दुनिया की हर राजनीतिक व्यवस्था का एक ही लक्ष्य होता है कि उसकी जनता या प्रजा की खुशहाली बढ़े या बदहाली कम हो. लोकतांत्रिक व्यवस्था तो इसी मकसद से ईजाद हुई थी कि उसके सभी नागरिकों की खुशहाली सुनिश्चित हो सके. हर सरकार बदहाली कम करने का नारा लेकर आती है. मौजूदा सरकार इस मामले में कुछ अलग नारा लेकर आई थी, अच्छे दिन या खुशहाली ला देने का नारा. हालांकि, खुशहाली का मापने का विश्वसनीय पैमाना किसी ने नहीं बना पाया. इसीलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र ने पूरी दुनिया के अलग अलग देशों में खुशहाली को आंकना शुरू किया. छह साल से संयुक्त राष्ट्र हर साल इस तरह का आकलन करवा रहा है और बाकायदा एक सूचकांक के जरिए एक रिपोर्ट बनती है जो यह बताती है कि किस देश में खुशहाली का क्या स्तर है. इस साल का यह विश्व खुशहाली सूचकांक दो दिन पहले ही जारी हुआ है. चौंकाने और बुरी तरह से झकझोर देने वाली बात यह है कि दुनिया कि 156 देशों में हमारे देश की खुशहाली का नंबर 133वां आया है. यानी औसत से बहुत ही नीचे. पिछले साल से भी 11 नंबर नीचे. इस विश्व रिपोर्ट ने हमें डेढ़ सौ देशों के बीच सबसे बदहाल 25 देशों के संग बैठा दिया है. इस तरह हमारे लिए तो खुशहाली की बजाए हमारी बदहाली का स्तर बताती हुई आई है ये विश्व खुशहाली रिपोर्ट. बीस मार्च विश्व खुशहाली दिवस है. इस दिवस पर अपनी खुशहाली की समीक्षाएं होंगी. क्या हमें इस मामले में इस साल के अपने सूचकांक की समीक्षा नहीं करनी चाहिए?
ऐसे सूचकांक की नई व्यवस्था क्यों बनानी पड़ी थी
खुशहाली सूचकांक की व्यवस्था के पहले दुनिया में किसी देश की खुशहाली को उसके मानव विकास सूचकांक यानी एचडीआई से मापा जाता था. साथ में एक संकेतक सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी को माना जाता था. लेकिन यह पाया गया कि एचडीआई या जीडीपी का आंकड़ा उस देश की जनता की वास्तविक खुशहाली बता नहीं पाता. यानी किसी देश में थोड़े से लोगों की ताबड़तोड़ अमीरी बढ़ने से जीडीपी तो बढ़ती हुई दिखती थी लेकिन उसके औसत नागरिक के दुख कम होते नहीं दिखते थे. इसीलिए उसे देख के नागरिक की औसत आर्थिक, स्वास्थ्य व शिक्षा की स्थिति और प्रति व्यक्ति उर्जा की खपत की बजाए दूसरे संकेतकों पर भी गौर करना शुरू किया. आज किसी देश की खुशहाली को मापने की यह जो व्यवस्था है उसमें 20 से ज्यादा संकेतकों पर गौर किया जाता है. इनमें उस देश में उत्पादक कार्यों में लगे लोग यानी रोज़गार की स्थिति, सामाजिक उदारता, भ्रष्टाचार का स्तर और पर्यायवरणीय स्थिति जैसे संकेतक भी शामिल हैं. इसीलिए 2018 की विश्व खुशहाली रिपोर्ट में हमारा सूचकांक सनसनीखेज रूप से दुखद स्तर पर नीचे पहुंचा दिख रहा है. मुख्य संकेतक जीडीपी के मामले में भी हमारा ठहराव बल्कि कुछ गिराव भी जरूर एक बड़ा कारण बना होगा. आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि देश की आधी से ज्यादा आबादी यानी किसानों की बदहाली और करोड़ों युवाओं की बेरोज़गारी ने अप्रत्यक्ष रूप से हमारी खुशहाली के सूचकांक को इस हद तक गिराया होगा.
हमारा यह सूचकांक ज़्यादा गौरतलब है क्यों?
इसका सीधा सा जवाब यह है कि इस समय हम अपनी उभरती हुई अर्थव्यस्था का कुछ ज्यादा ही प्रचार कर रहे थे. विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए पूरी दुनिया में अपने खुशहाल होने का प्रचार हमें करना पड़ रहा था. लेकिन इस खुशहाली सूचकांक ने दुनिया में हमारी छवि को भारी चोट पहुंचा दी. इधर देश की सरकार के लिए भी राजनीतिक तौर पर इससे बड़ी दिक्कत खड़ी हो गई. क्योंकि मौजूदा सरकार का कार्यकाल समाप्त हो रहा है. उसे दुबारा सत्ता हासिल करने के लिए अपनी उपलब्धियां गिनाना शुरू करना है. चूंकि मौजूदा सरकार ने सत्ता में आने के लिए अच्छे दिन लाने यानी खुशहाली लाने का नारा दिया था सो इस सूचकांक ने चुनाव प्रचार में खुशहाली ला देने की उपलब्धि वाले प्रचार को संदिग्ध बना दिया. लिहाज़ा खुशहाली सूचकांक पर ग़ौर होना लाज़िमी है.
अपनी छवि बचाने का तरीका क्या है हमारे पास
एक पारंपरिक तरीका है कि किसी तरह इस सूचकांक को ही संदिग्ध बना दें. दरअसल संयुक्त राष्ट खुद यह आकलन नहीं करता. बल्कि वह एक स्वतंत्र सर्वेक्षण एंजसी से यह काम करवाता है. लिहाज़ा अपने देश की छवि के बचाव में हम यह कहना शुरू कर सकते हैं कि इस एजेंसी की सर्वेक्षण पद्धति में ही खोट है. हालांकि इस तरीको को अपनाने में दिक्कत यह है कि सर्वेक्षण पर संदेह जताने का मतलब उस विश्व संस्था पर भी आरोप लगाना होगा जिसके हम भी सदस्य हैं और फिर किसी शोध या सर्वेक्षण पद्धति को दोषपूर्ण बताने के लिए तर्क और अपने पक्ष में नए आंकड़ों की जरूरत पड़ेगी. अफसोस की बात ये है कि अपने विद्वानों को इस समय हमने एक कोने में बैठा रखा है. ऐसी मुश्किल से वे विद्वान ही हमें हमें बचा सकते थे.
अपनी खुद की खुशहाली रिपोर्ट बनाने में भी हीला-हवाली
देश में जब मौजूदा सरकार सत्ता में आई थी, लगता है तभी सरकार ने अंदेशा भांप लिया था. शायद इसीलिए कुछ प्रदेशों में बकायदा खुशहाली मंत्रालय बनाने का फैसला हुआ था. मसलन मप्र और कुछ राज्यों में खुशहाली मंत्रालय बन भी गए थे. लेकिन ज्यादा सुनने में नहीं आया कि प्रदेशीय खुशहाली मंत्रालयों ने कुछ उल्लेखनीय काम कर पाया हो. हो सकता है कि वे मानकर चलते हों कि जरूरत पड़ने पर प्रचार माध्यमों के जरिए अपनी अपनी खुशहाली बढ़ने का प्रचार आसानी से किया जा सकता है. लेकिन इधर हर प्रदेश के हर विभाग से अपनी उपलब्धियों का प्रचार इतना ज्यादा बढ़ गया है कि इसके अतिरैक्य से उसका असर ही खत्म हो चला है. अखबारों में पूरे पेज के विज्ञापनों का यह आलम है कि उस पेज पर पाठक नज़र तक नहीं डालता. टीवी विज्ञापन के समय दर्शक एक चैनल से दूसरे चैनल पर जाने लगे हैं. बात विषय से हटकर जरूर है लेकिन इसे दर्ज कराने का यह अच्छा मौका है कि सरकारी विज्ञापनों से लोगों को अरुचि होने लगी है. यह सब अतिरैक्य के कारण ही समझा जाना चाहिए. प्रबंधन प्रौद्योगिकी की भाषा में इसे ओवर विज़िबिलिटी कहते हैं. इसकी घातकता को हम आजकल ज्यादा ही महसूस कर रहे हैं.
छविनाश से बचाब का एक और तरीका है
एक ये तरीका है कि हम अपने को संतोषी बताने का प्रचार करने लगें. अपने देसी ज्ञान परंपरा में संतोषधन का बड़ा महिमामंडन है. अपनी कैसी भी बदहाली की हालत में संतोष अनुभव करने का यह धर्मोचित सुझाव इस समय काम का साबित हो सकता है. लेकिन इस तरीके में भी एक लोचा यह है कि संतोषधन भी न्यूनतम जरूरत पूरी होने के बाद ही संभव हो पाता है. जिस तरह से दुनिया के बदहाल देशों में कुपोषण यानी सबको पर्याप्त अनाज तक उपलब्ध न हो पा रहा हो उस स्थिति में संतोष धन का सुझाव बिक नहीं पाएगा. कुल मिलाकर अपनी बदहाली उजागर होने के बाद आखिरी उपाय यही बचता है कि संयुक्त राष्ट्र की इस विश्व खुशहाली रिपोर्ट का अपनी तरफ से ज्यादा जिक्र ही न करें. रही बात विश्व खुशहाली दिवस मनाने की, तो देश और प्रदेश के लगभग हर विभाग के पास अपने अपने क्षेत्रों में खुशहाली बताने वाले आकर्षक विज्ञापनों का ढेर उपलब्ध है. विश्व खुशहाली दिवस मनाने में ये विज्ञापन खूब काम आ सकते हैं.
सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्त्री हैं...)
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This Article is From Mar 20, 2018
विश्व खुशहाली रिपोर्ट ने मटियामेट कर दी हमारी छवि
Sudhir Jain
- ब्लॉग,
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Updated:मार्च 20, 2018 13:52 pm IST
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Published On मार्च 20, 2018 13:24 pm IST
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Last Updated On मार्च 20, 2018 13:52 pm IST
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