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This Article is From Apr 12, 2018

ग्लोबल चुनाव आयुक्त ज़करबर्ग का शुक्रिया...

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 12, 2018 20:47 pm IST
    • Published On अप्रैल 12, 2018 20:46 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 12, 2018 20:47 pm IST
विश्व के मुख्य चुनाव आयुक्त श्रीयुत मार्क ज़करबर्ग जी ने अहसान जताते हुए कहा है कि वे यह सुनिश्चित करेंगे कि भारत और पाकिस्तान में मुक्त और तटस्थ चुनाव हों. इसके लिए सबकुछ करेंगे. मार्क ज़करबर्ग जी ने अमरीकी सिनेट में सांसदों के सवालों के जवाब में यह आश्वासन दिया है. उन्होंने कहा कि अंग्रेज़ी के अलावा दूसरी भाषाओं में नफ़रत फैलाने वाली सामग्रियों को ट्रैक करना मुश्किल है. इसीलिए भारत के सोशल मीडिया में ट्रोलिंग और अनुचित कटेंट की भरमार रहती है. ज़करबर्ग जी को उम्मीद है कि पांच से दस साल में वे ऐसा तरीका खोज लेंगे जिससे दूसरी भाषाओं के शब्दों की मंशा को पकड़ा जा सकेगा.

भारत के चुनाव आयुक्त को एक थैंक्यू नोट जल्दी भेज देना चाहिए क्योंकि फेसबुक तो उसका पार्टनर है. जहां दुनिया की संस्थाएं चुनावों में फेसबुक की साज़िशी भूमिका को लेकर सतर्क हैं वहीं भारत का चुनाव आयोग फेसबुक से करार कर चुका है. बहुत कम लोगों को पता होगा कि 2016 और 2017 में आयोग ने फेसबुक से करार किया था कि वह 18 साल के हो रहे अपने यूज़र को याद दिलाएगा कि वोटर आईकार्ड बनवाना है. ज़ाहिर है कि फेसबुक ने इसके लिए डेटा भी जमा किए होंगे. अमरीका होता तो कम से कम वहां के मीडिया में जानकार सवाल उठा रहे होते लेकिन भारत में न मीडिया का पता है औऱ न जानकारों का. होंगे भी तो मीडिया उन्हें कुछ समझता नहीं.

आप इंटरनेट पर इस बाबत कई रिपोर्ट पढ़ सकते हैं. तब फेसबुक भारत के चुनाव आयोग के लिए वह 13 भाषाओं में काम करेगा. जबकि अमरीकी संसद में फेसबुक के ज़करबर्ग ने बताया कि उनके पास अंग्रेज़ी के अलावा अन्य भाषाओं की सामग्री पकड़ने के उपकरण नहीं हैं. धंधा करना होता है तो भाषा दिक्कत नहीं है, नफ़रत की सामग्री पकड़नी होती है तो भाषा दिक्कत है.

हमारे यहां क्रैंबिज एनालिटिका को लेकर तीन नंबर की राजनीति हुई. आधे अधूरी जानकारी वाले एंकर और कुछ नहीं जानने वाले बकलोल प्रवक्ता को बिठा कर निपटा दिया गया. अमरीकी कांग्रेस में ज़ुकरबर्ग को बुलाकर सवाल तो पूछा ये और बात है कि ज़्यादातर सवाल बचकाने थे. वहां लोग लिख रहे हैं कि सांसदों ने ज़करबर्ग से दूध-भात वाले सवाल पूछे. इससे हमने सीखा कि अमरीका में व्यवस्था तो है मगर कोई अपने ग्लोबल कारपोरेशन को नुकसान पहुंचाने वाला सवाल नहीं करना चाहता था. तो उस व्यवस्था का भी एक सीमा के बाद कुछ ख़ास मतलब नहीं रह जाता है. गार्डियन में जॉन ग्रेस की रिपोर्ट पढ़ सकते हैं कि किस तरह सांसदों ने सवाल पूछने के नाम पर खानापूर्ति की है.

यूरोपीयन कमिशन के रेगुलेशन की बहुत चर्चा हो रही है. EU इस बात की जांच कर रहा है कि सोशल मीडिया से नफ़रत फैलाने वाली बातों को कैसे हटाया जाए. सख़्त कानून तो एक विकल्प है लेकिन क्या कोई दूसरा तरीका भी हो सकता है. EU के उपभोक्ता एवं न्याय मामलों की कमिश्नर Věra Jourová ने कहा है कि वे फेसबुक के चीफ आपरेटिंग ऑफिसर से भी पूछताछ करने वाली हैं क्योंकि पिछले हफ्ते कंपनी ने अतीत की ग़लतियों और भविष्य की योजनाओं को लेकर कुछ सवालों के जवाब नहीं दिए थे. हेट स्पीच यानी भड़काऊ और नफ़रत फैलाने वाली बातों के लिए आचार संहिता बनाने की ज़रूरत है.” ज़करबर्ग ने अमरीकी सिनेट में कहा है कि फेसबुक 2018 के अंत तक 20,000 लोगों की टीम बनाएगा जो ऐसे कंटेंट की समीक्षा करेंगे.

म्यानमार और श्रीलंका में नफ़रत फैलाने वाले संदेशों को लेकर फेसबुक पर काफी सवाल उठ रहे हैं. ज़करबर्ग ने भी माना है कि म्यनमार में जो हो रहा है वो दुखद है. हम बर्मी भाषा के जानकारों को नौकरी पर रखेंगे ताकि ऐसे कंटेंट पर नज़र रखी जा सके. जर्मनी में तो कानून बन गया है कि अगर आप हेट स्पीच नहीं हटाएंगे तो कंपनी को लाखों डॉलर का फाइन देना होगा. मगर EU इसके पक्ष में नहीं है. उसकी कमिश्नर Jourová का कहना है कि भड़काऊ बातों को हटाने और सेंशरशिप में बहुत कम अंतर है इसलिए जर्मन कानून को लेकर वे बहुत उत्साहित नहीं हैं. उन्होंने कहा कि फेसबुक पर नफ़रत भरी बातें भर गई हैं, इस कारण उन्होंने अपना फेसबुक अकाउंट बंद कर दिया है.

भारत के आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद तो 'गब्बर सिंह मैं आ रहा हूं' टाइप का बयान देकर फारिग हो गए. फेसबुक ने एक पत्र भेज दिया और खुश हो गए सब. क्या भारत को भी ज़करबर्ग को बुलाकर सवाल नहीं करना चाहिए था. इससे लोगों में भी समझ बनती और हेट स्पीच को लेकर बहस होती. दिक्कत यह है कि सत्ता को पता है कि हेट स्पीच फैलाने वाले कौन हैं. माध्यम के रूप में फेसबुक का भले इस्तमाल हो रहा हो मगर यह नहीं भी होता तो हाथ में तलवार, फरसा लेकर दूसरे समुदाय को धमकाने और नारे लगाने से कौन रोक सकता है. वो तो आज भी फेसबुक के बाहर जारी है.

इंडियन एक्सप्रेस के प्रणव मुकुल की रिपोर्ट आप पढ़ लीजिएगा. भारत में पैसे चुकाने वाले कई एप हैं. PAYTM, TEZ, UPI PIN, PHONEPE, AMAZON PAY जैसे कई एप हैं जिनकी शर्तों को आप पढ़े और समझे बिना मान लेते हैं. ये लोग आपका डेटा जैसे बैंक अकाउंट, क्रेडिट कार्ड, बैलेंस, लेन-देन का रिकार्ड, निजी डेटा, लोकेशन सहित पासवर्ड तक तीसरी पार्टी के साथ साझा कर देते हैं. अमरीकी सांसद ने पूछा कि क्या आम लोग आपकी शर्तों को समझ पाते हैं तब फेसबुक के ज़करबर्ग ने कहा कि आम लोग नहीं समझ पाते हैं. इसका यही उपाय है कि किसी भी एप को पर्सनल डेटा जमा करने या किसी के साथ साझा करने की अनुमति ही न हो. बात ख़त्म.

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