मुस्लिम चुनाव प्रभारी आज़ाद, ब्राह्मण सीएम उम्मीदवार शीला दीक्षित व ओबीसी राज बब्बर को यूपी चुनाव की कमान सौंपी है। कांग्रेस ने इस जातीय समीकरण से लगभग चालीस साल से ज़्यादा पुराने फॉर्मूला को फिर से दोहराया है जिसका 1970 व 1990 के बीच पार्टी को बेहद फ़ायदा मिला। इन दो दशकों में कांग्रेस के 8 बड़े नेता यूपी में मुख्यमंत्री रहे।

उस दौरान कांग्रेस को ब्राह्मण, ओबीसी व मुस्लिम समुदाय का भरपूर सहयोग मिलता था, लेकिन मुलायम सिंह के मैदान में उतरने के बाद मुस्लिम ने कांग्रेस से किनारा कर लिया। बीजेपी भी कांग्रेस के ब्राह्मण और ओबीसी वोट बैंक पर सेंध लगा गई। कांग्रेस को इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि इन तीन दशकों में राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल गए हैं लेकिन इस कदम से कांग्रेस, बीजेपी को 2017 में चोट पहुँचाने की तैयारी में है जिनका मुख्य निशाना ओबीसी व ब्राह्मण वोट बैंक पर है जो मिलकर यूपी की लगभग 40 फीसदी आबादी है।

इसके अलावा यूपी से आने वाले कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद, पूर्व कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, आरपीएन सिंह, राजीव शुक्ला, संजय सिंह, प्रमोद तिवारी ,रीता बहुगुणा जोशी को भी बेहद महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियां सौंपी हैं जोकि कार्यकर्ताओं को एकजुट कर पार्टी को मज़बूत करने का काम करेंगे। यूपी चुनाव के लिए हुए फेरबदल से एक बात तो साफ़ है कि कांग्रेस यह चुनाव गंभीरता से लड़ना चाहती है।

प्रियंका गांधी भी यूपी चुनाव में पार्टी की मुख्य प्रचारक होंगी। कांग्रेस यह भी भली भांति जानती है कि वर्तमान स्थिति में 2017 में होने वाले यूपी चुनाव में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलता नहीं दिखाई दे रहा है। पार्टी भले ही सपा, बसपा व भाजपा की तरह यूपी में मज़बूत न हो लेकिन अपनी नई टीम के सहारे प्रदेश में सीटें बढ़ाकर 2017 चुनाव में जरूरत पड़ने पर सपा या बसपा को समर्थन देकर सरकार बनाने का प्रयास कर सकती है ।

हालांकि कांग्रेस की नई टीम के लिए पार्टी को मज़बूत करना इतना आसान नहीं होगा। लोक सभा चुनाव में मिली शिकस्त के बाद कई राज्यों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस में नेतृत्व की कमी के साथ-साथ आपसी मतभेद भी बढ़ते जा रहे हैं। राहुल गांधी भी पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं की हताशा दूर करने में पूरी तरह से विफ़ल साबित हुए हैं। इसलिए यूपी में कांग्रेस के लिए चुनौती बड़ी है और राह बेहद ही मुश्किल।

नीलांशु शुक्ला NDTV 24x7 में ओबी कन्ट्रोलर हैं...

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