रवीश रंजन शुक्ला की खरी-खरी : मीडिया के कैमरों से कोफ्त 'आप' का जायज हक

नई दिल्ली:

तुर्की में देशभर के पुलिस स्टेशन के अंदर मीडिया को जाने पर पाबंदी लगा दी गई थी, गाजा में इंटरनेशनल मीडिया पर पाबंदी थी। इनके कारणों पर मैं नहीं जाऊंगा, कई अच्छे हो सकते हैं तो कुछ खराब भी हो सकते हैं। मैं ये नहीं कह रहा हूं कि दिल्ली सचिवालय में मीडिया के प्रवेश पर पाबंदी इतना बड़ा मुद्दा हैं, जिनका जिक्र मैंने किया है। मीडिया के कैमरों से कोफ्त वाजिब भी है सवालों से सालभर तक परहेज आपका जायज हक है।

अरविंद केजरीवाल का वह भाषण काबिले-तारीफ है, जिसमें घमंड नहीं आने की बात कही गई थी। यह भी सच है कि पिछले साल जब अरविंद केजरीवाल शपथ लेकर दिल्ली सचिवालय पहुंचे थे और सैकड़ों कैमरे बदहवासी की हालत में उनके पीछे लगे थे। तब मुझे बहुत बुरा लगा था। गुस्सा आया अपने मीडिया के सहकर्मियों पर कि हम सभ्य तरीके से काम क्यों नहीं कर सकते हैं।

सालभर बाद फिर अरविंद केजरीवाल भारी बहुमत से आए। जनता ने सवाल पूछने तक के लिए विपक्ष भी नहीं दिया, लेकिन हम अपने तरीके में बदलाव करेंगे नहीं तो पाबंदी तो झेलनी ही पड़ेगी। शनिवार को मीडिया की एंट्री बैन थी नए मीडिया सलाहकार नागेद्र शर्मा ने कहा कि सोमवार को कुछ रास्ता निकाल लिया जाएगा।

हम सड़कों से कवरेज और खबरों के लिए प्रेस नोट का इंतजार करने लगे। सोमवार शाम तक कई राउंड की बात हुई, सरकार को ये भी विकल्प दिया गया कि कैमरे से अगर दिक्कत है तो उसे मीडिया रूम तक ही सीमित कर दिया जाए। केवल मान्यता प्राप्त पत्रकार या जिनके पास मान्यता नहीं है उन्हें पास बनवाकर जाने दिया जाए। लेकिन सरकार में असमंजस की स्थिति बनी रही।

उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया जब मीडिया रूम में आए तो कुछ पत्रकारों ने उनसे चीखकर मीडिया के एंट्री बैन पर सवाल पूछा और वह शालीनता से उठकर चले गए।

बाद में नागेंद्र शर्मा ने कहा कि उनके सबसे ताकतवार मंत्री के साथ दुर्व्यवहार हुआ। अब जैसे चल रहा है, वैसे ही चलेगा मीडिया को एंट्री कतई नहीं देंगे। हमें जनता ने पांच साल के लिए जनादेश दिया है, हम उसी के प्रति जवाबदेह रहेंगे, जब वह मुझसे बात कर रहे थे तब मेरे जेहन में ब्रिटेन के एक नेता का बयान घूम रहा था, जब इराक पर हमले का मन अमेरिका और ब्रिटेन ने बनाया तब उसने इसे हूब्रिस सिंड्रोम नाम दिया था। जो बुश-ब्लेयर और शक्ति के नशे का गठजोड़ था।  

सरकार को जनता के प्रति ही जवाब देह रहना चाहिए। वैसे भी मीडिया किसी भी अच्छे काम के लिए नहीं जानी जाती है दलाली, मक्कारी और पेड न्यूज के लिए शायद ज्यादा बदनाम हो गई है। अरविंद केजरीवाल ने पिछले साल इस बात की तस्दीक करती हुई कई तकरीर भी जनता के बीच दी थी। नागेंद्र शर्मा आप ऐसे ही मीडिया पर पाबंदी रखें।

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लेकिन शायद पत्रकारिता मंत्रियों के पास बैठकर चाय पीने, मोबाइल नंबर सेव कराने, हाथ मिलाकर धन्य होने या एक्सक्लूसिव टिक-टैक भर का नाम नही है। हां, यह बात अलग है कि हम इन्हीं चश्मों से आज के पत्रकारों को ज्यादा देखते हैं। जैसे राजनीति में सादगी और ईमानदार के संकेत देकर आपने लोकतंत्र को मजबूत किया वैसे ही मीडिया के प्रवेश पर पाबंदी लगाकर आपने उन लोगों के हाथ में उस्तरा जरूर पकड़ा दिया, जो सच्चाई की गर्दनें काटने के लिए कुख्यात रहे हैं।