उसका नाम आदिल था... तन पर न कोई वर्दी थी, न उसके पास कोई मोटरबोट था, और न ही किसी हेलीकॉप्टर का सहारा, लेकिन वह कूद पड़ा, बाढ़ में फंसे हुए लोगों को राहत पहुंचाने में... और फिर खुद ही सैलाब में बह गया... उस वक्त वह राजबाग के घरों में फंसे लोगों तक पानी पहुंचा रहा था...
श्रीनगर के निशात बाग से करीब तीन किलोमीटर की अच्छी-खासी चढ़ाई के बाद ब्रेन इलाके में जब हम आदिल के घर पहुंचे तो दादी फज़ी दरवाज़े पर ही मिल गईं... हमें देखते ही समझ गईं कि हम उनके दुखों को कुरेदने आए हैं... सिर और छाती पीट रोने लगीं... समझ ही नहीं आया, कैसे सांत्वना दूं... थोड़ा ठिठका... फिर हौले से उन्हें घर के अंदर चलने को कहा...
लकड़ी और टिन का बना मुख्य दरवाज़ा पार कर हम अंदर पहुंचे... छोटे-छोटे दो कमरों के इस मकान के आंगन में मातम पसरा था... फर्श पर बिछी चादर पर बैठी मां शमीमा बानो और बहन रुखसाना बानो की आंखें शून्य को निहार रही थीं... इनकी भावशून्य शांति को हमारे कदमों की आहट ने तोड़ दिया... आदिल को लेकर पूछे गए हमारे सवालों ने इनकी आंखों को फिर नम कर दिया... मां के सीने का दर्द ज़ुबान पर आया, "मैंने अपने इन्हीं हाथों से दूसरों के घरों में बर्तन मांजकर और साफ-सफाई कर उसे पढ़ाया था, लेकिन वह चला गया..."
मां रो रही थी तो बेटी कंधे पर हाथ रखकर सांत्वना दे रही थी, लेकिन भाई की याद में वह खुद भी अंदर ही अंदर फफक रही थी... दो छोटे भाई ज़ाहिद और अयाश की तरफ देखकर बोली, "आदिल ही सब कुछ था... वह सहारा भी हमसे छिन गया... इन दोनों भाइयों को वही पढ़ा रहा था... अब ये कैसे पढ़ेंगे...?"
दरअसल, 20 साल का आदिल अपने कुछ दोस्तों के साथ बाढ़ में फंसे लोगों को बचा रहा था... पांच दिन तक जी-जान से जुटा रहा... जिनके लिए कुछ और नहीं कर पाया, तो उन तक पानी ही पहुंचाता रहा... फिर छठे दिन खुद ही पानी में बह गया...
पड़ोसी जलादुलद्दीन बताते हैं, "वह बदन पर पानी की बोतल बांधकर लोगों तक पहुंच रहा था... जब डेड बॉडी मिली, तो उस पर भी पानी की बोतल बंधी हुई थी..."
एक और पड़ोसी गुलाम रसूल बताते हैं, "आदिल जोशीला लड़का था... हर किसी की मदद को आतुर रहता था... लेकिन शायद कंटीले तार में पैर फंसा और फिर पानी से बाहर नहीं निकल पाया..."
आदिल परिवार की तीन पीढ़ियों के बीच का पुल था... पिता गुलाम कादिर चौपान, दादा गुलाम अहमद चौपान और अपने दो छोटे भाई ज़ाहिद और अयाश... इन सबके साथ परिवार के कुल नौ लोगों के भरण-पोषण की ज़िम्मेदारी आदिल ने बचपन में ही उठा ली थी... चौपान समुदाय का पुश्तैनी काम माल-मवेशी चराने का है, लेकिन नौवीं तक पढ़ाई के बाद आदिल ने प्लम्बर का काम शुरू कर दिया था, ताकि परिवार का खर्च उठा सके... मेरे दरयाफ्त करने पर घर के लोगों ने वह संदूक उतारकर दिखाया, जिसमें उसके औज़ार पड़े थे... मन में आया, इन औजारों को अब हमेशा उसके हाथों का इंतज़ार रहेगा, लेकिन इन्हें छूने या उठाने के लिए आदिल अब कभी नहीं आएगा...
पिता को ठीक से दिखाई नहीं देता, सो, वही पिता की आंखों की रोशनी भी था... रसोई का चूल्हा भी उसी से जलता था, लेकिन अब नमक और हल्दी के अलावा राशन के तमाम डिब्बे खाली पड़े हैं... अभी तो पास-पड़ोसी मदद कर रहे हैं, लेकिन परिवार दाने-दाने को मोहताज हो गया है, क्योंकि अब इनका आदिल नहीं रहा... आदिल का मतलब होता है, न्यायप्रिय या इंसाफपसंद...
आदिल के परिवार की मदद के लिए आप उनकी मां शमीमा बानो से मोबाइल नंबर 08713895160 पर संपर्क कर सकते हैं। हमें देशभर से ऐसे लोगों के सैकड़ों फोन आ चुके हैं, जो आदिल के परिवार की मदद करना चाहते हैं, सो, हम आदिल की मां के बैंक एकाउंट की जानकारी यहां साझा कर रहे हैं, ताकि मदद सीधे भी की जी सके।
नाम : शमीमा अख्तर (Shamima Akhtar)
बैंक : जम्मू एंड कश्मीर बैंक (Jammu & Kashmir Bank)
शाखा : ब्रेन, निशात, श्रीनगर
खाता संख्या : 0229040800020228 (एसबीयू 20228)
आईएफएससी कोड : JAKA0NISHAT