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This Article is From Jun 26, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : अपनों को हत्यारा बनाने से पहले संभल जाइये!

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 28, 2017 19:37 pm IST
    • Published On जून 26, 2017 22:02 pm IST
    • Last Updated On जून 28, 2017 19:37 pm IST
उम्मीद है आपके भीतर रेल चलने लगी होगी. रेल की आवाज़ के साथ आपकी सांसों ने आपसे कुछ कहा होगा कि जो हो रहा है वो ठीक नहीं है. भीड़ को राजनैतिक मान्यता मिलने लगी है. औपचारिकता के नाम पर दो तीन दिन बीत जाने के बाद निंदा जैसा बयान आता है. फिर उसके कुछ दिन बाद भीड़ किसी और को मार देती है. आप सोच रहे हैं कि इससे हमारा क्या, लेकिन आप यह नहीं देख रहे हैं कि एक को मारने के लिए आपके ही अपने हत्यारे बन रहे हैं. इस भीड़ का एक राजनैतिक समर्थन है क्योंकि जो ज़हर इस भीड़ को उकसाता है, वो किस फैक्ट्री में पैदा हो रहा है, आप देखना चाहेंगे तो आराम से दिख जाएगा. नहीं देखना चाहेंगे तो कोई बात नहीं, पर आपका ही कोई किसी भीड़ में जाकर किसी को मार आएगा. इसलिए अपनों को हत्यारा बनाने से पहले संभल जाइये. भारत में लोग मिलकर लोग को मारते रहे हैं. कभी औरतों को डायन बता कर मार दिया तो कभी किसी को चोरी के आरोप में पकड़ कर मार दिया. हमारे भीतर जो हिंसा हज़म हुई होती है, वो किसी न किसी रूप में उल्टी करके बाहर आ जाती है. एक के झगड़े में कई लोग शामिल होते हैं और फिर उसकी हत्या कर दी जाती है. दिल्ली शहर में रोड रेज एक मानसिक बीमारी तो है ही. ज़रा सी कार में ख़रोंच आई नहीं कि लोग उतर कर कॉलर पकड़ लेते हैं. ये जो आग है, जिसे कुछ लोग चिंगारी बता रहे हैं, धुआं बता रहे हैं, दरअसल आपको धोखा दे रहे हैं. उन्हें आपके लोग चाहिए. भीड़ हवा से नहीं बनती है. आपके बच्चों को बहकाया जाएगा, तरह तरह के झूठे ऐतिहासिक तथ्य गढ़े जायेंगे तब जाकर वो किसी आग में कूदेगा. आपका बच्चा एक घटिया राजनीति के काम आ रहा है. वो हत्यारा बन रहा है. जो हत्या में शामिल है वो तो बन ही रहा है और जो इस हत्या पर चुप्पी का बहाना खोज रहे हैं दरअसल वो भी भावी हत्यारा बनने की तैयारी में हैं. ख़ुद को बचा लीजिए. अपने को इस भीड़ से अलग कर लीजिए.

पश्चिम बंगाल के इस्लामपुर में तीन लोगों को भीड़ ने मार दिया. गांव वालों को लगा कि कुछ लोग गाय के बाड़े के बाहर खड़े हैं वो पशु चोर हो सकते हैं. बस हल्ला करने लगे और भीड़ ने उन तीनों को घेर लिया. 15 लोगों की भीड़ ने समीरुद्दीन, नसीरुल, नारिस को घेर कर मार ही दिया. ये 24 जून की घटना है. 9 जून को राजस्थान के बाड़मेर में तमिलनाडु के पशुपालन विभाग के कर्मचारी 50 गाय बछड़ों को खरीद कर अपने राज्य लौट रहे थे. इनके पास तमाम काग़ज़ात थे, ज़िलाधिकारी तक को सूचना थी, इसके बाद भी 50 लोगों की भीड़ इन्हें घेर लेती है और सबको मारती है. ट्रक में आग लगा देती है. ड्राईवरों को मारती हैं. बाला बुरुमगन, करुपैय्या, एन अरविंद राज जो अधिकारी आए थे, उनकी जम कर पिटाई होती है. यही नहीं, गाय के नाम पर इनका हौसला इतना बढ़ गया है कि पुलिस पर पथराव भी करते हैं और तीन घंटे तक नेशनल हाईवे जाम भी करते हैं. 9 जून को ही झारखंड के चतरा में एक पुलिसवाला 19 साल के सलमान को घर से निकालता है और गोली मार देता है. सलमान की मां पूछती रही कि क्या बात है, लड़के ने क्या किया है मगर वो पुलिस वाला सलमान को मार देता है. श्रीनगर के मस्जिद के बाहर डीएसपी अय्यूब पंडित को भीड़ मार देती है. जिस भीड़ को वो बरसों से जानते थे मगर लोगों ने उनकी वर्दी उतारी और पीट पीट कर मार दिया. आप नाम से देख लीजिए, धर्म से देख लीजिए, शहर से देख लीजिए, जैसे मन वैसे देख लीजिए, मगर आपको हर जगह एक भीड़ दिखेगी जो किसी को भी मार सकती है. किसी का भी ख़ून कर सकती है.

बहुत लोग कहते हैं कि ये सामान्य घटनाएं हैं. हो सकता है कि उन्हें सामान्य नज़र आती हों मगर सरेआम किसी को मार देना सामान्य घटना नहीं है. यह एक मानसिक बीमारी है जो राजनीतिक कारणों से पनप रही है. गाय के नाम पर मारने का यह हौसला बच्चा चोरी के नाम पर उत्तम और गंगेश कुमार की भी जान ले लेता है. तमिलनाडु के करुपैय्या और एन अरविंद राज को भी घायल कर देता है. अब यह भीड़ सबके ख़िलाफ़ है. मगर इसका एक पैटर्न है. ज़्यादा लोग वो मारे जा रहे हैं जो मुसलमान हैं. अलवर के बाद इतना हंगामा हुआ मगर फिर भी घटनाएं रुक नहीं रही हैं. राजस्थान में ही जून के महीने में कई घटनाएं हो चुकी हैं. सरकार में जो बैठे हैं उन्हें निंदा करने में वक्त लग जा रहा है.

तीन तीन दिन गुज़र जा रहे हैं फिर भी कोई निंदा तक नहीं करता है. हम और आप सब जानते हैं कि अभी तक ऐसी किसी भीड़ को ठोस सज़ा नहीं हुई है. इसलिए भीड़ का हौसला बढ़ता जा रहा है. ये भीड़ मुसलमान को मारने के नाम पर हिन्दु नौजवानों को हत्यारा बना रही है. हत्या का खून ऐसे सवार हो रहा है कि फिर वो भीड़ उत्तम और अरविंद को भी माफ नहीं करती है. इसिलए जाग जाइये. आपके बच्चे जिस समाज में यह देखते हुए बड़ें हो रहे हैं, जहां हत्या की निंदा नहीं होती है, मरने वाले का धर्म देखकर चुप रहा जाने लगा है, वहां आपके बच्चे का भविष्य सुरक्षित नहीं है. वही सुरक्षित नहीं है. मज़हब के नाम पर भीतर भीतर जो ज़हर बोया जा रहा है उसे आप भी फैला रहे हैं. याद कीजिए कितनी बार ऐसे ज़हरीले मैसेज को आपने व्हाट्सऐप में फार्वर्ड किया होगा. उससे मिला क्या. कौन सा गौरव गान हो गया कौन सा भारत महान हो गया. एतराज़ और आपत्ति लोकतंत्र की बुनियाद हैं मगर इसे तोड़ने के लिए बात बात में हत्याएं होने लगेंगी तो ये सिलसिला इतनी आसानी से नहीं रुकेगा. आप देख सकते हैं कि जब भी भीड़ किसी को मारती है उनके यहां कौन कौन नहीं जाते हैं. कौन कौन मंत्री नहीं जाते हैं. इसी से आपको पता चल जाएगा कि इन हत्याओं को लेकर राजनीतिक वर्ग में या तो उदासीनता है या समर्थन के नाम पर चुप्पी.

मध्य प्रदेश के बुरहानपुर ज़िले के मोहाद गांव में 15 युवकों पर देशोद्रोह का मामला दर्ज किया गया. दो दिन बाद सबूतों के अभाव में देशद्रोह का मामला हटाना पड़ा क्योंकि जिस सुभाष कोली के नाम से शिकायत दर्ज की गई थी, उसी ने कहा कि वो तो गांव में ही नहीं था, तो उसके नाम से 15 लोगों की ज़िंदगी कैसे ख़राब हो सकती है. सुभाष ने कोर्ट में बकायदा हलफनामा देकर कहा है कि पुलिस ने 15 युवकों के खिलाफ झूठा केस गढ़ा है. यही हिन्दुस्तान की ताकत है. कोई न कोई सुभाष पैदा हो जाता है. वो सच बोलने लगता है. मगर अभी भी वो 15 नौजवान जेल में बंद हैं. गांव वालों का भी कहना है कि अपनी क्रिकेट टीम है जिसका नाम है टारगेट है. उसमें हिन्दू मुस्लिम साथ-साथ खेलते हैं. ऐसे में पुलिस के इस आरोप से समाज में दरार पैदा हो रही है. आप देख रहे हैं समाज से आवाज़ आने लगी है. एक ज़हर है, जिसे समाज में फैलाया जा रहा है. चैनलों के ज़रिये या फिर व्हाट्सऐप के ज़रिये. इस ज़हर से कभी भी कहीं भी भीड़ बन सकती है. यह भीड़ हमारे दायीं ओर भी है और बायीं ओर भी. जवाब देने का अगर यही चलन है कि भीड़ की ताकत का प्रदर्शन हो तो फिर ऐसी रेल अभी और चलेगी. हमारी छाती पर, आपकी छाती पर...और शायद इस धरती की छाती पर. ज़हर का जादू फैला हुआ है, सुना है शहर में कोई जादूगर आया है.

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