विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने जब लोकसभा में भारत-पाकिस्तान बातचीत के मुद्दे पर अपना बयान दिया तो एक के बाद एक तेरह सांसदों ने उनसे सवाल किए। सौगत राय, वेणुगोपाल, भर्तृहरि माहताब, मोहम्मद सलीम, चंदूमाजरा, असदुद्दीन ओवैसी, महबूबा मुफ्ती, राजामोहन रेड्डी -इन सब ने सुषमा के बयान देने में पांच दिनों की देरी से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैंकाक में हुई बैठक तक और पाकिस्तान से क्या भरोसा मिला से लेकर बातचीत बिना रुकावट जारी रहने की गारंटी तक, दसियों सवाल पूछे। कुछ ने सवाल पूछ तो कुछ ने आशंकाएं जाहिर कीं कि क्या पाकिस्तान की तरफ से फिर से कोई आतंकवादी हमला नहीं होगा। सुषमा ने एक-एक कर सबके जवाब दिए।
अलगाववादी नेताओं से मुलाकात का सवाल अब तक कायम
सुषमा स्वराज ने बिना झिझक यह माना कि भारत और पाकिस्तान के बीच जमीनी स्तर पर कुछ नहीं बदला है। यह भी कि बिना रुकावट बातचीत की कोई गारंटी नहीं ली जा सकती। पर बातचीत की प्रक्रिया भरोसे के साथ शुरू की जा रही है। सांसदों और विदेश मंत्री के बीच इन सवालों और जवाबों के बीच एक सवाल जो नहीं उठा वह यह कि क्या हुर्रियत नेताओं से मुलाकात के लिए पाकिस्तान पहले की तरह जिद करेगा। खास तौर पर तब जब अगले महीने दोनों देशों के विदेश सचिवों की मुलाकात होनी है। ऐसे में क्या गारंटी है कि पाकिस्तान अपनी तरफ से हुर्रियत नेताओं से नहीं मिलना चाहेगा। अगर वह यह जिद नहीं करेगा तो नवाज़ सरकार को अपने घर में दिक्कत उठानी पड़ेगी। हुर्रियत भी अपनी तरफ से बातचीत के औचित्य पर सवाल उठाते हुए यह पूछेगा कि क्या पाकिस्तान भारत के दबाव में आ गया। वह इसे इस तरह से तूल देने की कोशिश करेगा कि मानो पाकिस्तान कश्मीर के मुद्दे को भुला आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है। रही सही कसर पाकिस्तान के मीडिया का वह हिस्सा पूरा कर देगा जो दोनों देशों के बीच के हर नुक्ते पर सवाल उठाता है।
डेढ़ साल बातचीत अटकने पर प्रश्न
बहुत लाज़िमी है कि पाकिस्तान अपनी वजहों से हुर्रियत नेताओं से मुलाकात की बात करे। तब सवाल होगा कि इस पर भारत का रुख क्या होगा। क्या वह हुर्रियत नेताओं से मुलाकात नहीं करने की फिर शर्त रखेगा। खास तौर पर तब जब दोनों देशों के बीच की बातचीत इसी वजह से अटक गई हो, ऐसे में भारत के इस रुख को पाकिस्तान क्या मान लेगा। पाकिस्तान नहीं मानेगा तो क्या भारत मुलाकात के लिए मान जाएगा। फिर उसके उस घोषित रुख का क्या होगा जिसकी वजह से पिछले साल अगस्त में विदेश सचिवों की बात नहीं हो पाई। इस साल उफ़ा समझौते के बाद भी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बात नहीं हो पाई। भारत अगर हुर्रियत से मुलाकात पर सवाल नहीं उठाएगा तो भारत का मीडिया इस मुद्दे को उठाएगा। पूछेगा कि अगर यही करना था तो इसकी वजह से डेढ़ साल बातचीत क्यों रुकी रही।
बिना शर्त बातचीत किन शर्तों के साथ?
सवाह है कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय बातचीत करने की जो सहमति बनी है और जिसका ऐलान सुषमा स्वराज और सरताज अज़ीज़ ने इस्लामाबाद में किया, क्या उससे पहले हुर्रियत मुलाकात के मुद्दे पर विचार कर कोई रास्ता निकालने की कोशिश की गई है। एक बीच का रास्ता यह हो सकता है कि हुर्रियत से पाकिस्तानी विदेश सचिव की मुलाकात दोनों देशों के बीच की आधिकारिक बातचीत के बाद रखी जाए। लेकिन यह विकल्प तो पहले भी था, तब सहमति क्यों नहीं बनी। क्या दोनों पक्ष तब खुद में इतने मशगूल थे कि दूसरे की सुनने को तैयार नहीं थे। और अब सुनने को तैयार हुए हैं तो उनको बताना भी पड़ेगा कि आखिर बिना शर्त बातचीत का यह सिलसिला किन शर्तों के साथ शुरू हो रहा है।
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This Article is From Dec 15, 2015
उमाशंकर सिंह का ब्लॉग : क्या होगा अगर फिर हुर्रियत से मुलाकात की बात उठेगी?
Umashankar Singh
- ब्लॉग,
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Updated:दिसंबर 23, 2015 13:39 pm IST
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Published On दिसंबर 15, 2015 18:54 pm IST
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Last Updated On दिसंबर 23, 2015 13:39 pm IST
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