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This Article is From Dec 10, 2015

सुधीर जैन : डाउट को आउट किए बिना सजा नहीं हो सकती थी सलमान खान को

Sudhir Jain
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 23, 2015 13:46 pm IST
    • Published On दिसंबर 10, 2015 17:56 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 23, 2015 13:46 pm IST
सलमान खान के बरी होने पर उसी तरह गली-गली चर्चा है, जिस तरह उन्हें सजा होने पर होती। हाईकोर्ट से सलमान के बरी होने का फैसला आए कुछ घंटे ही हुए हैं। आमतौर पर अदालती फैसलों की कॉपी को ध्यान से पढ़ने-समझने में ही सुबह से शाम हो जाती है, लेकिन इस मामले के हर नुक्ते पर ठोककर बोलने वालों का तांता लगा हुआ है।

वैसे, अदालत से फैसला आ जाने के बाद, खासतौर पर हाईकोर्ट के फैसले के बाद, अदालती कार्यवाही के तकनीकी पक्ष पर वाद-विवाद की कोई गुंजाइश नहीं होती, लेकिन मामला सचमुच के नायक से जुड़ा था, सो, सलमान के बरी होने पर भी सनसनी को कौन रोक सकता है। भारी हलचल के माहौल में यह भी सुनाई देता है कि सलमान खुद को इस कारण से बचा पाए, क्योंकि वह हर मामले में बड़े आदमी हैं। दूसरा भाव यह है कि पुलिस ढंग से मामला संभाल नहीं पाई। पुलिस साबित नहीं कर पाई कि अभियुक्त ही गाड़ी चला रहा था और न यह साबित कर पाई कि अभियुक्त शराब पिए था, जबकि फैसला इसी आधार पर होना था।

कुल मिलाकर आपराधिक न्याय प्रणाली पर बातें उठेंगी ही। आपराधिक न्याय प्रणाली, जिसे अंग्रेजी में हम क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम कहते हैं और इसके तीन भाग होते हैं। एक - पुलिस, दूसरा - न्यायालय और तीसरा - जेल। अपराध के पीड़ित को न्याय देने के लिए हमने तीनों हिस्सों को खूब सोच-विचार कर और अपनी राजनीतिक व्यवस्था से संगत बिठाते हुए बनाकर रखा है। हमने तय कर रखा है कि चाहे 100 अपराधी छूट जाएं, लेकिन एक भी बेकसूर को सजा न हो। इसके लिए हमने तय कर रखा है, जब तक सारे डाउट आउट न हो जाएं, सजा न दी जाए। सलमान के मामले में अदालत ने क्या यही सब कुछ देखते हुए फैसला नहीं किया...? हां, इतना ज़रूर है कि पुलिस को और ज्यादा हुनरमंद होने का सुझाव दिया जा सकता है।

सड़कों पर, और मीडिया में चलने वाले मुकदमे में सलमान पर एक और आरोप है कि जो लोग उस दुर्घटना का अप्रत्यक्ष रूप से शिकार हुए, उनकी मदद या देखभाल का काम सलमान कर सकते थे। इस सिलसिले में यह बात नोट कराई जा सकती है कि क्या तब सलमान इस आरोप में न घिर जाते कि पीड़ितों के परिवार को पटाकर मामला रफा-दफा करा रहे हैं। हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली में पुलिस वाले अंग की तो यह स्थिति है कि सड़क पर बिलबिलाते घायल को देखकर संवेदनशील नागरिक तक किनारे से निकलता है कि कहीं पुलिस के चक्कर में न फंस जाए। सड़क दुर्घटनाओं के समय भीड़ का व्यवहार जिस तरह हिंसक होता जा रहा है, वहां किसी घायल को फौरन मदद पहुंचाने की बात कोई सोच तक नहीं पाता।

सलमान के मामले से आगे और भी कई जटिल बातें सामने आएंगी। फैसला हाईकोर्ट का जरूर है, लेकिन आगे सुप्रीम कोर्ट है। 13 साल से न्याय, राहत या मदद का इंतजार कर रहे पीड़ित पक्ष एक बार को गम खा भी जाएं, लेकिन संवेदनशील मीडिया और जागरूकता अभियान के लोग यह दबाव बनाने से रुक नहीं पाएंगे कि मामला आगे सुप्रीम कोर्ट में ज़रूर जाए।

यह तो हिट एंड रन का मामला था। इसमें पांच लोग घायल और एक व्यक्ति मारा गया था। एक से बढ़कर एक हत्याओं और आपराधिक नीयत वाले हादसों में बरी होना या कम सजा होना कोई अनहोनी बात नहीं है। अपने यहां ही नहीं, पूरी दुनिया में, सिवाय वहां के, जहां राजनीतिक व्यवस्थाएं अपने नागरिकों को थर-थर कंपाती हुई शासन करती हैं, आपराधिक न्याय प्रणाली इतनी ही सक्षम हो पाई है।

लोचा और झोल हर व्यवस्था में दिखाया जा सकता है, लेकिन पूरी तरह निरापद व्यवस्था बनाने की जब बात आती है, तो हम यही कहते है कि विद्वानों और विशेषज्ञों को सोचना चाहिए। हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली उदार लोकतांत्रिक राज व्यवस्था वाली प्रणाली है। स्वाभाविक है कि उसकी यह प्रणाली भी उदार होगी। कठोर राजनीतिक व्यवस्था बनाकर हम कठोर या बेरहम न्याय प्रणाली भी बना सकते हैं, लेकिन इतिहास-भूगोल पढ़ने वाले जानते हैं कि कठोर या डरावनी प्रणालियों का अंजाम क्या होता है।

कुल मिलाकर सलमान खान के मामले से कोई सबक या अपनी प्रणाली में सुधार की बात सोचने लायक स्थिति दिखाई नहीं दे रही है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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