विज्ञापन
This Article is From Apr 15, 2015

सुशील महापात्रा : तिल-तिल मरता किसान

Sushil Kumar Mohapatra
  • Blogs,
  • Updated:
    अप्रैल 15, 2015 09:52 am IST
    • Published On अप्रैल 15, 2015 09:46 am IST
    • Last Updated On अप्रैल 15, 2015 09:52 am IST

"जय जवान, जय किसान"... यह नारा भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने दिया था। इस नारे के जरिये समाज में वह एक संदेश पहुंचाना चाहते थे कि किसान और जवान देश की दिशा और दशा तय करते हैं, अगर ये नहीं होंगे तो देश की दुर्दशा हो जाएगी। जहां जवान देश की रक्षा करता है, वहीं किसान खेती के जरिये देश को दाना देता  है। अगर किसान नहीं होगा, तो हम सब अपने आपको एक ऐसे कोने में पाएंगे जहां हाथ में पैसा होगा, लेकिन दाना नहीं...

आज हम जब "जय किसान" का नारा सुनते हैं, तो कुछ अजीब सा लगता है। आज किसान की जय नहीं, बल्कि पराजय हो रहा रही है। किसान भूखा और भावुक है। फसल बर्बाद होने की वजह से किसान आत्महत्या कर रहे  हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ महीनों में 100 से भी ज्यादा किसान खुदकुशी कर चुके हैं। महाराष्ट्र, पंजाब, आंध्र प्रदेश और देश के दूसरे हिस्सों से भी किसानों की आत्महत्या की खबरें लगातार मिल रही हैं।

वैसे तो मीडिया में किसानों की आत्महत्याओं की बातें आती रहती हैं, लेकिन मीडिया को इस मुद्दे को लेकर जितना गंभीर होना चाहिए, वह शायद नहीं है। राजनेताओं की लड़ाई में किसान का जो असली मुद्दा है, वह छुप जाता है। किसानों की बाइट कम और राजनेताओं की ज्यादा दिखाई जाती है। टीवी चैनलों पर किसानों के मुद्दे पर जब बहस होती है, तो खिड़की में किसान नहीं, राजनेता नज़र आते हैं।

राजनेता भी किसानों को लेकर बस अपने तरीके से 'गंभीर' नज़र आ रहे हैं। कोई रैली के जरिये किसानों का मुद्दा उठाने की कोशिश कर रहा है, तो कोई मुआवजे की बात कर रहा है। प्रधानमंत्री जी खुद भी किसान के लिए गंभीर नजर आ रहे हैं। 'मन की बात' से लेकर राजनीति के मंच तक किसान की बात कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने किसानों के लिए मुआवज़ा भी बढ़ा दिया है, जो अच्छी बात है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह मुआवजा किसानों तक पहुंच पाता है। अगर पहुंचता है, तो कितना पहुंचता है। पिछले ही दिनों ऐसी खबरें आईं कि उत्तर प्रदेश के कुछ इलाक़ों में किसानों को मुआवजे के रूप में 50 से लेकर 200 रुपये तक के चेक दिए जा रहे हैं। जरा सोचिये ये मुआवजा है या किसानों के साथ मजाक। अगर ऐसा ही हाल रहा, तो चाहे कितना भी मुआवज़ा बढ़ा दिया जाए, किसानों का हाल कभी सुधरने वाला नहीं है।

मैं भी गांव से आता हूं। जानता हूं कि किसान अपनी खेती से कितना प्यार करता है। सुबह से लेकर शाम तक खेती में लगा रहता है। जब भी प्राकृतिक विपदा आती है, किसान भयभीत हो जाता है। रात भर उनको परेशान होते हुए देखा है। अगर बाढ़ आने वाली है तो पानी को खेतों तक पहुंचने से कैसे रोका जाए, इसको लेकर किसान मशक्कत करता रहता है। अगर चक्रवात का अंदेशा हो, तो वे रात भर रेडियो सुनते हैं कि आंधी कहां तक पहुंची, कितना नुकसान करेगी। जरा सोचिये जब किसानों की फसलें बर्बाद होती होंगी, तो उन पर क्या बीतती होगी।

किसानों की आत्महत्या कोई नई बात नहीं है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 1995 से लेकर 2013 तक 2 लाख 96 हज़ार 438 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। यह कोई छोटा आंकड़ा नहीं है। 2014 की रिपोर्ट नहीं आई है, लेकिन 2013 में 11,772 किसानों ने आत्महत्या की, जबकि 2012 में 13,754 किसानों ने अपनी जान दे दी। 2014  और 2015 में ये आंकड़े और अधिक हो सकते हैं। भारत में जितनी भी आत्महत्याएं होती हैं, उनमें   करीब 11 प्रतिशत किसान होते हैं।

राजनेता किसान को लेकर बात तो करते हैं, लेकिन किसानों के पास कोई पहुंचता नहीं है। भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर भी किसान परेशान हैं। राजनैतिक दल इस कानून को लेकर एक-दूसरे को घेर रहे है। कांग्रेस किसानों के जरिये अपनी ज़मीन बनाने में लगी है, तो बीजेपी भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर किसानों की किस्मत बदलने की बात कर रही है। लेकिन जिसके लिए कानून बना है, उसकी हालत में कोई सुधार नहीं है। सिर्फ राजनीति हो रही है।

नितिन गडकरी, सोनिया गांधी और अन्ना हज़ारे को भूमि अधिग्रहण कानून पर खुले मंच पर बहस के लिए चुनौती दे चुके हैं। सोनिया गांधी भी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। जो चीजें वो अपनी पार्टी के शासन के दौरान 10 सालों में नहीं कर पाईं, वे अब कर रही हैं और किसानों के साथ खेतों में खड़ी नजर आ रही हैं। अगर नितिन गडकरी किसानों की समस्या को लेकर इतना गंभीर हैं तो उनको पहले किसानों के पास पहुंचना पड़ेगा और किसानों को इस कानून के बारे में समझाना पड़ेगा। नितिन गडकरी जिस राज्य से आते हैं, उस राज्य में सबसे ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है। महाराष्ट्र में  2013 में 3,146 किसानों ने अपनी जान दे दी थी।

क्या सच में हम सभी किसानों की समस्या को लेकर गंभीर हैं? हो सकता है, मैं भी नहीं हूं। मेरे लेख में किसानों के सारे मुद्दे सामने नहीं आए होंगे, लेकिन मुझसे ज्यादा उन लोगों को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए, जो किसानों को लेकर अपनी किस्मत चमकाना चाहते हैं, सुबह से लेकर शाम तक इस मुद्दे पर राजनीति करते रहते हैं। किसानों का मुद्दा उस दिन हल हो सकता है, जब सभी राजनैतिक दल सच में इस मुद्दे पर राजनीति करने की बजाय एकजुट होकर किसानों के हक की लड़ाई लड़ेंगे।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
किसानों की खुदकुशी, किसानों की आत्महत्या, किसानों की परेशानी, फसल बर्बाद, भूमि अधिग्रहण अध्यादेश, जमीन अधिग्रहण कानून, Farmers Suicide, Farmers Conditions, Crops Destroyed, Land Acquisition Ordinace
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com