काला धन का सबसे बड़ा डॉन - इलेक्टोरल बॉन्ड

सरकार आपकी हर जानकारी जान सके, इसलिए आधार-आधार कर रही है, वही सरकार राजनीतिक दलों के लिए ऐसा कानून लाती है कि चंदा देने वाले का नाम किसी को पता ही न चले. क्या आप अब भी इसे पारदर्शिता कहेंगे...?

काला धन का सबसे बड़ा डॉन - इलेक्टोरल बॉन्ड

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

सरकार के लिए पारदर्शिता नया पर्दा है. इस पर्दे का रंग तो दिखेगा, मगर पीछे का खेल नहीं. चुनावी चंदे के लिए सरकार ने बॉन्ड ख़रीदने का नया कानून पेश किया है. यह जानते हुए कि मदहोश जनता कभी ख़्याल ही नहीं करेगी कि कोई पर्दे को पारदर्शिता कैसे बता रहा है. पहले किसी राजनीतिक दल को 20,000 रुपये या उससे अधिक चंदा देने पर दाता का नाम ज़ाहिर करना होता था. राजनीतिक दलों ने एक खेल खेला. सारे चंदे को 20,000 से कम का बता दिया. चुनाव आयोग उनके झूठे दस्तावेज़ों के कबाड़ को पारदर्शिता और जवाबदेही के नाम पर ढोता रहा. हम सभी तो आज तक ढो ही रहे हैं.
 
20,000 रुपये चंदा देने वाले कानून से किसी राजनीतिक दल को कोई दिक्कत नहीं थी. राजनीतिक दल पहले भी करप्शन का पैसा पार्क करने या जमा करने का अड्डा थे, एक नए कानून के पास अगर आपके पास काला धन है तो चुपचाप किसी दल के खजाने में जमा कर दीजिए. बोझ हल्का हो जाएगा.

इसके लिए आपको बस स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की 52 शाखाओं से 1,000, 10,000, 1,00,000, 1,00,00,000 का बॉन्ड ख़रीदना होगा. आपके ख़रीदते ही आपका काला धन गुप्त हो जाएगा. अब कोई नहीं जान सकेगा. बैंक आपसे नहीं पूछेगा कि आप किस पैसे से बॉन्ड ख़रीद रहे हैं और इतना बॉन्ड क्यों ख़रीद रहे हैं. आप उस बॉन्ड के ज़रिये किसी पार्टी को चंदा दे देंगे और पार्टी उस बॉन्ड को बैंक से भंजा लेगी.
 
आप पाठकों में से कुछ तो 10वीं पास होंगे ही, इतना तो समझ ही गए होंगे कि यह पारदर्शिता नहीं, उसके नाम पर काला धन पर पर्दा है. पार्टी के नाम पर भीड़ बनाकर गाली देने, मार-पीट करने पर तो रोक नहीं है, फिर किसी को चंदा देने के नाम पर इतनी पर्दादारी क्यों हैं. आप मैट्रिक का सर्टिफिकेट ज़रूर चेक करें. वित्त मंत्रालय ने पिछले हफ्ते इस योजना की घोषणा की है. बताया है कि व्यक्ति, व्यक्तियों का समूह, एनजीओ, धार्मिक और अन्य ट्रस्ट, हिन्दू अविभाजित परिवार और कानून के द्वारा मान्य सभी इकाइयां बिना अपनी पहचान ज़ाहिर किए चंदा दे सकती हैं.
 
इस कानून के बाद 20,000 से ऊपर चंदा देने पर नाम बताने के कानून का क्या होगा...? उसके रहते सरकार कोई नियम कैसे बना सकती है कि आप बॉन्ड ख़रीद लेंगे तो 1 लाख या 1 करोड़ तक के चंदा देने पर किसी को न नाम, न सोर्स बताने की ज़रूरत होगी. खेल समझ आया...? हंसी आ रही है, भारत की नियति यही है. जो सबसे भ्रष्ट है, वह भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ने का आश्वासन देता है और हम आश्वस्त हो जाते हैं. चुनाव आयोग ने कुछ हल्ला किया है...?
 
क्या आपको पता है कि एनजीओ, धार्मिक ट्रस्ट या किसी व्यक्ति को अपना सालाना रिटर्न पब्लिक में ज़ाहिर नहीं करना पड़ता. सरकार के पास जमा होता है और वह आप नहीं जान सकते. तो ये एनजीओ किसे चंदा देंगे, पता नहीं. एक समय तक एक राजनीतिक दल लगातार आरोप लगाता था कि ईसाई मिशनरी या बाहर के संगठन विदेशों से पैसा ला रहे हैं और एनजीओ में डाल रहे हैं. भारत के लोकतंत्र को प्रभावित करने के लिए चंदा दे रहे हैं. फिर वही राजनीतिक दल इस बात को गुप्त रखने का कानून कैसे ला सकता है कि एनजीओ किसे पैसा दे रहे हैं.
 
कंपनियों को अपना हिसाब-किताब सार्वजनिक करना होता है, मगर स्क्रॉल.इन पर नितिन सेठी ने लिखा है कि उन्हें यह नहीं बताना पड़ेगा कि साल में कितना बॉन्ड ख़रीदा. अब गेम समझिए. फर्ज़ी पार्टी बनाइए. किसी से चंदा लीजिए, उसका काला धन बैंक से भंजा लीजिए और फिर ऐश कीजिए. मेले में जाकर नाचिए कि पारदर्शिता आ गई, काला धन मिट गया. राग मालकौस बजा लीजिएगा.
 
सरकार आपकी हर जानकारी जान सके, इसलिए आधार-आधार कर रही है, वही सरकार राजनीतिक दलों के लिए ऐसा कानून लाती है कि चंदा देने वाले का नाम किसी को पता ही न चले. क्या आप अब भी इसे पारदर्शिता कहेंगे...?
 
वेंकटेश नायक का कहना है कि इस बॉन्ड के ज़रिये सरकार एक नई प्रकार की मुद्रा पैदा कर रही है, जिसके ज़रिये सिर्फ किसी व्यक्ति और राजनीतिक दल के बीच लेन-देन हो सकेगा. वेंकटेश नायक Access to Information at Commonwealth Human Rights Initiative के प्रोग्राम कोर्डिनेटर हैं. राजनीतिक दलों को भी इस काम से मुक्ति दे दी गई है कि वे इस बात को रिकॉर्ड करें कि उन्हें चंदा देने वाला कौन है. इसका मतलब है कि कोई माफिया, अपराधी जो चाहे किसी भी दल को लूट का माल आंख मूंदकर दे सकता है. उसे सिर्फ बॉन्ड ख़रीदना होगा.
 
कांग्रेस सहित कुछ राजनीतिक दलों ने इस इलेक्टोरल बॉन्ड का विरोध किया है. कांग्रेस के राजीव गौड़ा का कहना है कि यह योजना सफेद पैसा, पारदर्शिता और तटस्थता तीनों पैमाने पर फेल है.
 
आप इस इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में ख़ुद भी पढ़ें. सिर्फ एक सवाल करें कि क्या नाम पहचान गुप्त रखकर करोड़ों का बॉन्ड ख़रीदकर कोई राजनीतिक दल को चंदा देता है और राजनीतिक दल उस चंदे के बारे में किसी को बताने के लिए बाध्य नहीं है, तो यह किस हिसाब से पारदर्शिता हुई. इस बारे में महान चुनाव आयोग के महान चुनाव आयुक्तों ने क्या कहा है, इसके बारे में भी गूगल सर्च कर लें.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.


Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com