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This Article is From Dec 18, 2019

प्रदर्शन हिंसक हो तो असली उद्देश्य खो जाता है

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 18, 2019 00:14 am IST
    • Published On दिसंबर 18, 2019 00:12 am IST
    • Last Updated On दिसंबर 18, 2019 00:14 am IST

अगर हिंसा से प्रदर्शनों को नहीं बचाया जा सकता है तो बेहतर है प्रदर्शनों से दूर रहा जाए. कुछ समय के लिए पीछे हटने में कोई नुकसान नहीं है. बाहरी ने किया और अज्ञात लोगों ने किया इन कारणों और बहानों से कोई फायदा नहीं है. या फिर प्रदर्शन पर जाने से पहले इस बात को सुनिश्चित करें कि हिंसा की कोई संभावना न हो. नारों में उग्रता न हो और पता हो कि रैली बुलाने वाला कौन है. देश भर में नागिरकता कानून के विरोध में शांतिपूर्ण तरीकों से हो रहा प्रदर्शन हिंसा की चपेट में जाता दिख रहा है. हिंसा का दोषी कौन है इस बहस को कोई जीत नहीं सका है लेकिन हिंसा से हमेशा विरोध प्रदर्शन के सवाल ही कमजोर होते हैं. इसलिए अगर किसी प्रदर्शन में बाहरी लोगों को इतनी छूट है कि वे इस तरह से हाईजैक कर रहे हैं तो फिर ज़रूरी नहीं कि आप भीड़ लेकर ही प्रदर्शन करें. और भी तरीके हैं. हिंसा से सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान तो हो ही रहा है, आम लोगों के लिए समझना भी मुश्किल हो जाएगा कि प्रदर्शन किस बात को लेकर है क्योंकि सारा फोकस जलती हुई बसों और लाठी लेकर दौड़ती पुलिस पर चला जाता है. इससे लोगों में नाराज़गी बढ़ती जाती है. दिल्ली आज दो-दो बार हिंसा और लंबे तनाव के दौर में जाने से बची है.

पूर्वी दिल्ली के सीलमपुर इलाके में दोपहर के वक्त नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शन हो रहा था. पुलिस के अनुसार 12 बजे के करीब प्रदर्शन शुरू हुआ जिसमें 3000 के करीब लोग आ गए. आधे घंटे तक शांतिपूर्ण मार्च होता रहा लेकिन कुछ देर के बाद कुछ तत्वों ने हिंसा शुरू कर दी और पत्थर फेंकना शुरू कर दिया. जल्दी ही विरोध प्रदर्शन हिंसा की चपेट में आ गया. लोगों की तरफ से पत्थर चलाए गए और पुलिस ने भी पत्थर चलाए. सीलमपुर टी प्वाइंट से जाफराबाद टी प्वाइंट के बीच पथराव होने लगा. वहां पर पुलिस चौकी भी जला दी गई है और पत्थरबाज़ी होने लगी. एक स्कूल बस को भी निशाना बनाया गया जिसमें बच्चे थे. ड्राईवर की सूझबूझ से खतरा टल गया मगर यह हिंसा खतरनाक मोड़ पर पहुंच सकती थी. दिल्ली पुलिस ने किसी तरह मामले को संभाला है. भीड़ को संभालने के दौरान आंसू गैस के गोले छोड़े गए जिसमें कई लोग ज़ख्मी भी हुए. हिंसा को देखते हुए कई मेट्रो स्टेशन बंद कर दिए गए जिन्हें बाद में खोल दिया गया. स्थानीय नागरिकों ने भी अपील करनी शुरू दी. जिसके बाद लोग सामान्य होने लगे. हमारे सहयोगी सौरभ शुक्ल ने बताया कि हिंसा होते ही इलाके के इमाम और बुज़ुर्ग बाहर आ गए और गलियों में जाकर लोगों को समझाने लगे. इससे भी स्थिति पर नियंत्रण पाने में मदद मिली. तीन चार घंटे तक मेट्रो बंद रहने और ट्रैफिक बंद रहने से इन इलाकों में और दूसरे इलाको में काफी परेशानी हुई है. शाम छह बजे ट्रैफिक सीलमपुर इलाके में सामान्य हो गया.

घटना के बाद बहुत सारे मैसेज और वीडियो वायरल होने लगते हैं. इससे बचना चाहिए. इस तरह के मैसेज और भी बेचैनियां पैदा करते हैं. आपस में फैलाने से अच्छा है कि इसे किसी ज़िम्मेदार को ही पहुंचाएं. पुलिस का काम है कानून व्यवस्था बरकरार रखना लेकिन आपकी भी ज़िम्मेदारी है कि भीतर के लोगों को ठीक से पहचाने ताकि बाहरी को मौका न मिले. और कभी भी प्रदर्शन को इस स्तर पर न जाने दे जो बेकाबू हो जाए.

सीलमपुर के साथ दरियागंज के इलाके में भी दुकाने बंद रहीं. पुरानी दिल्ली के इलाके में कई दुकानदरानों ने नागरिकता कानून के खिलाफ बंद किया. उनका यह बंद जामिया मिल्लिया के छात्रों के समर्थन भी हुआ है. सीलमपुर की घटना को देखते हुए इलाके में पुलिस ने बाइक से मार्च किया. कई जगहों पर ट्रैफिक को बंद किया था. अब हालात सामान्य हैं. सीलमपुर और दरियागंज को शाम होने से पहले ही संभाल लिया गया.

जामिया व अन्य जगहों पर हुई छात्र हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इंदिरा जयसिंह, संजय हेगड़े, कोलिन गोंज़ाल्विस और महूमद प्राचा ने याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ता के वकील गोंज़ाल्विस ने चीफ जस्टिस से कहा कि ऐसा संदेश गया है कि आपने छात्रों को ज़िम्मेदार ठहराया है तब चीफ जस्टिस बोबडे ने कहा कि हमने कभी छात्रों को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया है. कोलिन गोंज़ाल्विस ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों के साथ हुई हिंसा का भी सवाल उठाया. मांग की किसी रिटायर्ड जज को अलीगढ़ भेजा जाए. इंदिरा जय सिंह ने कहा कि लाठी चार्ज में घायल छात्रों के मेडिकल जांच का खर्चा सरकार उठाए और उनकी गिरफ्तारी बंद हो. इनकी मांग थी कि कोर्ट शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को सुनिश्चित कराए कि इन्हें रोका न जा सके. इनका कहना था कि सरकार हिंसा करा रही है. वीडियो हैं कि पुलिस तोड़फोड़ कर रही है. चीफ जस्टिस ने पूछा कि सब शांतिपूर्ण था तो बसें कैसे जल गईं.

जामिया के चीफ प्रोक्टर प्रोफसर वसीम ख़ान ने एक बयान जारी किया है कि जामिया के चीफ प्रोक्टर ने कभी भी पुलिस को कैंपस के भीतर आने की अनुमति नहीं दी. बल्कि पुलिस की हिंसा की निंदा की थी. चीफ प्रॉक्टर ने अपने बयान में कहा है कि मीडिया में ऐसा रिपोर्ट हुआ है कि सोलिसिटर जनरल ने कोर्ट में कहा है कि चीफ प्रोक्टर ने पुलिस को भीतर आने की अनुमति दी थी. प्रोफेसर वसीम ए खान मीडिया रिपोर्ट पर सफाई दे रहे थे. जामिया नगर इलाके में हुई हिंसा के मामले में पुलिस ने 10 लोगों को गिरफ्तार किया है. ये इलाके के घोषित बदमाश हैं. पुलिस का कहना है कि इनमें से कोई भी जामिया का छात्र नहीं है मगर उन्हें अभी क्लिन चिट नहीं दी जा रही है. सोमवार को जब हमारे सहयोगी परिमल ने खबर की कि तीन लोगों को जामिया हिंसा के दौरान गोली लगी है. इनमें से एक जामिया का छात्र है, एजाज़. पुलिस तब से लेकर अब तक गोली चलाने को लेकर कई थ्योरी पेश कर चुकी है. अब पुलिस की तरफ से कहा गया है कि देसी कट्टे के इस्तमाल हुआ है और ये बाहरी लोगों ने चलाए हैं. पुलिस को देसी कट्टे मिले हैं. लेकिन आपने देखा होगा और फिर से देखेंगे कि होली फैमिली से छूट कर बाहर आया एक शख्स बता रहा है कि उसे गोली पुलिस की बंदूक से लगी है. गृहमंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि गैर सरकारी कारतूस और खोखे मिले हैं. यानी गोली चली थी. किसने चलाई थी इसे लेकर दो थ्योरी है. वहीं सफदरजंग के मेडिकल सुप्रीटेंडेंट ने कहा था कि गोली से लोग ज़ख्मी हैं और उनका इलाज चर रहा है मगर अब वे बात नहीं कर रहे हैं.

सोशल मीडिया पर आज एक तस्वीर वायरल हुई. इस तस्वीर को लेकर वाकई लोगों ने दिमाग खराब कर रखा है. हर कोई ये मेसेज फार्वर्ड करने में लगा है कि यह दिल्ली पुलिस का सिपाही नहीं है. शाहीद को बचा रही लड़कियां आगे आती हैं तब यह लाल टी शर्ट वाला जवान रुक जाता है. इसे लेकर बाद में अफवाह फैली कि ये एबीवीपी का कार्यकर्ता है और दिल्ली पुलिस की वरदी पहन कर मार रहा है. अफवाह फैलानों वालों ने काफी मेहनत की. किसी भरत शर्मा का फेसबुक प्रोफाइल खोज लाए और इनके चेहरे से मिलाने लगे. बाद में दिल्ली पुलिस ने उस सिपाही को ही पेश कर दिया कि यह भरत शर्मा नहीं हैं, अरविंद है.

आशा है भरत शर्मा और अरविंद दोनों चैन की सांस ले सकेंगे. छात्रों की हिंसा और स्टेट की हिंसा में फर्क करना चाहिए. यह सही है कि हिंसा की इजाजत नहीं है. अगर छात्र हिंसा करेंगे तो वे अपने ही सवाल के साथ धोखा करेंगे लेकिन एक बात सोचिएगा. छात्रों के सामने स्टेट का तंत्र कितना लैस होता है. जब पुलिस हास्टलों में घुसकर लाठियां मारती है, लड़कियों को पीट देती है. किसी लड़के को दबोच कर मारने लगती है तब यह हिंसा बर्बरता में बदल जाती है. दोनों पक्षों की हिंसा के बीच यह बेहद बारीक लेकिन ज़रूरी अंतर है. इसलिए हिंसा के बाद जांच छात्रों की तो हो रही है मगर जांच भी पुलिस करती है जो हिंसा करती है. अब जामिया के कानून के छात्र मिन्हाजुद्दीन के साथ जो हिंसा हुई है वो पुलिस ने की है. उनकी एक आंख चली गई है. समस्तीपुर के रहने वाले मिन्हाज को एम्स में भर्ती कराया गया था. इसलिए जब लाइब्रेरी में और हॉस्टल में घुसकर पुलिस मारती है तो उसकी कार्रवाई पर सवाल होना चाहिए. राज्य की हिंसा की ताकत और छात्रों की हिंसा में फर्क करना चाहिए.

जामिया की घटना के विरोध में देश और दुनिया की कई यूनिवर्सिटी में विरोध प्रदर्शन हुआ है. अमरीका की 19 यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले 400 छात्रों ने असम. जामिया मिल्लिआ और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हुई हिंसा के विरोध में एक पत्र जारी किया है. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्नया बर्कली, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, कोलंबिया यूनिवर्सिटी, येल यूनिवर्सिटी, न्यूयार्क यूनिवर्सिटी. ब्राउन यूनिवर्सिटी, जार्जटाउन यूनिवर्सिटी सहित 19 यूनिवर्सिटी ने बयान में कहा है कि 'भारत के संविधान के तहत प्रदर्शन करने का अधिकार हासिल है. छात्रों को प्रदर्शन किया जाए. उनके ख़िलाफ़ राज्य की तरफ से हिंसा न हो. आईएएस और आईपीएस संविधान के अनुसार अपना दायित्व निभाएं. राजनैतिक दबाव में छात्रों का दमन न करें. हिंसा में शामिल दिल्ली पुलिस, यूपी पुलिस और केंदीय रिज़र्व पुलिस बल की भूमिका की जांच हो. जांच स्वतंत्र हो.

भारत में भी कई नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ने जामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हुई पुलिस हिंसा के विरोध में छात्रों का साथ दिया है. 16 और 17 दिसंबर को भारत की कई यूनिवर्सिटी में जामिया के समर्थन में भारी प्रदर्शन हुए हैं.

दिल्ली के जामिया हमदर्द में भी छात्रों ने जामिया के समर्थन में प्रदर्शन किया था. 17 दिसंबर को दिल्ली में भी इंदप्रस्थ यूनिवर्सिटी में छात्रों ने पुलिस हिंसा के विरोध में प्रदर्शन किया है. बड़ी संख्या में लड़कियां इन प्रदर्शनों में हिस्सा ले रही है. अशोका यूनिवर्सिटी के छात्रों, पूर्व छात्रों और शिक्षकों ने भी बयान जारी कर जामिया यूनिवर्सिटी और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों के पक्ष में बयान जारी किया है. कहा है कि इन यूनिवर्सिटी के छात्रों को गलत तरीके से सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान के मामलों में फंसाया जा रहा है. हैदराबाद में उस्मानिया यूनिवर्सिटी में भी बड़ा प्रदर्शन हुआ है. पुणे भी मे भी छात्रों ने बड़ी संख्या में प्रदर्शन किया है. पुणे पुलिस ने प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं दी. फर्गुसन कॉलेज के छात्र बाहर प्रदर्शन करना चाहते थे. बंगलुरु में भी अलग-अलग कॉलेज के छात्र छात्राओं ने कवन पार्क से लेकर फ्रीडम पार्क तक का मार्च किया. नागरिकता कानून का विरोध किया और यूनिर्सिटी हिंसा के विरोध में नारे लगाए. मद्रास यूनिवर्सिटी में शाम को काफी बड़ा प्रदर्शन हो गया.

अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में कैंपस खाली होना शुरू हो गया है. बहुत से छात्र और छात्राएं बगैर रिज़र्वेशन के जैसे तैसे घरों की तरफ निकले हैं. छात्रों को यूनिवर्सिटी बस की भी सुविधा दी गई है. इंटरनेट बंद होने के कारण एएमयू की बहुत सारी चीज़ें सामने नहीं आ पा रही हैं. एएमयू के दो दर्जन से अधिक छात्रों के खिलाफ एफआईआर है. अलीगढ़ में महिलाओं ने प्रदर्शन किया है और डीएम को ज्ञापन दिया है.

इस छात्र का वीडियो आया है. यह छात्र अपनी पहचान नहीं बताना चाहता है लेकिन ज़ख्म दिखाना चाहता है. इसका कहना है कि पुलिस की हिरासत में इसे मारा गया है. अलीगढ़ से तीस किलोमीटर दूर एक थाने के भीतर उसकी पिटाई हुई है. इसका कहा था कि लाइब्रेरी में परीक्षा की तैयारी कर रहा था. अगले दिन परीक्षा थी. कैंपस में हंगामा हुआ तो लाइब्रेरी से निकल हॉस्टल चला गया. जब घर जाने के लिए गेट तक पहुंचा तो लाठीचार्ज की चपेट में आ गया. ट्रक में भी उसकी पिटाई हुई. रविवार को 20-22 छात्रों को हिरासत में ले गई थी. पुलिस ने इन्हें बाद में छोड़ दिया. इंटरनेट बंद होने के कारण यह वीडियो बहुत मुश्किल से हम तक पहुंचा है. ये इस छात्र का बयान है.

प्रधानमंत्री मोदी ने आज फिर छात्रों से अपील की है. उन्होंने ट्वीट किया है कि 'मेरा देश के कॉलेजों और यूनिवर्सिटी के युवा साथियों से आग्रह है कि आप अपने महत्व को समझें. जहां आप पढ़ रहे हैं उन संस्थानों के महत्व को समझें. सरकार के फैसलों और नीतियों को लेकर चर्चा करें. डिबेट करें. आपको कुछ ग़लत लगता है तो लोकतांत्रिक तरीके से प्रदर्शन करें. सरकार तक अपनी बात पहुचाएं. यह सरकार आपकी हर बात और भावना को सुनती समझती है.
प्रधानमंत्री का यह दूसरा ट्वीट है. छात्रों को लेकर. सोमवार को भी उन्होंने एक ट्वीट किया था. प्रधानमंत्री मोदी को कुछ ट्विट अपने सांसदों के बारे में भी करना चाहिए. बीजेपी के राज्यसभा सांसद आर के सिन्हा का ट्वीट उन्हें देखना चाहिए. एक तरफ प्रधानमंत्री छात्रों से कह रहे हैं कि वे अपने संस्थानों के महत्व को समझें लेकिन दूसरी तरफ उन्हीं की पार्टी के सांसद जामिया को आतंकवादियों का अड्डा बता रहे हैं.

एक तरफ प्रधानमंत्री कहते हैं कि छात्र अपने संस्थानों के महत्व को समझें. दूसरी तरफ उनकी पार्टी के वरिष्ठ सांसद आर के सिन्हा जामिया को आतंकवादी का अड्डा बताते हैं. जामिया के छात्रों को कश्मीर का पत्थरबाज़ बनाते हैं. ऊपर के नेता कुछ कहते हैं और बाकी नेता वही कहते हैं जो व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की भाषा है. आर के सिन्हा के इस बयान के बाद क्या प्रधानमंत्री को छात्रों से अपील करने से पहले अपने सांसदों से अपील नहीं करना चाहिए कि वे यूनिवर्सिटी का मतलब समझ लें. नागरिकता कानून के संदर्भ में हुए विरोध प्रदर्शनों में देश भर में बड़ी संख्या में लोग गिरफ्तार किए गए हैं.


दिल्ली में कांग्रेस पार्टी अचानक गांधी टोपी और मशाल के साथ नज़र आई. पहले तो लगा कि आम आदमी पार्टी है लेकिन हरीश रावत दिखे. हरीश रावत ने कहा कि जामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हुई हिंसा के विरोध में यह जुलूस निकाली है. उसके बाद सोनिया गांधी और विपक्ष के कई नेताओं ने राष्ट्रपति से इन्हीं मुद्दों को लेकर मुलाकात की. शरद पवार, शरद यादव, डेरेक ओ, ब्रायन, मनोज झा, सीताराम येचुरी राम गोपाल यादव जैसे कई नेता इस प्रतिनिधिमंडल में गए. सोनिया गांधी ने कहा कि पूर्वोत्तर में स्थिति ठीक नहीं है. हालात देखकर लग रहा है कि विरोध बढ़ सकता है. हम इस बात से परेशान हैं कि पुलिस ने छात्रों के साथ हिंसा की है. बीजेपी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि वह नागिरकता कानून को लेकर लोगों में भ्रांति फैला रही है. जबकि इस बिल से किसी को नुकसान नहीं है. कांचीपुरम में डीएमके नेताओं ने भी प्रदर्शन किया. केंद्र सरकार के खिलाफ नारे लगाए गए. स्टालिन और दयानिधि मारन इस प्रदर्शन में शामिल थे. स्टालिन ने सवाल किया है कि इस कानून के दायरे से तमिल शरणारर्थियों और मुसलमानों को क्यों बाहर किया गया है.

अगर वाकई इस कानून से किसी को नुकसान नहीं है तो कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को अपने सहयोगी अकाली दल के नेता सुखबीर बादल से पूछे या उन्हें समझाएं. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि कांग्रेस और उनके समर्थक दलों में हिम्मत है तो वे खुलेआम कह दें कि वे सभी पाकिस्तानी नागरिकों को भारतीय नागरिकता देने के लिए तैयार हैं. यही राजनीति है. कांग्रेस या किसी भी दल ने यह नहीं कहा कि पाकिस्तान के सभी नागरिकों को नागिरकता दे दें. लेकिन प्रधानमंत्री के इस बयान की मीडिया में समीक्षा नहीं होगी. अगर यही बात है तो फिर प्रधानमंत्री अपने समर्थक सहयोगी दल अकाली दल को क्या कहेंगे. क्या अकाली दल भी पाकिस्तान के सभी नागरिकों की नागरिकता की बात कर रहा है?

सुखबीर बादल शनिवार को अकाली दल का अध्यक्ष बने हैं. रविवार को उन्होंने बयान दिया कि अकाली दल बीस पचीस साल से नागरिकता के लिए संघर्ष कर रहा है. अकाली दल चाहता है कि नागरिकता कानून में मुसलमानों को भी शामिल किया जाए. सिर्फ सिखों को नहीं, हम हमेशा सभी जाति और धर्म की भलाई चाहते हैं.

पहले अमित शाह या रविशंकर प्रसाद को सुखबीर सिंह बादल को समझाना चाहिए. फिर यह भी बताना चाहिए कि सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने क्यों कहा है कि वे नागरिकता कानून को लागू नहीं होने देंगे. उनका कहना है कि सिक्किम को अनुच्छेद 371-एफ के तहत विशेष दर्जा दिया गया है. कुछ लोग सिक्किम के लोगों को गुमराह कर रहे हैं कि नागरिकता कानून लागू होगा. लेकिन हमें गृहमंत्री ने आश्वासन दिया है कि नागरिकता कानून लागू नहीं होगा.

बात यह है कि नागरिकता कानून को लेकर मुख्यधारा मे बहस हिन्दू मुस्लिम को लेकर है. सुखबीर बादल और कांग्रेस या विपक्षी दल का अलग सवाल है. यही सवाल पूर्वोत्तर में भी है लेकिन वहां यह भाषा और संस्कृति से भी जुड़ जाता है. पूर्वोत्तर के लोग कहते हैं कि घुसपैठियों को धर्म के आधार पर विभाजन करना गलत था. जबकि यहां सरकार धर्म के आधार पर घुसपैठियों को बसा रही है. इसका विरोध हो रहा है. अगर प्रधानमंत्री कांग्रेस को नहीं समझा पा रहे हैं तो उन्हें पूर्वोत्तर के राज्यों को समझाना चाहिए. हिन्दी भाषी प्रदेशों में पूर्वोत्तर में इस कानून के विरोध को लेकर बहस होती तो पता चलता कि इस एक कानून की वजह से अलग-अलग राज्यों में चुनौतियां पैदा हो गई हैं.

असम में सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले अखिल गोगोई को 12 दिसंबर को ही गिरफ्तार कर लिया गया था. मंगलवार को अखिल को जोरहाट से गुवाहाटी लाया गया हवाई जहाज़ से. अखिल गोगोई को एनआईए ने गिरफ्तार किया है. उन पर आतंक, राजद्रोह, माओवीदी पार्टी से लिंक होने का आरोप है. उनके वकील इसे राजनीतिक बताते हैं. अखिल गोगोई नागरिकता कानून का विरोध कर रहे थे क्या यह संयोग नहीं है कि तभी उनकी इन आरोपों में गिरफ्तारी होती है. विपक्ष के नेता ने कहा है कि अखिल गोगोई असम में विपक्ष की आाज़ रहे हैं. हम उनके प्रदर्शन करने के तरीके से सहमत नहीं हैं लेकिन वे आतंकवादी नहीं हैं. असम बुद्धीजीवि हिरेन गोहेन ने कहा है कि अखिल गोगोई देश के खिलाफ कभी नहीं रहे. सरकार के खिलाफ रहे हैं.

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