डोकलाम में भारतीय और चीनी सेना आमने सामने थी. पीछे से हर कूटनीतिक कोशिश की जा रही थी इस बेहद तनावपूर्ण स्थिति को सुलझाने की. ये स्थिति दो महीनों से भी ज्यादा तक बनी रही. आखिर अचानक 28 अगस्त 2017 को दोनों देशों की सेनाएं पीछे हट गईं. कहा गया कि मामला सुलझा लिया गया है. लेकिन तब से लेकर अब तक बयानों का जो सिलसिला है उससे तो यही लगता है कि स्थिति साफ होने की बजाय उतनी ही धुंधली है जितनी पहले दिन थी. सेनाओं के पीछे हटने तक वहां के विदेश मंत्रालय की तरफ से डोकलाम पर दावा जताते रहा गया. सरकारी मीडिया की तरफ से भी भारत को 1962 से सबक सीखने से लेकर सबक सिखाने तक की बातें लिखी गईं. लगभग सात महीने बीत चुके हैं और अब तक डोकलाम पर आ रहे बयानों पर लगाम लग जानी चाहिए थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं है. एक बार फिर इस पर बयानों का दौर है.
चीन में भारत के राजदूत गौतम बंबावले ने South China Morning Post को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि डोकलाम विवाद इसलिए हुआ क्योंकि चीन वहां यथास्थिति बदलने की कोशिश कर रहा था. इसका तीखा जवाब चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने दिया.
उन्होंने कहा कि डोंगलांग (डोकलाम) ऐतिहासिक तौर पर चीन का है. चीन ने वहां जो भी किया है वो अपने सार्वभौमिक अधिकारों के तहत किया है. यथास्थिति बदलने जैसी कोई बात नहीं है. पिछले साल हमने अपनी कोशिश और बुद्धिमता से ये विवाद सुलझाया था. उम्मीद है कि भारतीय पक्ष इससे सबक लेकर ऐतिहासिक परिपाटी निभाएगा और हमारे साथ काम कर निश्चित करेगा कि सीमा पर रिश्ते बेहतर हों. इससे पहले रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कह चुकी हैं जहां पर दोनों देशों की सेनाएं आमने सामने थीं उससे कुछ ही दूर चीन ने कुछ ढांचे बनाए हैं जिनमें संतरी पोस्ट, कुछ खाई और कुछ हेलीपैड शामिल हैं.
हाल में एक सवाल के जवाब में सीतारमण ने ये भी कहा कि भारत डोकलाम में किसी भी अनदेखी स्थिति के लिए तैयार है. रक्षा मंत्री के पहले रक्षा राज्यमंत्री सुभाष भामरे कह चुके हैं कि एलएसी पर स्थिति नाज़ुक है. दोनों तरफ के बयानों को देखते हुए ये ही लगता है कि हालात अभी पूरी तरह से सामान्य नहीं हुए हैं और डोकलाम पर शायद आखिरी पन्ना लिखा नहीं गया है. रिश्तों को सामान्य करने के लिए विदेश सचिव फरवरी 2018 में बीजिंग गए थे.
अब सूत्रों के मुताबिक रक्षा मंत्री अप्रैल में और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन की बैठक में चीन जाएंगी. प्रधानमंत्री मोदी भी जून में एससीओ सम्मेलन के लिए चीन जा सकते हैं जहां उनकी मुलाकात चीनी राष्ट्रपति शी जिनफिंग से भी हो सकती है. लेकिन डोकलाम को लेकर सवाल बने हुए हैं और इस पूरे विवाद की चाबी भूटान के पास है जो फिलहाल अपने पत्ते खोलने के मूड में नहीं लगता.
(कादंबिनी शर्मा एनडीटीवी इंडिया में एंकर और एडिटर फॉरेन अफेयर्स हैं)
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This Article is From Mar 27, 2018
डोकलाम पर शायद आखिरी पन्ना लिखा नहीं गया...
Kadambini Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:मार्च 27, 2018 23:40 pm IST
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Published On मार्च 27, 2018 23:40 pm IST
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Last Updated On मार्च 27, 2018 23:40 pm IST
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