सोशल मीडिया में एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें एक टीवी एंकर अपने आप को मोदी मीडिया कह रहा है. एनडीए की जीत के बाद एक एंकर तो गेस्ट को लेकर स्टूडियो में भागने लगा कुछ एंकर फेसबुक लाइव भी करना शुरू कर दिए. ऐसा लग रहा है जैसे पीएम नरेंद्र नहीं बल्कि कोई पत्रकार बनने जा रहा है. यह सब नौटंकी इसीलिए हुआ क्योंकि सरकार के प्रति सब अपना प्यार इजहार करना चाहते थे. पत्रकारों के बीच एक प्रतिस्पर्धा भी है की सरकार के प्रति सबसे ज्यादा वफादार कौन है? कई पत्रकारों ने मंत्री और नेताओं से भी बात की होंगे, यह भी कह रहे होंगे कि देखिए हमने आप का साथ दिया और आप की पार्टी जीत गई. इन पत्रकारों ने एक बार फिर साबित कर दिए उनकी पत्रकारिता के ऊपर जो सवाल उठाया जा रहे थे वो सही साबित हो रहे हैं.
ऐसी सोच पत्रकारिता को खत्म करती है. किसी भी पार्टी की हार या जीत पर पत्रकार को खुश या दुखी नहीं होना चाहिए. पत्रकार को अपना काम करना चाहिए. पत्रकार का काम लोगों की समस्या पर ध्यान देना, लोगों की समस्या दिखाना है, न की किसी पार्टी की गोद में बैठ जाना. इस देश में कुछ ऐसे पत्रकार भी हैं जो सरकार की हमेशा आलोचना करते हैं, कुछ लोगों को यह अच्छा नहीं लगता है. इन पत्रकारों को गाली दी जाती है. परेशान किया जाता है. कई लोग यह भी कहते हैं कि यह पत्रकार सरकार की तारीफ क्यों नहीं करते. पत्रकार का काम सरकार की तारीफ करना नहीं है चाहे किसी भी पार्टी की सरकार हो. पत्रकार का काम है सवाल करना लोगों की समस्या को सामने रखना है. पत्रकारों को उस दिन सरकार की तारीफ करनी चाहिए जिस दिन सभी समस्या खत्म हो जाये.
अगर देश मे 90 प्रतिशत लोग खुश है और 10 प्रतिशत दुखी हैं तो इन दुःखी लोगों के लिए पत्रकारों को आवाज उठानी चाहिए. सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो, पत्रकारों को आवाज उठानी चाहिए. पत्रकारिता किसी पार्टी के प्रति प्यार या नफरत से तय नहीं होना चाहिए. लेफ्ट राइट सेन्टर में पत्रकार को सेन्टर में रहना चाहिए. बीच मे रहकर बाएं और दाहिने दोनों तरफ नजर रखना चाहिए. पत्रकार अगर सेन्टर छोड़कर लेफ्ट या राइट हो जाएगा तो फिर पत्रकारिता नहीं कर पायेगा.
भारत में पत्रकार बंट गए हैं. अलग-अलग खेमे के पत्रकार है. पत्रकारिता वहीं से शुरू होती है. अलग-अलग खेमे के पत्रकार अपनी सुविधा के हिसाब से पत्रकारिता करते हैं. एक खेमे के पत्रकार सरकार की आलोचना करते हैं तो दूसरे खेमे के पत्रकार सरकार की तारीफ करने लगे जाते हैं. कई लोग इसे बैलेंस कहते हैं. यह बैलेंस नही बल्कि अपने साथी पत्रकार को गलत साबित करने की कोशिश होती है. जब तक एक दूसरे को नीचा दिखाने का स्वभाव नहीं जाएगा तब तक पत्रकारिता आगे नहीं बढ़ सकती. कई पत्रकार टीआरपी को अपना सफलता मानते हैं. शो में अगर ज्यादा टीआरपी आती है तो उसी का हवाला देते हैं. कुछ पत्रकार तो शो के दौरान कितने ट्वीट हुए, उसको भी फ्लैश करते हैं. इस लेवल तक पत्रकारिता गिर गई है.
भारत मे पत्रकार सरकार से सवाल क्यों नहीं कर पाते? सवाल करना सिर्फ कुछ पत्रकारों तक सीमित क्यों रह गया है. अमेरिका में तो पत्रकार राष्ट्रपति ट्रंप पर सवाल पर सवाल लाद देते हैं. ऐसा भारत को क्यों नहीं देखने मिलता है. 2018 में जब ट्रंप ने प्रेस को लोगों का दुश्मन बताया था तब 300 से भी ज्यादा अखबारों और पत्रिकाओं ने इसके खिलाफ संपादकीय लिखने की बात कही थी. लेकिन क्या ऐसा भारत मे संभव है? भारत में टीवी चैनल और अखबार पार्टी के हिसाब से खबर को आगे बढ़ाते हैं. पत्रकारों को हमेशा दायरे में रहना चाहिए. पत्रकारिता के बारे में सोचना चाहिए. क्या भारत में पत्रकार भ्रष्ट नहीं है, भ्रष्टाचार नहीं करते लेकिन पत्रकारों के ऊपर कौनसी संस्था नजर रखती है. पत्रकारों की कमाई कितनी है उस पर कौन नज़र रखता है? पत्रकारों को किस-किस तरह की पोस्ट दी जाती है, कमेटी में सदस्य बनाया जाता है तो इस सब पर बात होनी चाहिए.
आजकल टीवी पत्रकारिता का लेवल बहुत गिर गया है. लेकिन हमारा दर्शक उसी गिरे हुए लेवल को उठाकर दिल से लगा देता है, उसी को देखता है फिर हमारे पत्रकार कहते हैं देखिए टीआरपी आ गई. रोज ऐसे-ऐसे मुद्दे पर बहस की जाती है, जिसका कोई मतलब नहीं. ऐसे मुद्दे से न समाज को फायदा होता, न सरकार को. लेकिन फिर बहस जारी रहती है. कुछ गेस्ट बैठकर ज्ञान देते रहते हैं. शाम को पाउडर लगाकर, कोर्ट टाई पहनकर स्टूडियो में बैठ जाने से एंकर पत्रकार नहीं बन जाते. एंकरों को अपनी सोच बदलनी पड़ेगी. ग्राउंड पर उतरना पड़ेगा, ग्राउंड रिपोर्ट करनी पड़ेंगी, लोगों की समस्याओं को दिखाना पड़ेगा.
इस बार एनडीए ने शानदार प्रदर्शन किया है. इस शानदार प्रदर्शन के पीछे पीएम मोदी की मेहनत छिपी है. एनडीए की टीम में कई ऐसे पत्रकार भी थे, अभी भी है जो खुलकर सरकार के लिए बल्लेबाजी कर रहे हैं. उन सभी बल्लेबाज़ों को बहुत बहुत बधाई, आप सभी ने अपने टीम के लिए अच्छी बल्लेबाजी की लेकिन दुख की बात यह है कि आप 'मैन ऑफ द मैच' नहीं बन पाए. 'मैन ऑफ द मैच' तो मोदी जी बने. सरकार उनकी बनी. अभी भी समय है आप पत्रकारों की टीम में वापस आ जाएं. पत्रकारिता के लिए बल्लेबाजी कर लें या फिर पत्रकारिता छोड़कर राजनीति में पूरी तरह ज्वाइन कर लें.
सुशील मोहपात्रा NDTV इंडिया में Chief Programme Coordinator & Head-Guest Relations हैं
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