उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए अगले साल होने वाला चुनाव बेहद संघर्षपूर्ण बन चुका है | एक तरफ तो बिगड़ती कानून व्यवस्था के चलते जनता का अविश्वास बढ़ता जा रहा है तो दूसरी तरफ परिवार के कुछ सदस्य व पार्टी के वरिष्ठ नेता उनकी परेशानियों को और बढ़ा रहे हैं |
बेहद साफ छवि के नेता अखिलेश यादव ने कुछ दिनों पहले कौशांबी जिले में एक रैली के दौरान पूर्व सपा सांसद व बाहुबली अतीक अहमद को धक्का दे दिया था जब अतीक मुख्यमंत्री का अभिवादन करने मंच पर आए थे | अखिलेश ने ऐसा करके पार्टी के लोगों को यह संदेश देना चाहा कि बाहुबली और गुंडों की अब सपा में कोई जगह नहीं हैं | लेकिन बीती 21 तारीख को यूपी के बहुचर्चित डॉन मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का सपा में विलय हो गया | कौमी एकता दल को सपा से जोड़ने का निर्णय मुलायम के छोटे भाई शिवपाल यादव का था | पार्टी के वरिष्ठ नेता व वर्तमान सपा सरकार में मंत्री रहे बलराम यादव ने भी इस विलय में महत्वपूर्ण योगदान दिया | इस फैसले से अखिलेश यादव इतने बौखला गए कि उन्होंने मुलायम के बेहद करीबी बलराम यादव को तुरंत मंत्री पद से हटा दिया | अपने चाचा शिवपाल के खिलाफ तो कोई भी कार्रवाई करना अखिलेश के लिए नामुमकिन है, इसलिए उन्होंने बलराम यादव से मंत्री पद छीनकर अपनी कड़ी नाराज़गी जाहिर की | लेकिन इस पूरे प्रकरण का शिवपाल पर कोई भी असर नहीं पड़ा बल्कि कहा यह जा रहा है कि विलय के अगले ही दिन शिवपाल के कहने पर मुख्तार अंसारी को आगरा जेल से हटाकर लखनऊ कारागार शिफ्ट कर दिया गया जहां बाहुबली मुख्तार की हर फरमाइश का ख्याल रखा जाएगा | मुख्तार अंसारी का लखनऊ जेल स्थानांतरण करने का एडीजी कारागार डीएस चौहान ने विरोध किया तो उनका भी तबादला सीबीसीआईडी विभाग में करा दिया गया लेकिन हर बार की तरह सब कुछ जानते हुए भी अखिलेश यादव अपने चाचा के सामने नस्तमस्तक दिखाई पड़े |
कहा यह भी जा रहा है कि मथुरा के जवाहर बाग में हुए कब्जे का भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बहुत पहले से पता था लेकिन शिवपाल यादव के दखल के कारण अखिलेश कोई भी कार्रवाई नहीं कर पा रहे थे | मथुरा कांड के बाद शिवपाल पर आरोप लगा कि उन्होंने दंगाइयों के मुखिया रामवृक्ष यादव को संरक्षण दिया था जिसने पार्क पर कब्जा करके रह रहे सैकड़ों लोगों को हथियार चलाना सिखाया था | इन दंगाइयों ने पार्क पर कब्जा हटवाने गए दो पुलिस अधिकारियों को मौत के घाट उतार दिया था | पहले से ही खराब कानून व्यवस्था के कारण जनता की नाखुशी झेल रही सपा व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की छवि इस पूरे मामले के बाद बद से बदतर हो गई लेकिन पार्टी ने शिवपाल यादव को इस पूरे मामले में क्लीन चिट दे दी |
खबरों की मानें तो सपा में अमर सिंह की वापसी में भी शिवपाल का अहम योगदान था | शिवपाल के ही बार-बार बोलने पर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव अमर सिंह को दोबारा राज्य सभा में भेजने के लिए राजी हुए जबकि मुख्यमंत्री अखिलेश उनकी वापसी के खिलाफ थे | इस फैसले से नाखुश अखिलेश ने राज्य सभा चुनाव के लिए पार्टी द्वारा की गई तमाम बैठकों से किनारा कर लिया | अमर सिंह ने इसका शुक्रिया शिवपाल के बेटे की शादी का भव्य रिसेप्शन दिल्ली में खुद आयोजित कराकर अदा किया | बीते साल अक्टूबर में शिवपाल के ही कहने पर अखिलेश के बेहद खास साजन यादव समेत तीन युवा नेताओं को भी शिवपाल के कहने पर पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था | तब भी अखिलेश यादव बेहद नाराज हुए और सैफई महोत्सव में नहीं पहुंचे थे | हालांकि उस दौरान मुलायम सिंह के दखल के बाद तीनों निष्कासित नेताओं को सपा में दोबारा शामिल कर लिया गया |
आप सभी सोच रहे होंगे कि चाचा-भतीजे में अखिरकार किस बात को लेकर टकराव है? दरअसल दोनों के बीच विवाद 2011 में शुरू हुआ जब बीते विधान सभा चुनाव के पहले बाहुबली डीपी यादव को शिवपाल पार्टी में दोबारा शामिल करना चाहते थे लेकिन अखिलेश के मना करने पर उन्हें शामिल नहीं किया गया | पार्टी में उस दौरान चर्चा थी कि मुलायम अब अपना ध्यान केंद्र की राजनीति पर देंगे और उनके छोटे भाई शिवपाल यूपी की कमान संभालेंगे, लेकिन मुलायम ने अपने बेटे अखिलेश को प्रचार की जिम्मेदारी सौंप दी थी | उस दौरान मुलायम से कई बार मिलकर शिवपाल ने अखिलेश को चुनाव की जिम्मेदारी दिए जाने का विरोध किया था लेकिन मुलायम ने उनकी नहीं सुनी थी | अखिलेश की कड़ी मेहनत के चलते सपा ने 2012 के चुनाव में बाकी सभी पार्टियों का सफाया कर दिया था | अखिलेश की मेहनत का फल मुलायम ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर दिया था | जाहिर है मुलायम के इस फैसले से शिवपाल बेहद आहत हुए क्योंकि वह खुद मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब देख रहे थे | 61 साल के शिवपाल आज अपने 42 साल के भतीजे की कैबिनेट में मंत्री हैं जो पिछली बार खुद सीएम बनना चाहते थे।
अगले साल होने वाले चुनाव के लिए मुलायम ने शिवपाल को यूपी का प्रभारी बनाया है जबकि अखिलेश मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ सपा के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं | शिवपाल यादव के ही कहने पर यूपीए 2 में मंत्री रहे बेनी प्रसाद वर्मा की सपा में दोबारा वापसी हुई है | अजीत सिंह की पार्टी से भी पश्चिमी यूपी में गठबंधन के लिए भी शिवपाल ही बातचीत कर रहे हैं | इन सब में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की कोई भी भूमिका नहीं रखी गई | पार्टी के सभी पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी यही लगता है कि मुलायम के बाद सपा के दूसरे सबसे बड़े नेता शिवपाल ही हैं क्योंकि यूपी चुनाव से जुड़े सभी फैसले फिलहाल उन्होंने ही लिए हैं | शिवपाल ने 2011 से अभी तक वही किया है जिसके अखिलेश बेहद खिलाफ थे और जाहिर है आगे भी वह यही करते रहेंगे | खबरों की मानें तो अखिलेश उन कार्यक्रमों और बैठकों में शामिल ही नहीं होते हैं जहां शिवपाल जाते हैं | सीएम भले ही बोल रहे हों कि पार्टी में किसी भी तरह का मतभेद नहीं है लेकिन असल में चाचा और भतीजे के संबंध दिनों दिन खराब होते जा रहे हैं | शिवपाल के बढ़ते कद के कारण अखिलेश का महत्व भी पार्टी में घटता जा रहा है | इस वक्त पार्टी के मुखिया होने के नाते मुलायम सिंह का फर्ज़ बनता है कि वह अपने बेटे व भाई शिवपाल के बीच बढ़ रहे विवाद को खत्म करें वरना पहले से ही जनता का रोष झेल रही समाजवादी पार्टी की अगले साल होने वाले यूपी चुनाव में स्थिति और खराब हो जाएगी |
नीलांशु शुक्ला NDTV 24x7 में ओबी कन्ट्रोलर हैं...
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This Article is From Jun 24, 2016
यूपी चुनाव : सपा में शिवपाल बनाम अखिलेश की क्या है वजह?
Nelanshu Shukla
- ब्लॉग,
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Updated:जून 24, 2016 18:12 pm IST
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Published On जून 24, 2016 18:12 pm IST
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Last Updated On जून 24, 2016 18:12 pm IST
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